Exclusive: ‘कर्नल सोफिया का सपना था कलाम साहब के साथ काम करना’, जुड़वा बहन शाइना ने सुनाए उनसे जुड़े किस्से
Colonel Sophia Qureshi Sister Shyna Sunsara Interview: कर्नल सोफिया कुरैशी की बहन शाइना को अपनी बहन पर गर्व है। हालांकि, शाइना को एक दुख अभी भी है। जानिए अमर उजाला के साथ बातचीत में शाइना ने क्या-क्या बताया।


विस्तार
'ऑपरेशन सिंदूर' में ब्रीफिंग करने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी की देशभर में चर्चा हो रही है पर कम ही लोग जानते हैं कि उनकी जुड़वां बहन डॉ. शाइना की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है। शाइना ने भी आर्मी जॉइन करने का सपना देखा था लेकिन वह पूरा नहीं हो सका। आज वह सिंगल मदर होकर समाज सेवा और पर्यावरण संरक्षण में एक्टिव हैं।
अमर उजाला से खास बातचीत में शाइना सुन्सारा ने अपनी जद्दोजहद और अपनी बहन पर हुए गर्व के बारे में खुलकर बात की। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश...
आपके तो खून में ही देशभक्ति है। दादा, परदादा और उनकी भी कहानियां। क्या आपको भी बचपन से लगता था कि आपकी किस्मत में सिर्फ वर्दी है?
बिल्कुल, बचपन से ही हमारे कानों में वही गूंजता था- 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।' दादी-दादी की कहानियां सुन-सुनकर ऐसा लगता था कि बस कुछ बड़ा करना है, सिर्फ टाइमपास नहीं। हम उन बच्चों में से थे ही नहीं जो यूंही वक्त गुजार दें।
पढ़ाई पुणे, देहरादून, फिर जहां मौका मिला, वहीं से की। लेकिन दिल में हमेशा वर्दी की तस्वीर थी। एनसीसी ज्वॉइन किया, शूटिंग में बेस्ट बनी, प्राइम मिनिस्टर से अवॉर्ड मिला, गुजरात गवर्नमेंट से गोल्ड मेडल..पर दिल में तो एक ही ख्वाहिश थी- आर्मी की वर्दी पहननी है।
आप और सोफिया, दोनों आर्मी ज्वॉइन करना चाहती थीं। फिर रास्ते कैसे अलग हुए? कौन सा वो मोड़ था जब सपना टूटता सा लगा?
मैंने भी आर्मी ऑफिसर बनने के लिए SSB (Services Selection Board) दिया था, जो आर्मी में जाने के लिए सबसे मुश्किल सिलेक्शन प्रोसेस होता है। लेकिन मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ। सच कहूं तो दिल टूटा था, बहुत रोई थी। सालों तक.. क्योंकि मैंने तो सबकुछ आर्मी के लिए छोड़ दिया था।
बस वर्दी पहननी है, यही सपना देखा था। मेरी बहन का भी वही जज्बा था। वो डीआरडीओ (Defence Research and Development Organisation) में भी काम करना चाहती थी। अब्दुल कलाम जी के साथ काम करने का सपना था उसका। जैसे ही आर्मी में लड़कियों के लिए एंट्री खुली, हम दोनों ने तय किया अब तो जाना ही है। पर मेरे लिए दरवाजा बंद हो गया। वो दर्द आज भी वहीं है।

जब आपकी बहन ने पहली बार आर्मी जॉइन की और आप दोनों की राहें अलग हुईं, उस वक्त आपके दिल में क्या चल रहा था?
देखिए, हम तो कॉलेज तक हर पल साथ ही थे। मतलब जहां वो जाती थी, मैं भी उसके पीछे-पीछे। मैं उससे छोटी हूं ना तो उसकी परछाई जैसी रहती थी। लेकिन जिस दिन उसने आर्मी जॉइन किया न वो पल ऐसा था जैसे दिल का एक हिस्सा छूट गया हो। तब से हमारी राहें अलग हो गईं पर दिल का कनेक्शन तो वहीं का वहीं रहा।
कोई ऐसा किस्सा जो आपको आज भी रुला देता हो, जब आप दोनों साथ थे?
हां, एक किस्सा कभी नहीं भूल सकती। लाइब्रेरी में हम दोनों 10-12 घंटे बैठकर पढ़ाई करते थे। मेरी बहन की आदत थी कि आते ही मेरे कंधे पर हाथ रखती थी। एक बार वो नहीं थी और किसी और ने ऐसे ही मेरे कंधे पर हाथ रख दिया, तो मुझे एक पल को लगा कि मेरी बहन ही आई है। जब मुड़ कर देखा तो वो नहीं थी। वो एहसास आज भी आंखें नम कर देता है।

