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सबने दी महामना के महायज्ञ में आहुति
ब्यूरो, अमर उजाला, वाराणसी
Updated Fri, 22 Jul 2016 02:07 AM IST
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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
अक्तूबर, 1911 में जब महामना, एनी बेसेंट और दरभंगा नरेश जैसी शख्सियतें एक हुईं तो काशी हिंदू विश्वविद्यालय का काम परवान चढ़ने लगा लेकिन विश्वविद्यालय के लिए एक करोड़ रुपये जुटाना सबसे बड़ी चुनौती थी। कहते हैं जब लगन और निष्ठा से कोई काम शुरू किया जाए पूरा जरूर होता है। ऐसा ही यहां हुआ। राजा से रंक तक सबने महामना के इस महायज्ञ में अपनी आहुति दी। फिर धीरे-धीरे यह विशाल विश्वविद्यालय मूर्तरूप लेने लगा।
विश्वविद्यालय की स्थापना और उसकी मान्यता के लिए सरकार ने जो शर्तें रखीं थीं, उनमें सबसे बड़ी और अहम शर्त थी एक करोड़ रुपये। सरकार ने कहा कि विश्वविद्यालय को मंजूरी तभी दी जाएगी, जब वे 50 लाख रुपये जमा करने और एक करोड़ रुपये जुटा पाने की स्थिति में हाें। उस समय यह बहुत बड़ी रकम थी लेकिन महामना विचलित नहीं हुए। साहस और समर्पण के साथ वह अपने सपने को पूरा करने में जुट गए।
इस बड़ी रकम को जुटाने के लिए उन्होंने दान संग्रह का असाधारण आंदोलन शुरू किया। नवंबर, 1911 में हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की स्थापना की गई। जनवरी, 1912 में इलाहाबाद में कार्यालय भी खुल गया। कार्यालय की एक शाखा बनारस में खोली गई। उपसमितियां गठित हुईं और फिर शुरू हुआ दान संग्रह। महामना ने विश्वविद्यालय के लिए एक करोड़ रुपये जमा करने की देश भर में अपील जारी की। देश के पांच हजार से अधिक प्रमुख लोगों की सूची तैयार की गई।
सूची में राजा-महाराजा, विद्वान और अफसर सब शामिल थे। अलग-अलग टोलियों में बंटकर उपसमितियों के प्रतिनिधिमंडल देश के अलग-अलग हिस्सों में गए। छोटे-बड़े नेता, राजा-महाराजा, नेता, विद्वान, भिखारी हर किसी ने शिक्षा के इस महायज्ञ में आहुति दी। तीन साल लगे और 50 लाख रुपये संग्रह कर लिए गए।
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विश्वविद्यालय की स्थापना और उसकी मान्यता के लिए सरकार ने जो शर्तें रखीं थीं, उनमें सबसे बड़ी और अहम शर्त थी एक करोड़ रुपये। सरकार ने कहा कि विश्वविद्यालय को मंजूरी तभी दी जाएगी, जब वे 50 लाख रुपये जमा करने और एक करोड़ रुपये जुटा पाने की स्थिति में हाें। उस समय यह बहुत बड़ी रकम थी लेकिन महामना विचलित नहीं हुए। साहस और समर्पण के साथ वह अपने सपने को पूरा करने में जुट गए।
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इस बड़ी रकम को जुटाने के लिए उन्होंने दान संग्रह का असाधारण आंदोलन शुरू किया। नवंबर, 1911 में हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की स्थापना की गई। जनवरी, 1912 में इलाहाबाद में कार्यालय भी खुल गया। कार्यालय की एक शाखा बनारस में खोली गई। उपसमितियां गठित हुईं और फिर शुरू हुआ दान संग्रह। महामना ने विश्वविद्यालय के लिए एक करोड़ रुपये जमा करने की देश भर में अपील जारी की। देश के पांच हजार से अधिक प्रमुख लोगों की सूची तैयार की गई।
सूची में राजा-महाराजा, विद्वान और अफसर सब शामिल थे। अलग-अलग टोलियों में बंटकर उपसमितियों के प्रतिनिधिमंडल देश के अलग-अलग हिस्सों में गए। छोटे-बड़े नेता, राजा-महाराजा, नेता, विद्वान, भिखारी हर किसी ने शिक्षा के इस महायज्ञ में आहुति दी। तीन साल लगे और 50 लाख रुपये संग्रह कर लिए गए।