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Delhi High Court: 21 साल जेल काटने वाले कैदी की रिहाई पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, एसआरबी के फैसले को किया रद्द

गौरव बाजपेई, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अनुज कुमार Updated Tue, 26 Aug 2025 08:31 AM IST
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सार

दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 साल सजा काट चुके नवीन अहुजा की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर सेंटेस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के फैसले को रद्द कर दिया। अदालत ने एसआरबी को आठ सप्ताह में पुनर्विचार कर तर्कपूर्ण निर्णय देने का निर्देश दिया है।

Delhi High Court cancelled decision of SRB on petition for premature release of Naveen Ahuja
दिल्ली हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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हाईकोर्ट ने 21 साल की सजा पूरी कर चुके कैदी की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर सेंटेस रिव्यू बोर्ड (एसआरबी) के फैसले को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि एसआरबी का फैसला अपर्याप्त तर्कों पर आधारित है और इसमें अपराध की गंभीरता पर अत्यधिक जोर दिया गया है, जबकि कैदी के सुधार और पुनर्वास के पहलुओं को नजरअंदाज किया गया है। मामले को दोबारा विचार के लिए एसआरबी को भेज दिया गया है।

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न्यायमूर्ति संजीव नारुला की एकल पीठ ने 22 अगस्त 2025 को दिए गए फैसले में कहा कि एसआरबी ने नवीन अहुजा की रिहाई को अस्वीकार करते हुए अपराध की क्रूरता, समाज पर प्रभाव और पुलिस की आपत्ति को मुख्य आधार बनाया। कैदी के जेल में व्यवहार, सामाजिक जांच रिपोर्ट और प्रोबेशन अधिकारी की राय को उचित महत्व नहीं दिया। 
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अदालत ने पूर्व के कई मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अपराध की प्रकृति एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन यह रिहाई अस्वीकार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। नवीन अहुजा को 2005 में कापसहेड़ा थाने में दर्ज एफआईआर के तहत अपनी पत्नी और दो नाबालिग बच्चों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने 2012 में आजीवन कारावास में बदल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में अपील खारिज कर दी और 2020 में रिव्यू याचिका भी अस्वीकार कर दी।

अदालत के अनुसार, अहुजा ने 24 मार्च 2025 तक 17 साल 11 महीने 21 दिन की वास्तविक सजा और छूट सहित 21 साल 4 महीने 8 दिन की सजा काट ली है। सामाजिक जांच रिपोर्ट में कहा गया कि अहुजा अब अपराध करने की क्षमता खो चुके हैं और समाज में उपयोगी सदस्य बन सकते हैं। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि एसआरबी आठ सप्ताह के भीतर नई बैठक बुलाकर मामले पर पुनर्विचार करे और कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप तर्कपूर्ण आदेश जारी करे।

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