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Tamil Nadu: मद्रास विश्वविद्यालय पर कॉर्पस फंड उपयोग करने का आरोप, SPCSS-TN ने जताई शुल्क बढ़ोतरी की आशंका

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: आकाश कुमार Updated Mon, 01 Dec 2025 04:36 PM IST
सार

Tamil Nadu: तमिलनाडु की स्टूडेंट्स, पैरेंट्स एंड सिटिजन्स कलेक्टिव फॉर सोशल स्ट्रगल ने मद्रास विश्वविद्यालय प्रशासन पर विश्वासघात का आरोप लगाया। स्पेशल सिंडिकेट ने सेवानिवृत्ति लाभों के भुगतान हेतु कोष (कॉर्पस फंड) का उपयोग करने का निर्णय लिया, जिसे सार्वजनिक वित्त पोषित संस्था की प्रकृति के खिलाफ बताया गया और शुल्क वृद्धि की आशंका जताई।
 

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Using Corpus Fund Is Betrayal of Trust, SPCSS-TN Warns Madras University Administration
University of Madras - फोटो : Official Website (unom.ac.in)
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Madras University: तमिलनाडु की स्टूडेंट्स, पैरेंट्स एंड सिटिजन्स कलेक्टिव फॉर सोशल स्ट्रगल (SPCSS-TN) ने मद्रास विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। संगठन का कहना है कि हाल ही में स्पेशल सिंडिकेट द्वारा कोष (कॉर्पस फंड) से धन निकालकर लंबित सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान करने का फैसला "पूर्ण रूप से भरोसे का विश्वासघात" है। इससे विश्वविद्यालय का सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थान वाला दर्जा खतरे में पड़ सकता है।

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शिक्षा कार्यकर्ताओं के अनुसार, सिंडिकेट का यह निर्णय अदालत में दिए गए आश्वासनों का उल्लंघन करता है और एक सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालय की मूल भावना को कमजोर करता है।

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सोमवार को जारी बयान में SPCSS-TN के महासचिव पी. बी. प्रिंस गजेन्द्र बाबू ने कहा कि विश्वविद्यालय न तो सरकार से वित्तीय सहायता मांग रहा है और न ही राज्य से भरपाई कर रहा है, जबकि बजटीय आवंटन प्रशासन की वैधानिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि मद्रास विश्वविद्यालय सरकार से कोई भिक्षा नहीं मांग रहा। स्पेशल सिंडिकेट में जो हुआ वह पूरी तरह से भरोसे का विश्वासघात है।

निर्णय प्रक्रिया पर सवाल

बाबू ने आरोप लगाया कि सिंडिकेट में शामिल एक्स-ऑफिशियो (पदेन) सदस्य निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे निर्वाचित सदस्यों की लोकतांत्रिक भूमिका कमजोर हो जाती है। उन्होंने कहा, "पदेन सदस्य निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, जिससे लोकतांत्रिक सिंडिकेट की मूल भावना समाप्त होती है।"

आर्थिक परिणाम और शुल्क वृद्धि का खतरा

बाबू ने चेतावनी दी कि इस निर्णय से भविष्य में विश्वविद्यालय शुल्क बढ़ाने के लिए बाध्य होगा और संस्था धीरे-धीरे व्यावसायिक मॉडल की ओर बढ़ जाएगी। उन्होंने प्रश्न उठाया कि विश्वविद्यालय कोष को मजबूत करने के लिए पैसा कहां से लाएगा? भविष्य के खर्च कौन वहन करेगा?

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय पहले से ही परीक्षा, मूल्यांकन और शोध प्रबंध मूल्यांकन के लिए भारी शुल्क लेता है। बाबू ने कहा कि यदि विश्वविद्यालय का खर्च शुल्क के माध्यम से पूरा किया जाएगा, तो यह एक व्यावसायिक गतिविधि होगी और सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थान की प्रकृति समाप्त हो जाएगी।

NEP 2020 से जोड़ा मामला

उन्होंने इस फैसले को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) से जोड़ते हुए कहा कि इससे विश्वविद्यालय "पे एंड स्टडी" मॉडल में फंस सकता है, जो सामाजिक न्याय के विपरीत है।

नागरिकों की भूमिका पर जोर

बाबू ने लोकतांत्रिक सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में अंतिम निर्णय जनता का होता है और जब सार्वजनिक संस्थान खतरे में हों तो लोग सरकार से सवाल करने का अधिकार रखते हैं। उन्होंने कहा, "सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों की रक्षा और मजबूती सरकार का कर्तव्य है। यदि चुनी हुई सरकार विफल होती है, तो जनता को प्रश्न पूछने और संघर्ष करने का पूर्ण अधिकार है।"

अंत में उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक सहभागिता अभियान जारी रखा जाएगा, ताकि नागरिकों की भूमिका लोकतांत्रिक ढांचे में मजबूत हो सके।

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