जब पूरी दुनिया की निगाहें आपकी बहन पर थीं, जब वो देश को ब्रीफ कर रही थीं... उस लम्हे को आप कैसे बयां करेंगी?
वो पल मेरे लिए सपना जैसा था। अचानक किसी ने कॉल किया, बोला 'टीवी ऑन करो, तुम्हारी सिस्टर आ रही है।' पहले तो यकीन ही नहीं हुआ। जब स्क्रीन पर देखा कि मेरी बहन ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग कर रही है, तो मेरी धड़कनें तेज हो गईं।
एक तरफ गर्व था कि वो मेरी बहन है, दूसरी तरफ दिल कह रहा था, 'देखो, आज वो पूरे हिंदुस्तान के सामने खड़ी है।' और उस दिन, जो सरकार ने कहा था, 'हम बदला लेंगे', वो पूरा हुआ। डबल खुशी थी - एक देश के लिए, एक बहन के लिए।
आप दोनों में से कौन बड़ी है?
मेरी बहन मुझसे सिर्फ 15 मिनट बड़ी है। लेकिन उन 15 मिनट में भी वो हमेशा मुझे प्रोटेक्ट करने वाली बड़ी बहन ही रही है। दिलचस्प बात यह है कि हम 5 भाई-बहन हैं। एक बड़ी बहन है, फिर हम दोनों ट्विन सिस्टर्स हैं और दो ट्विन भाई भी हैं, जो हमसे छोटे हैं।

जब आपने आर्मी की बजाय ग्लैमर फील्ड चुनी, तो घरवालों का क्या रिएक्शन था? सपोर्ट था या...?
सपोर्ट? बिल्कुल नहीं था। खासकर मेरी मम्मी… उन्हें ये सब बिल्कुल भी पसंद नहीं था। उन्होंने साफ मना कर दिया था, 'तू क्यों कर रही है ये सब?' उनके लिए ये सब कुछ फालतू था। मुझे ये बात समझ में आती थी, क्योंकि मैं मुस्लिम बैकग्राउंड से आती हूं और उनके लिए ये सब नया था।
वो चाहती थीं कि मैं एक सुरक्षित करियर चुनूं, लेकिन मुझे पता था, मुझे यही करना है। और हां मुझे उनके सपोर्ट की कमी जरूर महसूस हुई, लेकिन मैंने खुद को यकीन दिलाया कि मेरा रास्ता अलग है। वक्त के साथ मम्मी ने मेरी पसंद को समझा और अब वो बहुत खुश हैं।
आपने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट का जिक्र किया था… क्या आप बता सकती हैं कि आपका वो सपना क्या है, जो आपकी आंखों में बसता है?
देखिए, आजकल बहुत लोग अपने मम्मी-पापा के लिए रोते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं। पर हम ये भूल जाते हैं कि हमारी असली 'मां' तो हमारी धरती है। मैं चाहती हूं कि लोग सिर्फ अपनी मां के लिए नहीं, बल्कि 'मदर अर्थ' के लिए भी उतनी ही फिक्र करें। मेरा सपना है एक असली जंगल बनाना।
मैं अब तक करीब 18 लाख पेड़ लगा चुकी हूं और 3 लाख तो मैंने खुद गिने हैं। लेकिन ये सपना सिर्फ पेड़ लगाने तक नहीं रुकता, ये तो बस एक शुरुआत है। मेरा उद्देश्य है, इस जंगल को एक 'ग्रीन ओएस' बनाने का - जहां लोग सीखें, समझें और खुद को प्रकृति से जुड़ें।

हां, बिल्कुल। जब आप अकेले होते हो, तब ही असली इम्तिहान होता है। बच्चों की परवरिश, करियर, फाइनेंशियल प्रेशर - सब कुछ खुद ही संभालना पड़ता है। उस वक्त ही समझ में आता है कि असली स्ट्रॉन्ग कौन है। ये सब कुछ सिखाता नहीं है, हालात सिखा देते हैं। मैं ज्यादातर समय सोशल वर्क करती हूं। मैं और सोफिया मिलकर बच्चों के लिए फंड्स जुटाते हैं, सिंगल वुमन को स्किल्स सिखाते हैं ताकि वो खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। मैं खुद सिंगल पेरेंट हूं, मुझे उनका दर्द समझ में आता है। कई बार फंड्स नहीं होते, फिर भी मैं कोशिश करती हूं। जब आप दिल से काम करते हो, तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं।