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पराक्रम दिवस 2024: नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, युवाओं के प्रेरणा स्रोत

Dr.Naaz Parveen डॉ. नाज परवीन
Updated Mon, 22 Jan 2024 01:02 PM IST
सार

23 जनवरी 1897 को उडीसा के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावतीदत्त बोस के घर जन्में बालक सुभाषचन्द्र बोस आज भी युवाओं के जोशीले नेताजी के रूप में भारत के तमाम नवयुवकों के हीरों हैं। जो जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना जानते हैं। सदियों से कहावत रही है कि ’पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’ जिसका बेहतरीन उदाहरण सुभाषचन्द्र बोस हैं।

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parakram diwas 2024: Netaji Subhash Chandra Bose is a source of inspiration for the youth
सुभाष चंद्र बोस जयंती। - फोटो : amar ujala
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विस्तार
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भारत प्रेरणाओं वाला देश है। यहां की माटी में जन्में महापुरूषों ने न केवल भारत के नौजवानों के लिए उत्साहवर्धन का काम किया है अपितु दुनिया भर में साहस और शौर्य का प्रतीक बने हैं। भारत विविधताओं से भरी क्षमताओं वाला देश है। विपरीत परिस्थितियों से लडकर जीत हासिल करने में पारंगत लोगों की फेहरिस्त में अग्रिणी नाम है नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का, जिनके जन्म दिवस 23 जनवरी को भारत ’’पराक्रम दिवस’’ के रूप में मनाता है। उनकी सूझबूझ और रणनीति से प्रेरित होकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें नेताजी कहकर संबोधित किया। 

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23 जनवरी 1897 को उडीसा के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावतीदत्त बोस के घर जन्में बालक सुभाषचन्द्र बोस आज भी युवाओं के जोशीले नेताजी के रूप में भारत के तमाम नवयुवकों के हीरों हैं। जो जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना जानते हैं। सदियों से कहावत रही है कि ’पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’ जिसका बेहतरीन उदाहरण सुभाषचन्द्र बोस हैं। साहस के साथ समाज सेवा, देश प्रेम के साथ राष्ट्र भक्ति की मिशाल हैं सुभाषचन्द्र बोस। बचपन में आप जितने साहसी थे उतने ही उदार भी।
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कहते हैं कि ओडिशा के कटक शहर में स्थित उड़िया बाजार में प्लेग फैला हुआ था। उस इलाके में केवल बापू पाडा मोहल्ला इस बीमारी से बचा हुआ था। उसकी बडी वजह थी वहां पर मौजूद साफ-सफाई के पुख्ता इंतजाम। जिसे करने के लिए 10 वर्ष से 18 वर्ष के नौवयुवकों ने एक टीम बनायी हुई थी उस टीम का नेतृत्व कर रहा था 12 साल का एक बालक। इस बाजार में हैदर अली नाम के एक व्यक्ति का दबदबा था। हैदर बापू पाडा में साफ-सफाई करने वाले बच्चों को अकसर डाट फटकार कर भगा देता। उसके र्दुव्यवहार के चलते कई बार वह जेल भी जा चुका था। लोग उससे बहुत परेशान थे। 

कुछ समय बाद हैदर के बेटे और पत्नी को भी प्लेग हो गया यह खबर सुनते ही अभियान दल का मुखिया हैदर की मदद में जुट गया। जबकि लोग उससे दूर भागने लगे। हैदर के मन में उस बालक के सेवाभाव को देखकर और स्वयं के किए गए बर्ताव को देखकर आत्मगिलानी का भाव उत्पन्न हो गया और उसका हृदय परिवर्तन हो गया। हैदर का हृदय परिवर्तन करने वाला वह असाधारण बालक और कोई नहीं बल्कि सुभाषचन्द्र बोस ही थे। जिनमें नेतृत्व में कमाल की शक्ति थी कि बडे़ से बडे़ सूरमा भी परास्त हो जाते थे। बडे़ होकर अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने का काम सुभाषचन्द्र बोस ने बाखूबी किया।    

जीवन की जटिलताओं को सरल बनाने का साहस जैसा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस में दिखाई देता है ऐसा कम ही देखने को मिलता है। आज भी भारतीय युवाओं में सिविल सेवा की परीक्षा को पास करने के जज्बे पर नेताजी को देखा जा सकता है। आप ने वर्ष 1919 में भारतीय सिविल सेवा ’’आई.सी.एस.’’ की परीक्षा उत्तीर्ण की और बाद में इस्तीफा देकर देश की आजादी के सपने को सच करने के मिशन में लग गए। सुभाषचन्द्र बोस अपने आध्यात्मिक गुरू विवेकानन्द जी को एवं राजनीतिक गुरू चितरंजन दास को मानते थे। सन् 1921 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने चितरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ’फारवर्ड’ के सम्पादन का कार्यभार संभाला।

parakram diwas 2024: Netaji Subhash Chandra Bose is a source of inspiration for the youth
30 दिसम्बर 1943 को अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द सरकार का तिरंगा फहराया। - फोटो : Twitter/Adv.Vivekanand Gupta

