एक साधारण स्कूल टीचर के बेटे ने खड़ी कर दी 'माइक्रोमैक्स' कंपनी

राहुल शर्मा को आज आप कई वजहों से जान सकते हैं जिनमें से एक उनका बॉलीवुड अभिनेत्री असीन से शादी करना भी रहा है। लेकिन इन सब से पहले राहुल वो व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत को भारत में ही बना वो मोबाइल फोन दिया जिसके इस्तेमाल के बाद देश की ज्यादातर आबादी का मोबाइल चार्ज करने का टेंशन लगभग खत्म हो गया। लेकिन एक मास्टर साहब के बेटे का इस ऊंचाई तक पहुंचना कोई बच्चों का खेल नहीं था। इसके पीछे सालों की मेहनत और लगन थी।

राहुल के बचपन की जिंदगी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं लेकिन जितनी जानकारियां संभव हो पाई हैं उसके मुताबिक राहुल के पिता एक स्कूल में शिक्षक थे। आज की तारीख में महरौली के एक आलिशान बंगले में रहने वाले और दुनिया की सबसे महंगी कार में से एक रोल्स-रोयस घोस्ट की सवारी करने वाले राहुल ने एक वक्त बहुत परेशानी में अपनी जिंदगी काटी है। गाड़ियों में लटक कर राहुल अपने स्कूल तक पहुंचते थे।

कॉलेज की बात करें तो राहुल ने दो बार ग्रेजुएशन की है। पहली बार नागपुर यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल में इंजीनियरिंग की और उसके बाद कनाडा चले गए। वहां से राहुल ने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया। माइक्रोमैक्स से पहले की बात करें तो राहुल का मार्केटिंग और सेल्स में 13 सालों का एक्सपीरियंस रहा है। एक अच्छे प्रोडक्ट गुड्स और टेक्नोलॉजी मार्केटर के तौर पर राहुल को एक जीनियस मार्केटिंग एक्सपर्ट के तौर पर देखा जाता है।
अपने खुद के काम की शुरुआत से पहले राहुल ने देश ही नहीं दुनियाभर की कई नामी-गिरामी कंपनियों के लिए कैम्पेनिंग की है जिनमें प्रोक्टर एंड गैम्बल, माइक्रोसॉफ्ट एक्सबॉक्स सहित शॉ कम्युनिकेशन जैसी कंपनियों का नाम सुमार है। बाद में शॉ कम्युनिकेशंस ने उन्हें वाईस प्रेसिडेंट नियुक्त किया था।
दूसरों के लिए काम करते-करते राहुल को अब ये समझ आने लगा था कि अब खुद के लिए भी काम किया जाए और यहां उनके काम आए उनके पुराने कनेक्शन जो उन्होंने अपने प्रोफेशनल करियर के दौरान तैयार किए थे।

इसकी नींव 1990 में ही पड़ी जब राहुल के पिता जी ने उन्हें एक कंप्यूटर गिफ्ट किया था। उन्हें ये टेक्नोलॉजी बेहद ही पसंद आई। वो दिमाग में इस कदर घर कर गई कि साल 2000 में ही अपने तीन और दोस्तों के साथ माइक्रोमैक्स सॉफ्टवेर कंपनी की शुरुआत कर दी।
शुरुआती 7 सालों तक ऐसा ही चलता रहा। माइक्रोमैक्स सॉफ्टवेर खुद में कई तरह के चेंज करती रही। ये एक आईटी सॉफ्टवेर कंपनी थी। बाद में कंपनी नोकिया और एयरटेल के लिए पीसीओ फोन बेचने का काम करने लगी। इन्हीं सालों में एक घटना घटी। जहां से राहुल का दिमाग चौंका और माइक्रोमैक्स मोबाइल की शुरुआत हुई।

राहुल बंगाल के एक गांव में थे। गांव का नाम था बहरमपुर। ये 2007 की बात है। उन्होंने देखा कि एक पीसीओ वाला अपने ट्रक की बैटरी से अपने पीसीओ को चला रहा है। हर रात वो ट्रक की बैटरी को अपने साइकिल में बांधकर चार्ज के लिए ले जाता फिर सुबह उसे लेकर पीसीओ चलाता।
इसके बाद उन्होंने देखा कि इस मेहनत का फल ये था कि उस पीसीओ (PCO) ऑपरेटर के बूथ पर लोगों की लंबी कतार होती थी। उसे अच्छा खासा मुनाफा हो जाता था। उस पीसीओ बूथ के मालिक के इस उपाय को देख कर राहुल का दिमाग खुला। यहीं से 2008 में माइक्रोमैक्स ने मोबाइल फोन बनाने और बेचने की तरफ अपना फोकस बढ़ाया।

जैसा कि बताया जाता है उसी साल माइक्रोमैक्स ने 'द-एक्सट्रीम' नाम से पहला फोन तैयार किया जिसके पहले बैच में '10000' फोन तैयार किए गए थे और ये फोन देखते ही देखते बिक गए। इसके बाद की कहानी अगली पीढ़ी के लिए इतिहास होगी जो हमने अपने पास्ट में बीतते देखा है।
राहुल को फॉर्चुन मैगजीन के ग्लोबल पॉवर लिस्ट-2014 में जगह दी गई। इसके बाद 2014 में ही फॉर्चुन मैगजीन ने '40 अंडर 40' लिस्ट में भी जगह दी।