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एनजीटी की रिपोर्ट में खुलासा: बाढ़ से सबक...दिल्ली में यमुना नदी के डूब क्षेत्र में इतने एकड़ जमीन सुरक्षित
नितिन राजपूत, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अनुज कुमार
Updated Tue, 16 Sep 2025 09:23 AM IST
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सार
दिल्ली में यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र से 2012.99 एकड़ जमीन (814.631 हेक्टेयर) को अतिक्रमण मुक्त कराया गया, जो जोन-0 में भूमि प्रबंधन और बागवानी विभाग की कार्रवाई का नतीजा है। एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट में 2022 से 2025 तक की इस पहल का जिक्र है, जबकि कुल 9700 हेक्टेयर क्षेत्र में 75% अतिक्रमण अब भी बाकी है, जिसके लिए डीडीए सीमांकन तेज करेगा।

एनजीटी
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
राजधानी में यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र से 2012.99 एकड़ जमीन (814.631 हेक्टेयर) को अतिक्रमण मुक्त कराया गया है। इसमें जोन-0 में भूमि प्रबंधन विभाग ने 2.22 एकड़ और बागवानी विभाग की तरफ से 2010.78 एकड़ जमीन से अवैध कब्जे हटाए गए हैं। दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। यह कार्रवाई 1 जनवरी, 2022 से 31 मार्च, 2025 के दौरान की गई है। इसके अलावा दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने विभाग को ब्योरा दिया है कि उन्होंने जोन-O का सर्वेक्षण पूरा कर लिया है और अब अधिकारी निष्कर्षों के आधार पर अतिक्रमण का विश्लेषण कर रहे हैं।

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एनजीटी ने दिल्ली सरकार, डीडीए और अन्य एजेंसियों को निर्देश दिए हैं कि वजीराबाद से पल्ला तक 22 किमी लंबे यमुना के बाढ़ प्रभावित इलाके का सीमांकन कर अवैध निर्माण हटाया जाए। इसके तहत नवंबर, 2023 में दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया था। इसको लेकर अब तक छह बार स्थिति रिपोर्ट दायर की गई हैं। यह कार्रवाई उस समय शुरू हुई जब एनजीटी ने 22 अगस्त, 2023 को एक मीडिया रिपोर्ट ‘बाढ़ ने डीडीए के मास्टर प्लान पर पुनर्विचार क्यों किया’ का स्वतः संज्ञान लिया था। रिपोर्ट में यमुना के बाढ़ क्षेत्र में हो रहे अनधिकृत निर्माण से राजधानी में आई बाढ़ की स्थिति पर चिंता जताई गई।
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यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में इतना अतिक्रमण
डीडीए की तरफ से किए गए हालिया सर्वे अगस्त 2024 के अनुसार, यमुना नदी का बाढ़ क्षेत्र (फ्लड प्लेन) कुल 9,700 हेक्टेयर में फैला हुआ है जो दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के तहत जोन-O के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र वजीराबाद से पल्ला तक लगभग 22 किलोमीटर लंबी पट्टी को कवर करता है। इस क्षेत्र का लगभग 75 फीसदी हिस्सा (7,362.56 हेक्टेयर) अवैध अतिक्रमण के अधीन है। इसमें अनधिकृत कॉलोनियां, झुग्गी-झोपड़ी (जेजे) क्लस्टर, परिवहन परियोजनाएं और अन्य निर्माण कार्य हैं।
सीमांकन में आईं तकनीकी दिक्कतें
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत के 30 अप्रैल 2025 के आदेश के अनुसार डीडीए के वकील ने जवाब दिया था। इसमें उन्होंने बताया कि सीमांकन के दौरान तकनीकी विसंगतियां सामने आईं। उन्होंने बताया कि कुछ स्थानों पर 1:25 वर्ष की बाढ़ सीमा और 1:100 वर्ष की बाढ़ सीमा में विरोधाभास है। इससे सर्वे प्रभावित हुआ। इस मुद्दे को हल करने के लिए दिल्ली के कई विभाग आपसी समन्वय से काम कर रहे हैं। ऐसे में अदालत ने दिल्ली सरकार के पर्यावरण प्रमुख सचिव को निर्देश दिया था कि वे सभी संबंधित विभागों के साथ संयुक्त बैठक करें और मानचित्र में मिली विसंगतियों काे दूर करें। यह काम चार सप्ताह की अवधि के अंदर पूरा करें।
सीमा का विश्लेषण कर नक्शा तैयार किया
रिपोर्ट में सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफसीडी) का भी हवाला दिया गया है। इसमें अधिकारियों ने बताया है कि हाल की बाढ़ के बाद यमुना के बाढ़ क्षेत्र का वैज्ञानिक आकलन कराने के लिए 80 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। जीएसडीएल द्वारा बाढ़ सीमा का विश्लेषण कर नक्शा तैयार किया गया जिसे डीडीए को सीमांकन के लिए सौंपा गया है। डीडीए 1 सितंबर 2025 से सीमांकन शुरू करेगा और बोलार्ड लगाने की समय-सीमा भी तय करेगा।
डीडीए ने किया था यमुना के बाढ़ क्षेत्र का सर्वे
दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर डीडीए ने यमुना के बाढ़ क्षेत्र का सर्वे किया था। इस सर्वे में सैटेलाइट इमेजिंग और ड्रोन फोटोग्राफ का इस्तेमाल किया गया था। सर्वे में पाया गया कि यमुना के बाढ़ क्षेत्र की 7,362 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा है और यहां बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण भी हुआ है। दिल्ली मास्टर प्लान 2021 में इस जमीन को जोन-O के नाम से जाना जाता है। हाई लेवल कमेटी के निर्देश पर डीडीए ने यमुना के किनारे की जमीन का ग्राउंड-ट्रूथिंग सर्वे भी किया। इसके लिए जियो-स्पेशल मैप्स का इस्तेमाल किया गया। इस सर्वे का मकसद अतिक्रमण की वास्तविक स्थिति का पता लगाना था। विशेषज्ञों के अनुसार, अतिक्रमण के कारण नदी की जल-धारण क्षमता 50 फीसदी से अधिक कम हो गई है जिससे कम डिस्चार्ज पर भी बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है जैसे 2023 और 2025 की बाढ़ में। गाद जमा होना और निर्माण ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया है।