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आर्मी में राइफलमैन को डीटीसी बस ने कुचला, कोर्ट ने कहा-1.17 करोड़ मुआवजा दो

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: देव कश्यप Updated Tue, 13 Aug 2019 06:26 AM IST
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DTC bus crushed army rifleman, court said - give 1.17 crore compensation
सांकेतिक तस्वीर
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ढाई साल पहले डीटीसी बस की टक्कर से जान गंवाने वाले सेना के जवान के आश्रितों को दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) ने 1.17 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। दिसंबर 2016 में उद्योग भवन के नजदीक जेब्रा क्रॉसिंग से सड़क पार करते हुए भारतीय सेना के राइफल मैन को बस ने ट्रैफिक सिग्नल जंप कर रौंद दिया था।



पटियाला हाउस अदालत के वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण ने राइफल मैन रामकुमार यादव की मां, पत्नी व दो बच्चों को मुआवजा राशि देने का निर्देश दिया है। जिस समय हादसा हुआ था तब रामकुमार सेना मुख्यालय, सेना भवन में तैनात था। अदालत ने कहा कि केस के तथ्यों व हालात के मद्देनजर यह साबित होता है कि हादसा डीटीसी बस चालक की लापरवाही से हुआ था। उसने गफलत से बस चलाते हुए ट्रैफिक सिग्नल जंप किया और रामकुमार को टक्कर मारी। दावा याचिका के मुताबिक राम कुमार उद्योग भवन बस स्टॉप के सामने सड़क पार कर रहा था। उस समय डीटीसी बस ने उसे टक्कर मार दी थी। दिल्ली पुलिस के एएसआई नरेंद्र पाल सिंह ने बतौर चश्मदीद अपने बयान में कहा कि बस ने रामकुमार को टक्कर मारने से पहले कई वाहनों को ओवर टेक किया और टैफिक सिग्नल को जंप कर हादसे को अंजाम दिया।
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दुर्घटना होने पर ऐसे दायर कर सकते हैं याचिका 
किसी के परिवार में सड़क हादसे में कोई मौत हो जाती है तो परिजन जिला अदालत परिसर में बने सड़क दुर्घटना दावा अधिकरण में मुआवजे के लिए याचिका दाखिल कर सकते हैं। याचिका में परिवार वाले वाहन चालक से लेकर वाहन मालिक और बीमा कंपनी को प्रतिवादी बना सकते हैं। ऐसे मामलों में कोर्ट याचिका पर सुनवाई करती है। जो लोग दुर्घटना में चोटिल हो जाते हैं वह खुद मुआवजे के लिए कोर्ट जा सकते हैं। 

हर दुर्घटना का मामला जाता है कोर्ट में 
जिन दुर्घटनाओं की पुलिस में रिपोर्ट होती है वह सभी कोर्ट में जाते हैं। कड़क़ड़डूमा कोर्ट के वकील विशेष राघव कहते हैं कि हादसे के बाद पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती है तो जांच अधिकारी को विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट (डार) कोर्ट में पेश करना अनिवार्य है। तकरीबन सभी मामलों में रिपोर्ट दर्ज होती है और उस पर डार पेश की जाती है। इस पर कोर्ट संज्ञान लेकर आरोपियों व पीड़ितों को नोटिस जारी कर बुलाती है और खुद दावा याचिका पर सुनवाई करती है। पीड़ित पक्ष कोर्ट में नहीं आता है तो एक दो बार मौका देकर मुकदमा बंद कर देती है। पीड़ित पक्ष खुद अपने वकील के जरिए दावा याचिका दायर करना चाहे तो उसका विकल्प है। इसके लिए उसे सरकार की ओर से वकील भी मिल सकता है। इसकी जानकारी दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय से हासिल की जा सकती है। 

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