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बायोफीडबैक थेरेपी: बैलून के जरिए पुरानी कब्ज से मिल सकता है छुटकारा, सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने किया अध्ययन
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Vikas Kumar
Updated Mon, 25 Apr 2022 03:18 AM IST
सार
डॉ. श्रीहरि ने बताया कि बायोफीडबैक थेरेपी में गुब्बारेके जरिए मरीजों को प्रोसीजर किया जाता है। इस प्रोसीजर के दौरान एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद ली जाती है। यह पूरी प्रक्रिया जीआई मोटिलिटी लैब में होती है।
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सर गंगा राम अस्पताल
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
आमतौर पर अधिकांश लोग कब्ज की शिकायत से परेशान रहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार देश में करीब 20 से 30 फीसदी वयस्क आबादी कब्ज से परेशान हैं। ऐसे में पुरानी कब्ज को लेकर दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने नया अध्ययन किया है। इसके अनुसार बैलुन की सहायता लेकर डॉक्टरों ने कई मरीजों में कब्ज की परेशानी को दूर किया है।
अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. अनिल अरोड़ा ने बताया कि पुरानी कब्ज की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचे मरीजों में से करीब 180 का अध्ययन में चयन किया जिनकी आयु 11 से 86 वर्ष के बीच थी। इनमें करीब 80 फीसदी मरीज पुरुष थे। इन मरीजों ने सबसे आम लक्षण मलकी अपूर्ण निकासी और शौच पर अत्यधिक दबाव बताया। गौर करने वाली बात है कि इनमें से अधिकतर मरीज (88%) ने कब्ज की जांच से पहले से ही कॉलोनोस्कोपी कर ली थी। जबकि जांच में पता चला कि 56 फीसदी मरीजों में डिस्सिनर्जियानामक एनोरेक्टल फंक्शन का समन्वय मौजूद था। साथ ही 15 फीसदी मरीजों में धीमी गति से पारगमनकब्ज (धीरे से मल निकलना) मौजूद था।
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डॉ. अरोड़ा ने बताया कि बाकी मरीजों में या तो सामान्य पारगमन या आई.बी.एस. (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम) प्रकार की कब्ज थी। इन मरीजों को बायोफीडबैक थेरेपी (बैलून द्वारा पुरानी कब्ज का इलाज) नामक विशेष तकनीक से उपचार शुरू किया गया।
अस्पताल के एक अन्य डॉ. श्रीहरि ने बताया कि बायोफीडबैक थेरेपी में गुब्बारेके जरिए मरीजों को प्रोसीजर किया जाता है। इस प्रोसीजर के दौरान एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद ली जाती है। यह पूरी प्रक्रिया जीआई मोटिलिटी लैब में होती है। बीते दो साल के दौरान डिस्सिनर्जिया (बड़ी आंत और मल द्वार केबीच में तालमेल की कमी) से पीड़ित 72 मरीजों की बायोफीडबैक थेरेपी हुई। इस दौरान यह देखने को मिला कि 70 फीसदी मरीजों ने प्रोसीजर पूरा होने के बाद लाभ मिलने की प्रतिक्रिया दी है। प्रो. अरोड़ा ने बताया कि अध्ययन सेऔ कब्ज के प्रकार का उचित औरसमय पर मूल्यांकन के साथ साथ सही चिकित्सा से पुरानी कब्ज ठीक होने की जानकारी मिली है।