एक वक्त पर पूरे घर की कमाई थी 50रुपए, आज हैं करोड़ों के मालिक

वो ना कार रखता है और ना ही किसी बड़े बंगले में रहता है, ना ही बड़ी गाड़ियों का शौक है और ना ही कुछ दिखाने का। डॉ. वेलुमनी अरोक्यास्वामी के पिता जी एक किसान थे। बेहद ही मामूली किसान, जिसकी अपनी जमीन तक नहीं थी। वेलुमनी का जन्म तमिलनाडु के कोइम्बटूर के पास एक गांव में हुआ था।

पिता की हालत इतनी खराब थी कि उन्होंने घर की जिम्मेवारी तक से हाथ धो लिया था। उस घर की जिम्मेवारी जिसमें उनकी पत्नी सहित इनके 4 बच्चे भी थे।
इस बुरे वक्त में मां ने घर की कमान थामी। उन्होंने दो भैंसे खरीदे और उससे दूध निकालकर बेचने लगीं। इन दो भैंसों से उन्हें हफ्ते का 50 रुपया मिल जाता था और इन 50 रुपयों की बदौलत उन्होंने 10 साल तक अपने घर को चलाया।
इतने सालों तक घर में रहने के बाद डॉ. वेलुमनी को कॉलेज की पढ़ाई के लिए घर छोड़ना था। वजह ये कि शादी होगी तब अच्छी लड़की मिलेगी, वरना मुश्किल है।

19 साल की उम्र में इन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया। अब नौकरी की तलाश थी। लेकिन ये वो वक्त था जब लोगों को नौकरी के लिए जानकारी से ज्यादा अंग्रेजी की समझ जरूरी हुआ करती थी और साथ ही साथ हर किसी को एक अनुभवी कामगार की तलाश होती है। नौकरी नहीं मिल रही थी अंत में कोइम्बटूर में ही एक कंपनी में केमिस्ट के तौर पर काम मिला। जहां इन्हें महीने के 150 रुपए मिलते थे।
इन 150 में से वेलुमनी 100 रुपए अपने घर भेज दिया करते थे क्योंकि इन्हें अपनी मां की मेहनत और मजबूरी का इल्म था।
वेलुमनी जिस कंपनी के लिए काम कर रहे थे वो कंपनी बंद होने के कगार पर थी। इसके ठीक 1 महीने पहले इन्होंने अपनी नौकरी से इतीफा दे दिया और मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में नौकरी के लिए आवेदन दिया। अर्जी मान ली गई और काम मिल गया।
वहां उन्हें महीने के 800 रुपए मिलते थे। लेकिन वेलुमनी इससे पहले जहां काम करते थे वहां इतना काम कर चुके थे कि इन्हें यहां का वर्क लोड कम ही लगता था। इन्होंने अपनी उर्जा को दूसरे दिशा में लगाया और वहीं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। इससे उन्हें 800 रुपए की एक्स्ट्रा कमाई होने लगी, इस पूरे 1600 में से भी वो 1200 अपनी मां को भेज दिया करते थे। उन्होंने अपनी मां से झूठ कहा था कि उन्हें 2000 रुपए की नौकरी मिली है ताकि दूर रह कर इतने कम पैसे की नौकरी करने से वो मना न कर दें।

ये सब कुछ 15 सालों तक चला। अब तक वेलुमनी ने अपनी पीएचडी की डिग्री पूरी कर ली। अब वो डॉ. वेलुमनी हो गए थे। अपने पीएचडी के दौरान इन्हें समझ आ गया था कि थायरॉइड के फील्ड में टेस्ट करके लोग बहुत पैसे कमा रहे हैं तो फिर मैं क्यों नहीं कमा सकता!
साल 1995 में एक रात अपने अंदर उफान मार रही बेचैनियों को शांत करते हुए, उन्होंने रात के 2 बजे अपनी नौकरी से रिजाइन मार दिया और अपने 1 लाख रुपए जमा प्रोविडेंट फंड के पैसे से उन्होंने मुंबई में ही एक टेस्टिंग लैब बनाया।
थायरॉइड के लैब का काम बढ़ाते हुए उन्होंने देशभर के अलग-अलग हिस्सों में पहले सिर्फ सैंपल लैब खोले और इसकी टेस्टिंग मुंबई के सेंट्रल सेंटर में किया जाता था।

2011, में नई दिल्ली की कंपनी सीएक्स-पार्टनर्स ने थायरोकेयर में 30% स्टेक खरीद लिया। जिसकी कीमत लगाई गई तकरीबन 188 करोड़ रुपए और कंपनी की पूरी वैल्यू बनी 600 करोड़ रुपए। इसके बाद एक के बाद एक दूसरे इन्वेस्टर्स ने भी कंपनी में अपने पैसे इन्वेस्ट करने शुरू किए।
आज की तारीख में थायरोकेयर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों की कंपनी है और डॉ. अरोक्यास्वामी वेलुमनी की संपत्ति तकरीबन 1200 करोड़ से भी ज्यादा की है। याद रहे ये वही आदमी है जिसके घर की पूर कमाई एक वक्त पर हफ्ते का 50 रुपया हुआ करता था।
तभी किसी कवि ने लिखा है...
'दिलों में तुम अपनी बेताबियां लिए चल रहे हो तो जिंदा हो तुम,
नजर में ख्वाबों की बिजलियां लिए चल रहे हो तो जिंदा हो तुम'