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Delhi NCR News: भ्रष्टाचार के मामले में एक पुलिस अधिकारी सहित दो बरी

Amar Ujala Bureau अमर उजाला ब्यूरो
Updated Sun, 14 Sep 2025 07:49 PM IST
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- शिकायतकर्ता के अनुसार जांच अधिकारी ने अभियुक्त आशुतोष से उसका पक्ष लेने के लिए तीन लाख रिश्वत मांगी थी
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अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। राउज एवेन्यू कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में एक पुलिस अधिकारी समेत दो को बरी कर दिया। अदालत ने अभियुक्त पुलिस अधिकारी केहर सिंह और आशुतोष कुमार सिंह को दंडनीय अपराध से बरी किया। विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट गगनदीप सिंह ने आदेश सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष रिश्वत की मांग और स्वीकृति के मूलभूत तथ्यों को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। इससे पहले कि अभियुक्तों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत अनिवार्य उपधारणा प्रस्तुत की जा सके। यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे के मानक पर अपना मामला साबित करने में विफल रहा है। ऐसे में संदेह का लाभ अभियुक्तों को दिया जाना चाहिए।

यह मामला एक मई, 2016 को जनकपुरी थाना में तैनात जांच अधिकारी केहर सिंह और नोएडा के इंडिया लिमिटेड के एचएचईसी के डीजीएम आशुतोष कुमार सिंह उर्फ एके सिंह के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के आरोप से जुड़ा है। शिकायतकर्ता प्रताप सिंह यादव के अनुसार अभियुक्त आशुतोष ने खुद को कई सरकारी अधिकारियों के साथ अच्छे संपर्क रखने वाले एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के रूप में पेश कर उससे एक करोड़ रुपये की ठगी की थी। जब एफसीआई द्वारा भुगतान जारी नहीं किया गया तो शिकायतकर्ता ने जनकपुरी में लिखित शिकायत दर्ज कराई। इसमें अभियुक्त आशुतोष के खिलाफ जनकपुरी थाने में मामला दर्ज हुआ। इस मामले की जांच अभियुक्त केहर सिंह कर रहे थे, जिस पर शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जांच अधिकारी ने अभियुक्त आशुतोष से उसका पक्ष लेने के लिए रिश्वत की मांग थी।
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मामला रफा-दफा करने के लिए मांगी तीन लाख रिश्वत : आरोप

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जांच अधिकारी ने आशुतोष और उसके बीच मध्यस्थता करवानी चाही। जांच अधिकारी ने आशुतोष को यह भी सलाह दी कि उसके द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के बजाय, उच्च न्यायालय से एफआईआर रद्द करवाना बेहतर होगा। यह भी आरोप है कि जांच अधिकारी ने आशुतोष से अवैध रिश्वत के रूप में तीन लाख रुपये स्वीकार करने पर सहमति व्यक्त की, जिसे एक मई, 2016 को जनकपुरी, दिल्ली थाना में जांच अधिकारी को सौंपना था।
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