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मातृ दिवस: कोरोना काल में निभाई घर और बाहर की जिम्मेदारी, महामारी के खिलाफ जंग में भी उतरीं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पंचकूला (हरियाणा)
Published by: ajay kumar
Updated Sun, 09 May 2021 08:30 AM IST
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सार
मेरा बेटा 12वीं में पढ़ाई कर रहा है। उसको यह मालूम है कि मेरी मां पर क्या जिम्मेदारी है फिर भी मुझे उसको समय देना आवश्यक होता है। कोरोना काल ने काफी कुछ बदला है। अस्पताल और मरीजों की जिम्मेदारियां काफी ज्यादा हैं। ऐसी स्थिति में खुद को और घर वालों को भी सुरक्षित रखना है।

डॉ. सुमन गुप्ता, मीनू सासन और डॉ. अर्चना।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
हमारे बच्चे तो दिल में रहते हैं, पर सबसे ज्यादा आवश्यक है ड्यूटी। आप ही बताएं लड़ाई में फौजी नहीं लड़ेंगे तो कौन लड़ेगा। यह शब्द हैं कोरोना मरीजों की ड्यूटी में लगीं महिला डॉक्टरों के हैं। ये योद्धा एक वर्ष से संक्रमण से जूझने वाले मरीजों की सेवा कर रही हैं। घर में बच्चे भी हैं और बड़े भी...खुद खाना भी बनाती हैं और अपनों को सुरक्षित रखने के लिए खुद को अलग कमरे में रखती हैं, पर अपनी ड्यूटी को नहीं भूलतीं।

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मेरा बेटा 12वीं में पढ़ाई कर रहा है। उसको यह मालूम है कि मेरी मां पर क्या जिम्मेदारी है फिर भी मुझे उसको समय देना आवश्यक होता है। कोरोना काल ने काफी कुछ बदला है। अस्पताल और मरीजों की जिम्मेदारियां काफी ज्यादा हैं। ऐसी स्थिति में खुद को और घर वालों को भी सुरक्षित रखना है। मेरे घर में एक अलग रूम है, जिसमें मैं रहती हूं। घर में खाना भी खुद ही बनाती हूं। जरूरी यह है कि आप संतुलन कैसे बनाते हैं। मुझे तो मरीजों के बीच में जाना ही पड़ता है। मैंने अपने घर में अपने बेटे और सास को समझाया है कि जब तक यह दौर चल रहा है, मैं अकेले ही रहूंगी। - डॉक्टर अर्चना अग्रवाल, आरएमओ, एनथिसिस्ट।
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मेरा छोटा सा परिवार है। कोरोना काल के दौरान परिवार और ड्यूटी दोनों को करना आवश्यक है। एक तरफ बेटे की केयर भी करनी है, और दूसरी तरफ अस्पताल की ड्यूटी भी देखनी है। मेरे पास वैक्सीनेशन का सारा काम है। सिर्फ कोविशील्ड ही नहीं बल्कि बच्चों को लगाई जाने वाली वैक्सीन की जिम्मेदारी भी है।
यह चैलेंज है और चैलेंज को मैं निभा रही हूं। मेरा बेटा 20 साल का है। वह ऑनलाइन क्लास करता है। मुझको सुबह निकलना होता है, तो खाना खुद ही बनाती हूं। रात को जब अस्पताल से घर जाती हूं तो कोविड के सारे मानकों का पालन कर घर में इंट्री करती हूं। इसके साथ ही मेरे अभिभावक घर के पास ही रहते हैं, तो उनकी केयर भी मुझे ही करनी होती है। - मीनू सासन, जिला प्रतिरक्षण अधिकारी।
मैं भी वैक्सीनेशन में लगी हूं। सुबह साढ़े आठ बजे ड्यूटी के लिए निकल पड़ती हूं। मेरी एक 13 साल की बेटी और आठ साल का बेटा है। दोनों ही बच्चों को देखना भी आवश्यक होता है। सबसे अहम है मेरी ड्यूटी। मैं अगर खाना न बनाऊं तो बच्चे खाना खाते नहीं हैं। ऐसी स्थिति में खुद ही खाना बनाना पड़ता है। सुबह छह बजे से घर का सारा काम करती हूं और फिर अस्पताल के लिए निकल जाती हूं। हां, शाम को लौटने के समय इस बात का खास ध्यान रखती हूं कि कोविड के सारे मानकों का पालन करूं। क्योंकि घर में बड़े भी हैं और बच्चे भी। एक मां और एक डॉक्टर होने के नाते दोनों ड्यूटी देना मेरा कर्तव्य है। - डॉ. सुमन गुप्ता, आयुर्वेदिक मेडिकल अधिकारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कोट।