भारत पूर्ण स्वराज के साथ दुनिया से नजरें मिलाए यह सपना नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का था। ऐसे कई मौके आए जब नेताजी ने भारत की गुलामी की जंजीरों को पिघलाने की कोशिश की। कभी जेल गए तो कभी ब्रिटिश हुकूमत को आसानी से चकमा देकर अपने सीक्रेट मिशन को पूरा करने में सफल रहे। वो जब तक रहे अंग्रेजी हुकूमत को चैन से सोने न दिया। भारत में आजादी का दिन 15 अगस्त 1947 के दिन के रूप में दर्ज है लेकिन आजादी के इस दिन से लगभग 4 साल पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने हिन्दुस्तान की पहली सरकार का गठन कर दिया था।

21 अक्टूबर सन 1943 का दिन इतिहास कभी न भुला पाएगा, जब भारत पर अंग्रेजी हुकूमत थी और नेताजी ने सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना कर डाली थी। नेताजी का यह कदम अंग्रेजी सरकार को यह बतलाने के लिए पर्याप्त था कि भारत में उनकी सरकार का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है भारतीय अपनी सरकार चलाने में सक्षम है। आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के तौर पर सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी। जिसे 9 देशों ने मान्यता दी जिसमें जर्मनी, फिलीपींस, जापान जैसे देश शामिल थे। जापान के द्वारा अंडमान और निकोबार द्वीप आजाद हिंद सरकार को दे दिए गए जिनका सुभाषचन्द्र बोस ने नामकरण किया।

अंडमान को शहीद द्वीप और निकोबार को स्वराज द्वीप के नाम से संबोधित किया। 30 दिसम्बर 1943 को अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द सरकार का तिरंगा फहराया। आजाद हिन्द सरकार ने अपना बैंक, अपनी मुद्रा, अपना डाक टिकट और अपना गुप्ततंत्र स्थापित कर ब्रिटिश हुकूमत को भारतीयों की शक्ति का आभास कराया। नेताजी ने लोगों को संगठित होकर एकजुटता के साथ अंग्रेजी सूरज को अस्त करने की राह सुझाई।
 
सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द सरकार के द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे को और राष्ट्रगान के रूप में जन-गण-मन को चुना और अभिवादन के लिए ’जय हिंद’ का प्रयोग करने की परम्परा का आगाज किया। उनके द्वारा दिए गए उद्बोधन में ’दिल्ली चलो’ के नारे ने आज भी लोगों में जोश भरने का काम जीवित रखा है। ’तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ के नारे को बुलन्द करने वाले भारत के महान क्रान्तिकारी योद्वा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जीवन से जुडे कई प्रेरणादायक किस्से हैं जिन्हें देख उनकी क्रान्तिमय जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है।

कहते हैं एक बार बचपन में सुभाष अपनी माता के साथ मां काली के मन्दिर गए थे उनकी मां पूजा के लिए घर से सिंदूर लाना भूल गयी तभी उनकी मां को ध्यान आया और उन्होने सुभाष से घर जाकर सिंदूर लाने के लिए कहा लेकिन घर दूर था तभी सुभाष ने सोचा घर से सिंदूर लाने में काफी वक्त लगेगा और तभी पास पडे एक चाकू से अपने अंगूठे पर चीरा लगा कर अपनी मां से कहा कि वह उनके रक्त को सिंदूर मानकर मां काली के चरणों में अर्पित कर दें। उनके साहस का बाल्यकाल में ऐसा उदाहरण उनके साहस एवं पराक्रमी जीवन को दर्शाता है। 
 
भारत नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाता है। निसंदेह सुभाषचन्द्र बोस भारत के नव युवकों के रियल हीरों हैं। उनका जीवन साहस, शक्ति और पराक्रम की ऐसी प्रेरणादायक गाथा है जिसने भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर लड़ने के लिए प्रेरित करने का काम किया है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जीवन स्वतंत्रता, समानता, साहस से भरपूर आपसी सौहार्द्र को बनाये रखने में एक मिशाल है। ऐसे हीरो सदैव जीवित रहकर अपने राष्ट्र के युवाओं को राष्ट्रसेवा के लिए सदैव प्रेरित करते रहते हैं जैसे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस करते हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदाई नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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