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कचरे से बिजली बनाने की तकनीक का लगेगा प्लांट
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चंडीगढ़। सेक्टर-25 में कचरे से बिजली बनाने वाला प्लांट लगेगा। वीरवार को सदन की विशेष बैठक में इस पर सहमति बनी। इसके लिए आईआईटी रोपड़, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (पेक) और पटियाला स्थित थापर यूनिवर्सिटी से निगम प्लांट की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) व रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) तैयार करने के लिए जो शुल्क लगेगा, उसकी जानकारी मांगेगी। यह कोटेशन 29 जुलाई को होने वाली सदन की बैठक में आएगी। वहां से आगे की प्रक्रिया तय होगी। इसके लिए बनाई गई कमेटी में अब प्रशासन के चीफ इंजीनियर और बिजली विभाग के एसई भी शामिल होंगे।
कचरा निस्तारण प्लांट के लिए निगम ने विशेष बैठक आयोजित की थी। बैठक में विशेषज्ञ के रूप में पेक से डॉ. शक्ति अरोड़ा और प्रदूषण नियंत्रण विभाग से रिद्घिमा शामिल हुईं थीं। डॉ. शक्ति ने बताया कि गीले कचरे के निस्तारण के लिए हम अभी जो तकनीक उपयोग कर रहे हैं, उसका ही आगे उपयोग कर सकते हैं। सूखे कचरे के लिए बिजली बनाने वाली तकनीक बेहतर है। इसमें आरडीएफ के निस्तारण की भी समस्या नहीं होगी। डीपीआर में प्लांट का मॉडल अगले 30 साल को ध्यान में रखकर होता है। कुछ पार्षदों ने कहा कि इससे होने वाली समस्याओं के बारे में भी हमें ध्यान देना चाहिए। रिद्घिमा ने बताया कि इसमें कचरे को खासकर प्लास्टिक को जलाने पर हानिकारक गैसें निकलती हैं, जो कैंसर जैसी बीमारियां पैदा करती हैं। इस पर डॉ. शक्ति ने कहा कि एयर पॉल्यूशन सिस्टम लगाकर इस समस्या का भी निराकरण आसानी से हो सकता है। इसमें काफी बेहतर तकनीक आ चुकी हैं।
जेपी का दावा 300 टन कचरा निस्तारण का गलत
संयुक्त आयुक्त सौरभ अरोड़ा ने बताया कि जेपी समूह दावा करता है कि वह 300 टन सूखा कचरा प्रतिदिन निस्तारित करता था। हमने एक माह तक इस प्लांट पर नजर रखी। इस दौरान लगातार 14 घंटे तक मशीन चलाने पर 70 मीट्रिक टन ही कचरा एक दिन में निस्तारित हो सका। आयुक्त केके यादव ने बताया कि अभी प्रतिदिन लगभग 600 टन कचरा प्रतिदिन शहर से निकलता है, जिसमें 250 टन सूखा कचरा, 150 टन गीला कचरा, शेष बागवानी और रसोई का कचरा होता है। गाड़ियां चलने से फायदा हुआ है कि 75 प्रतिशत कचरा अब अलग-अलग होकर आता है।
बागवानी कचरे के निस्तारण के लिए मुंबई का प्लांट देखेंगे
बागवानी और रसोई के कचरे का निस्ताकरण करने के लिए सदन ने निर्णय लिया है कि अधिकारी मुंबई में बने प्लांट को देखने के लिए जाएंगे। इसके साथ ही पार्कों में बने पिटों के लिए पेड़ों की टहनियों का कटर से कटवाकर खाद बनाने की प्रक्रिया को तेज कराया जाएगा। इस कचरे की क्षमता को भी 300 एमटी तक करने की योजना है।

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कचरा निस्तारण प्लांट के लिए निगम ने विशेष बैठक आयोजित की थी। बैठक में विशेषज्ञ के रूप में पेक से डॉ. शक्ति अरोड़ा और प्रदूषण नियंत्रण विभाग से रिद्घिमा शामिल हुईं थीं। डॉ. शक्ति ने बताया कि गीले कचरे के निस्तारण के लिए हम अभी जो तकनीक उपयोग कर रहे हैं, उसका ही आगे उपयोग कर सकते हैं। सूखे कचरे के लिए बिजली बनाने वाली तकनीक बेहतर है। इसमें आरडीएफ के निस्तारण की भी समस्या नहीं होगी। डीपीआर में प्लांट का मॉडल अगले 30 साल को ध्यान में रखकर होता है। कुछ पार्षदों ने कहा कि इससे होने वाली समस्याओं के बारे में भी हमें ध्यान देना चाहिए। रिद्घिमा ने बताया कि इसमें कचरे को खासकर प्लास्टिक को जलाने पर हानिकारक गैसें निकलती हैं, जो कैंसर जैसी बीमारियां पैदा करती हैं। इस पर डॉ. शक्ति ने कहा कि एयर पॉल्यूशन सिस्टम लगाकर इस समस्या का भी निराकरण आसानी से हो सकता है। इसमें काफी बेहतर तकनीक आ चुकी हैं।
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जेपी का दावा 300 टन कचरा निस्तारण का गलत
संयुक्त आयुक्त सौरभ अरोड़ा ने बताया कि जेपी समूह दावा करता है कि वह 300 टन सूखा कचरा प्रतिदिन निस्तारित करता था। हमने एक माह तक इस प्लांट पर नजर रखी। इस दौरान लगातार 14 घंटे तक मशीन चलाने पर 70 मीट्रिक टन ही कचरा एक दिन में निस्तारित हो सका। आयुक्त केके यादव ने बताया कि अभी प्रतिदिन लगभग 600 टन कचरा प्रतिदिन शहर से निकलता है, जिसमें 250 टन सूखा कचरा, 150 टन गीला कचरा, शेष बागवानी और रसोई का कचरा होता है। गाड़ियां चलने से फायदा हुआ है कि 75 प्रतिशत कचरा अब अलग-अलग होकर आता है।
बागवानी कचरे के निस्तारण के लिए मुंबई का प्लांट देखेंगे
बागवानी और रसोई के कचरे का निस्ताकरण करने के लिए सदन ने निर्णय लिया है कि अधिकारी मुंबई में बने प्लांट को देखने के लिए जाएंगे। इसके साथ ही पार्कों में बने पिटों के लिए पेड़ों की टहनियों का कटर से कटवाकर खाद बनाने की प्रक्रिया को तेज कराया जाएगा। इस कचरे की क्षमता को भी 300 एमटी तक करने की योजना है।