अमर उजाला फाउंडेशन 2019: आसान नहीं रही संजय राउतरे के लिए बॉलीवुड में सफलता की राह
अमर उजाला फाउंडेशन की ओर से नजरिया-2019 का आयोजन 17 सितंबर 2019 को चंडीगढ़ में होने जा रहा है। अपने द्वितीय वर्ष में प्रवेश कर चुके इस आयोजन में इस वर्ष भी जीवन और समाज के विविध क्षेत्रों के लिए नये नजरिये के साथ सार्थक काम कर चुके व्यक्तित्व अपने विचार रखेंगे।
इस वर्ष आयोजन में शिक्षाविद्, वैज्ञानिक और इंजीनियर सोनम वांगचुक, पानी के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर रहे बेंगलुरू के आनंद मल्लिग्वाद जो सूखती झीलों के मसीहा माने जाते हैं वे शामिल होंगे और अपने समाज जीवन के अनुभवों को शामिल करेंगे। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म अंधाधुन के निर्माता संजय राउतरे शामिल होंगे जो एक वक्ता के रूप में अपने जीवन अनुभवों को श्रोताओं से साझा करेंगे।
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संजय राउतरे का सफर और सिनेमा
भारतीय समाज और सिनेमा में लगातार बदलाव हुए हैं। सिनेमा में बदलाव कथा के साथ किए जाते रहे हैं और पहले से मौजूद चीजों में नया तड़का लगाया जा रहा है। कथा हो या फिर किरदार हर चीज को लेकर सिनेमा बदल रहा है। कंटेट के मामले में देखा जाए तो सौ साल का हो चुके सिनेमा में काफी परिवर्तन आया है। पहले की तरह ना ही अब हीरो के हिसाब से किरदार लिखा जा रहा है और ना ही खूबसूरत चेहरों को ही हीरो-हीरोइन बनने का मौका दिया जा रहा है। अब मौका उनको दिया जा रहा है, जो एक्टिंग करते हैं ना कि खूबसूरत दिखते हैं। कंटेट और डायरेक्शन के बाद सिनेमा में तकनीकी रूप से भी काफी बदलाव आए हैं।
बदलते दौर के साथ सिनेमा की परिभाषा बदलती जा रही है। अब बड़े शहरों को छोड़कर डायरेक्टर्स व प्रोड्यूसर्स अब छोटे शहरों में पहुंच रहे हों। वहां की कहानियां उठा रहे हैं और वहां के लोगों को मौका दे रहे हैं। पहले सिनेमा में आने के लिए लोगों को बहुत संघर्ष करना पड़ता था। अगर सिनेमा में कोई आपका जानने वाला नहीं था तो वहां की दुनिया में घुसना नामुमकिन था। लेकिन समय बदला और सिनेमा का तौर-तरीका बदला। संघर्ष आज भी है लेकिन मौका बहुत है।
आजकल निर्माता और निर्देशक छोटे शहरों के टैलेंट को मौका दे रहे हैं। सिनेमा भारत का एक मुख्य हिस्सा है। यही कारण है कि सिनेमा को इस बार अमर उजाला फाउंडेशन ने अपने खास कार्यक्रम नजरिया 2019 में मुद्दा बनाया है, जिसपर बात करने के लिए स्पीकर के तौर पर फिल्म अंधाधुन के निर्माता संजय राउतरे मौजूद होंगे।
आसान नहीं रही संजय की राह
अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म अंधाधुन के निर्माता संजय राउतरे भी अपनी जिद की सान पर संघर्षों को घिस-घिस कर अपनी किस्मत की चमकदार इबारत लिखते रहे हैं। इस दुनिया के संघर्षों की भूलभुलैया से बाहर निकलने के रोचक किस्से के कुछ सफेद-स्याह पन्नों को असल किरदार के मुख से सुनने का मज़ा कुछ और ही होता है।
अमर उजाला को दिए गए इंटरव्यू में संजय ने कई सारे सवालों के जवाब दिए और अपने करियर को लेकर भी बात की। जब उनसे सिनेमा में निर्माता के रोल में बदलाव पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा बदलाव तो यही आया है कि पहले फाइनेंसर फोन करके पूछते थे कि अगली फिल्म में किस स्टार को साइन कर रहे हो, अब पूछते हैं कि कहानी कोई मिली क्या दमदार? अब सितारे कहानी के बाद आते हैं। पहले सितारे आते थे। कहानी तो अक्सर सेट पर ही लिख जाती थी।
बता दें कि संजय को फिल्मी विज्ञापन का भी काफी लंबा अनुभव रहा है । इस पर उन्होंने कहा कि टीवीसी बहुत कमाल की चीज़ है। 60 सेकेंड में पूरी दुनिया की कहानी समेटनी होती है। और, दर्शकों को वह चीज़ बेच भी देनी होती है। यही काम जब आपको 120 मिनट या उससे ज्यादा में करना होता है तो चुनौती उतनी बड़ी नहीं रह जाती। लेकिन, हां फिल्म का रिस्क टीवीसी से कहीं बड़ा है।