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रोशनी यहां है: कभी पढ़ने के लिए घर से भागे, बेचने पड़े पत्नी के गहने-ऑफिस.. अब 226 करोड़ रुपये की कंपनी के मालिक
अमर उजाला नेटवर्क।
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Mon, 21 Jul 2025 08:30 AM IST
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सार
राजस्थान के उद्यमी तुषार मित्तल युवाओं के लिए मिसाल हैं। इन्होंने आर्थिक तंगी के बावजूद पढ़-लिख कर खुद की पहचान बनाई। दो धंधों में मिली नाकाम के बाद भी इन्होंने हार नहीं मानी। पार्टनर के धोखा देने के बाद भी इन्होंने ड़ी 200 करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी कर दी।

तुषार मित्तल के बारे में जानिए
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
एक छोटे-से गांव के किराना दुकानदार के बेटे तुषार मित्तल कई संघर्षों और चुनौतियों से जूझकर आज करोड़ों रुपये के कारोबार के मालिक बने हैं। उन्होंने जीवन की हर कठिनाई को अवसर में बदला और स्टूडियोकॉन वेंचर्स जैसी एक सफल कंपनी खड़ी की...

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वर्षों पहले रुदावल में, एक 12 वर्षीय लड़का अपनी तामील हासिल करने के लिए जूझ रहा था। उसके पिता गांव में ही छोटा-सा किराना स्टोर चलाते थे। व्यवसाय ज्यादातर उधार पर चलता था, भुगतान में देरी होना आम बात थी, इसलिए उसके पिता को घर और दुकान चलाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही थी। और बुरा तो तब हुआ जब एक साल भीषण आग लग गई, जिससे न सिर्फ घर और दुकान, बल्कि उस बच्चे के सपने भी जलकर खाक हो गए। हालांकि, उसके पिता ने फिर से शुरुआत की और अपने बेटे को इस काबिल बनाया कि वह जीवन में मनचाहा मुकाम हासिल कर सके।
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वह 12 साल का लड़का कोई और नहीं स्टूडियोकॉन वेंचर्स (एसकेवी) के मालिक तुषार मित्तल हैं, जिन्होंने जिंदगी में गिरकर उठने का गुण अपने पिता से ही सीखा है। एक समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो लड़का स्कूल जाने के लिए इतना संघर्ष कर रहा है, वही एक दिन करोड़ों रुपये का व्यापार करेगा। तुषार मित्तल की कहानी युवाओं के लिए एक मिसाल है कि अगर कुछ पाने का जज्बा और संकल्प हो, तो कोई चुनौती या बाधा मंजिल तक पहुंचने का आपका रास्ता नहीं रोक सकती।
पढ़ने के लिए घर से भागे
तुषार मित्तल पैदल चलकर ही सरकारी स्कूल जाते और पढ़ाई करते। उस समय ज्यादातर शिक्षक पढ़ाने पर खास ध्यान नहीं देते थे। स्कूल में पढ़ाई की गुणवत्ता तो खराब थी ही, घर में आर्थिक तंगी भी थी, सो तुषार को पढ़ाई छोड़कर पिता के साथ किराने की दुकान पर बैठना पड़ा। हालांकि, उनके चाचा पढ़ाई करने के लिए हमेशा उनकी हौसला अफजाई करते थे। उन्हीं से प्रेरित होकर वह आगे पढ़ाई करने के लिए घर से भाग गए। इसके बाद उन्होंने अपने रिश्तेदारों की मदद से आईआईटी में प्रवेश लेने के लिए कोटा की एक कोचिंग संस्थान में दाखिला ले लिया।
बचपन से था बिजनेस करने का हुनर
कोटा में तुषार मित्तल ने इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। आईआईटी में दाखिले की प्रवेश परीक्षा के अपने पहले प्रयास में वह असफल तो हुए ही, आर्थिक तंगी के चलते फिर से तैयारी भी न कर सके। हालांकि, आईआईटी में तो नहीं, लेकिन कोटा के ही एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में उन्हें प्रवेश मिल गया। एजुकेशन लोन से फीस का तो जुगाड़ हो गया, लेकिन कोटा में गुजर-बसर करने के लिए भी पैसे चाहिए थे। इसके लिए उन्होंने पार्ट-टाइम जॉब करना शुरू कर दिया और कोटा में एक कैंटीन भी चलाई। यह पहली बार नहीं था जब तुषार ने अपनी उद्यमशीलता का परिचय दिया था। बचपन में भी वह अपने पिता से पैसे लेकर कॉमिक्स खरीदते थे और फिर उन्हें अपने दोस्तों को किराए पर देकर दो-चार पैसे कमा लेते थे।
स्टेशन पर गुजारने पड़े दिन
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जब तुषार दिल्ली पहुंचे, तो कुछ दिन उन्हें निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर गुजारने पड़े, क्योंकि उनके पास कमरा लेने के लिए पैसे नहीं थे। कुछ समय बाद उनकी नौकरी डीएलएफ में लग गई। हालांकि, उन दिनों वह संवाद कौशल की समस्या से जूझ रहे थे। उन्हें लगता था कि शहर में भाषा किसी गांव के लड़के को कभी आगे नहीं बढ़ने देगी। वह देर रात तक काम करते थे, ताकि इस कमी की भरपाई मेहनत से की जा सके।
बेचना पड़ा ऑफिस, पत्नी के गहने
डेढ़ साल से भी कम समय में उन्होंने डीएलएफ की नौकरी छोड़ दी और खुद का बिजनेस शुरु करने का फैसला किया। हालांकि, उनके शुरुआती दो धंधे पार्टनर के विश्वासघात के कारण असफल हो गए। इसके बाद तुषार मित्तल ने स्टूडियोकॉन वेंचर्स (एसकेवी) की स्थापना की। कुछ ही समय में कंपनी 100 करोड़ रुपये के आंकड़े के करीब पहुंच गई। हालांकि, कुछ समय बाद ही कंपनी को 80 करोड़ रुपये का घटा भी हुआ, जिससे उबरने के लिए उन्होंने गुरुग्राम स्थित अपना ऑफिस, पत्नी के सारे गहने बेच दिए और जीवन भर की बचत लगा दी। लगभग एक साल बाद धंधा फिर से पटरी पर आ गया, जब कंपनी ने 121 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया। वित्तीय वर्ष 2024 में एसकेवी का राजस्व लगभग 226 करोड़ रुपये का था।
युवाओं को सीख
- अगर अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरे दिल से मेहनत की जाए, तो सफलता जरूर मिलती है।
- अगर आप लक्ष्य बनाकर हौसले के साथ अगर किसी काम को अंजाम देंगे, तो एक दिन मंजिल को पा ही लेंगे।
- मुश्किलें तो आती-जाती रहेंगी, अपने लक्ष्य पर टिके रहना मायने रखता है।