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Artificial Rain: दिल्लीवासियों का कृत्रिम बारिश के लिए बढ़ा इंतजार, पर्यावरण में कम नमी ने बिगाड़ा 'खेल'

अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Thu, 30 Oct 2025 06:56 AM IST
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Delhiites' wait for artificial rains gets longer, as low humidity spoils the 'game'
cloud seeding, क्लाउड सीडिंग - फोटो : AI Generated
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क्लाउड सीडिंग के बावजूद दिल्ली में बारिश कराने में सफलता नहीं मिलने पर आईआईटी कानपुर की टीम ने वातावरण में पर्याप्त नमी होने तक अगला प्रयोग रोकने का फैसला किया है। इससे दिल्लीवासियों को जहरीली हवा से निजात के लिए बारिश का इंतजार बढ़ गया है। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है-परीक्षण से वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है। विपक्ष की आलोचना के जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा कि वैज्ञानिकों के ईमानदार प्रयासों पर सवाल उठाना गलत है।



आईआईटी कानपुर ने कहा, वातावरण में 50 फीसदी से अधिक नमी जरूरी है। इसके बिना क्लाउड सीडिंग से बारिश संभव नहीं है। विशेषज्ञों ने बताया कि मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के दौरान डाले गए रसायन व अन्य कण वातावरण में मौजूद धूल और धुएं से मिल गए। इससे यह सूक्ष्म प्रदूषक भारी होकर नीचे बैठ गए। यही कारण रहा कि बारिश नहीं होने के बावजूद वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया।
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पर्यावरण में कम नमी ने बिगाड़ा खेल, अहम जानकारियों ने दी ऊर्जा
राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण घटाने के उद्देश्य से की गई क्लाउड सीडिंग (बादल बीजन) की कोशिश भले ही वर्षा कराने में विफल रही हो, लेकिन कानपुर आईआईटी ने इसे वैज्ञानिक रूप से उपयोगी अनुभव बताया है। संस्थान के अनुसार सीमित नमी की स्थिति में भी इस प्रक्रिया से पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषक कणों के स्तर में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई, जिससे संकेत मिलता है कि भविष्य में यह तकनीक वायु गुणवत्ता सुधार में मददगार साबित हो सकती है।

संस्थान ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, निर्धारित क्लाउड सीडिंग गतिविधि को रोक दिया गया है क्योंकि आवश्यक वायुमंडलीय परिस्थितियां मौजूद नहीं थीं। फिर भी इस परीक्षण से कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय आंकड़े मिले हैं। आईआईटी कानपुर के मुताबिक दिल्ली में स्थापित रीयल-टाइम मॉनिटरिंग स्टेशनों ने कणीय पदार्थों के स्तर में 6 से 10 प्रतिशत की कमी दर्ज की। यह पाया गया कि सीमित नमी के बावजूद क्लाउड सीडिंग वायु गुणवत्ता सुधार में आंशिक रूप से कारगर हो सकती है। संस्थान ने कहा, यह अवलोकन भविष्य के संचालन की बेहतर योजना बनाने में मदद करेंगे और यह समझने में सहायक होंगे कि किन परिस्थितियों में यह तकनीक अधिक लाभ दे सकती है।

इस तकनीक का उपयोग विश्व के कई देशों में जल संकट, कृषि संकट और सूखे की स्थितियों से निपटने के लिए किया जाता है। चीन में जलाशयों और नदियों में जलस्तर बढ़ाने के लिए नियमित रूप से क्लाउड सीडिंग अभियान चलाए जाते हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया और टेक्सास राज्यों में सूखा कम करने के लिए इसका उपयोग होता है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में इसे वर्षा बढ़ाने और गर्मी के मौसम में तापमान नियंत्रण के लिए अपनाया जाता है। भारत में, फिलहाल इसे जल संकट नहीं बल्कि वायु प्रदूषण घटाने के प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि कई विशेषज्ञ इस दृष्टिकोण को लेकर आशंकित हैं और इसे केवल सीमित परिस्थितियों में प्रभावी मानते है

बदली दिशा से बही बयार तो हवा की गुणवत्ता में आया कुछ सुधार
राजधानी में हवा की दिशा बदलने और गति कम होने से वायु प्रदूषण में सुधार आ रहा है। ऐसे में बुधवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 279 दर्ज किया गया, जिसमें मंगलवार की तुलना में 15 सूचकांक की गिरावट दर्ज की गई। दिनभर आसमान में हल्की स्मॉग की चादर की वजह से दृश्यता कम रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का पूर्वानुमान शनिवार को हवा बेहद खराब श्रेणी में पहुंचने की आशंका है। इसके चलते सांस के मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

सीपीसीबी के अनुसार, दिल्लीवासियों ने बुधवार को लगातार 16वें दिन खराब हवा में सांस ली। इस सीजन में 14 अक्तूबर को दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब श्रेणी में पहुंच गई थी। इसके बाद से लगातार ही प्रदूषण का स्तर खराब या बेहद खराब श्रेणी में बना हुआ है।

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