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Highcourt: प्रक्रियागत चूक के चलते योग्य व्यक्ति को नाैकरी से वंचित करना अन्यायपूर्ण, नियुक्ति पत्र दें
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Fri, 24 Oct 2025 03:40 PM IST
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सार
हर्ष रावल ने बताया कि वह कांस्टेबल पद पर चयन के 30 दिनों के भीतर कार्यभार ग्रहण नहीं कर सका था, क्योंकि वह पारिवारिक रंजिश के कारण दर्ज एक प्राथमिकी के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में था।
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
देश में रोजगार के अवसरों की मौजूदा कमी पर प्रकाश डालते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि केवल प्रक्रियागत चूक के आधार पर किसी योग्य उम्मीदवार को नियुक्ति से वंचित करना अन्यायपूर्ण और अनुचित है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया है।
याचिका दाखिल करते हुए हर्ष रावल ने बताया कि वह कांस्टेबल पद पर चयन के 30 दिनों के भीतर कार्यभार ग्रहण नहीं कर सका था, क्योंकि वह पारिवारिक रंजिश के कारण दर्ज एक प्राथमिकी के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में था। बाद में, दोनों पक्षों के बीच समझौते के बाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि निर्देशों में निर्धारित 30 दिनों की अवधि को मनमाने तरीके से लागू नहीं किया जा सकता। उम्मीदवार की कठिनाई पर समग्र और व्यावहारिक रूप से विचार किया जाना चाहिए। यह सर्वविदित तथ्य है कि देश में नौकरियों की कमी है।
याचिकाकर्ता ने कठोर चयन प्रक्रिया उत्तीर्ण की है, इसलिए प्रक्रियागत चूक/विलंब के कारण उसे नौकरी के अवसर से वंचित करना न्यायसंगत और उचित नहीं होगा। याची को एक क्रॉस-केस में फंसाया गया था और दो अलग-अलग राजनीतिक दलों के ग्रामीणों के बीच झगड़ा हुआ था।
पहली एफआईआर याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों के कहने पर दर्ज की गई थी और दो दिन बाद याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ क्रॉस-केस दर्ज किया गया था। चूंकि यह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और गलतफहमी का मामला था, इसलिए मामला सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझ गया। यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि निर्देश प्राधिकारियों पर बाध्यकारी होते हैं, हालांकि, न्यायालय निर्देशों से बाध्य नहीं हैं। वैधानिक प्रावधान के अभाव में, निर्देशों को अनिवार्य के बजाय निर्देशात्मक माना जा सकता है।
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याचिका दाखिल करते हुए हर्ष रावल ने बताया कि वह कांस्टेबल पद पर चयन के 30 दिनों के भीतर कार्यभार ग्रहण नहीं कर सका था, क्योंकि वह पारिवारिक रंजिश के कारण दर्ज एक प्राथमिकी के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में था। बाद में, दोनों पक्षों के बीच समझौते के बाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी थी।
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हाईकोर्ट ने कहा कि निर्देशों में निर्धारित 30 दिनों की अवधि को मनमाने तरीके से लागू नहीं किया जा सकता। उम्मीदवार की कठिनाई पर समग्र और व्यावहारिक रूप से विचार किया जाना चाहिए। यह सर्वविदित तथ्य है कि देश में नौकरियों की कमी है।
याचिकाकर्ता ने कठोर चयन प्रक्रिया उत्तीर्ण की है, इसलिए प्रक्रियागत चूक/विलंब के कारण उसे नौकरी के अवसर से वंचित करना न्यायसंगत और उचित नहीं होगा। याची को एक क्रॉस-केस में फंसाया गया था और दो अलग-अलग राजनीतिक दलों के ग्रामीणों के बीच झगड़ा हुआ था।
पहली एफआईआर याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों के कहने पर दर्ज की गई थी और दो दिन बाद याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ क्रॉस-केस दर्ज किया गया था। चूंकि यह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और गलतफहमी का मामला था, इसलिए मामला सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझ गया। यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि निर्देश प्राधिकारियों पर बाध्यकारी होते हैं, हालांकि, न्यायालय निर्देशों से बाध्य नहीं हैं। वैधानिक प्रावधान के अभाव में, निर्देशों को अनिवार्य के बजाय निर्देशात्मक माना जा सकता है।