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Samwad 2025: ‘मोजा फटा है तो मैं छिपाता नहीं’, संघर्ष पर बोले विनीत; अमित सियाल ने कहा- पीछे मुड़कर नहीं देखता

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: ज्योति राघव Updated Fri, 18 Apr 2025 03:50 PM IST
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सार

Amar Ujala Samwad 2025: अमर उजाला संवाद के दूसरे दिन इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में चर्चा जारी है। आज 18 अप्रैल को अभिनेता अमित सियाल और विनीत कुमार सिंह ने कार्यक्रम में शिरकत की है। यहां उन्होंने सिनेमा पर दिलचस्प चर्चा की।

Samwad 2025: actor Amit Sial and Vineet Kumar Singh talks about cinema at Amar Ujala Samwad event Lucknow
विनीत कुमार सिंह - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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अमर उजाला के दो दिवसीय वैचारिक संगम संवाद कार्यक्रम का आगाज गुरुवार से लखनऊ में गोमती नगर के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में हो चुका है। आज शुक्रवार को संवाद के दूसरे दिन अभिनेता अमित सियाल यहां पहुंचे। वे इन दिनों आगामी फिल्म 'रेड 2' को लेकर चर्चा में हैं। इसमें वे अजय देवगन के साथ नजर आएंगे। उनके अलावा एक्टर विनीत कुमार सिंह भी कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे। आज संवाद में उन्होंने क्या कहा? जानिए

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संवाद में पहुंचे अमित सियाल से पूछा गया, 'कितना कानपुर अंदर बचा है, मुंबई जाकर भी?'
एक्टर ने कहा, 'आप इंसान को कानपुर से निकाल सकते हो। उसके अंदर से कानपुर नहीं निकाल सकते हो। कानपुर मेरा जन्मस्थान है। वहां पला-बढ़ा हूं। यहां पैदा हुआ तो हिंदी भी अच्छी है। अपने जन्मस्थान से आपकी बहुत सारी यादें जुड़ी होती हैं। मैं कानपुर और कानपुरियों का बहुत आभारी हूं'।

कानपुर वाले जहां होते हैं, वहां रंग लाल हो जाता है। लेकिन, आज केसरी कर दिया है आपने। फिल्म 'केसरी 2' आज रिलीज हुई है। वैसी फिल्में जब आप करते हैं, बतौर भारतीय गुस्सा ही आया कि क्या ऐसे कोई जान ले सकता है। किरदार पर कुछ बताइए?
अमित सियाल ने कहा, 'फिल्म में एक शख्स हैं, वो इंग्लैंड से हैं। उन्होंने जनरल डायर का रोल किया है। बहुत इमोशनल रोल था फिल्म का। जनरल डायर कहता है, 'मैंने क्या गलत किया। सारे कीड़े-मकौड़ों को मारा। सीन खत्म होने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि अमित क्या हमने सच में ऐसा किया है। मैंने उन्हें कहा कि आपने ऐसा नहीं किया आप परेशान मत होइए'। ऐसी फिल्में करने का अपना मजा है'।
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अगला सवाल विनीत से किया गया, 'आपने एक इंटरव्यू में कहा था कि संघर्ष मेरी जिंदगी से शायद खत्म नहीं होगा। लेकिन अब चार-चार फिल्में एक साथ, क्या संघर्ष खत्म हुआ अब?
विनीत कुमार सिंह ने कहा, 'यहां संवाद में बुलाने के लिए अमर उजाला का बहुत-बहुत धन्यवाद। लखनऊ आना, उत्तर प्रदेश आना मेरे लिए घर आने जैसा होता है। यहां आना ऐसा लगता है, घर के आंगन में बैठा हूं और घर के आंगन में बैठना सुखद ही होता है। थिएटर में हम दोनों लोगों की फिल्में एक साथ चल रही हैं। जाट और केसरी चैप्टर 2।  केसरी चैप्टर 2 के लिए मैं अमित सियाल को बधाई देता हूं। सालभर की मेहनत के बाद एक फिल्म पूरी होती है। थिएटर में लगने के बाद यह रिजल्ट का दौर है। परिवार के साथ वक्त निकालकर अमित की फिल्म देखने जरूर जाएं। अब आपके सवाल का जवाब यह है कि जीवन में संघर्ष कभी खत्म नहीं होता। मैंने जो इंटरव्यू दिया था उसका कहने का मकसद यह था कि बेसिक चीजों का संघर्ष जीवन में खत्म होना चाहिए। क्योंकि बेसिक चीजों के लिए संघर्ष करते हुए इंसान का पोटेंशियल कम पड़ने लगता है। जीवन का काफी समय बचपन में चला जाता है। काफी उम्र बुढ़ापे में चला जाता है। जो एक वक्त है 18-20 साल से लेकर तब तक जब तक हाथ-पैर चल रहे हैं, वह वक्त रोटी-कपड़ा-मकान की जद्दोजहद में जाता है तो बड़ा खराब लगता है। मैं यही कहता हूं कि इस जद्दोजहद से निकल सकें तो तभी अंदर की प्रतिभा निखरकर बाहर आ पाती है'।

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अमित सियाल - फोटो : अमर उजाला

आप जैसे लोग संघर्ष पर कम बात करते हैं। आप थोड़ा खुलकर बताइए कि आपका संघर्ष कैसा रहा?
इस पर अमित सियाल ने कहा, 'मैं कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता। कानपुर में निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुआ। उस समय का संघर्ष ऐसा लगता था कि बाप रे यह कब खत्म होगा संघर्ष। मैं कब बड़ा होऊंगा और इससे निजात मिले। लेकिन, अब भी वैसा ही लगता है। मुझे लगता है कि संघर्ष जीवन का हिस्सा है और यह चलता रहता है। संघर्ष ही आपको बढ़ाता है। अगर आप थम गए तो थमा पानी हमेशा बेकार ही होता है। ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें संघर्ष रहा हो मेरे जीवन में और आप में से किसी ने न किया हो। मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ अलग किया है। आपका सबसे बड़ा संघर्ष ये है कि मुझे करना क्या है? मैं 30 की उम्र में एकदम लॉस्ट था। तब मुझे पता चला कि एक्टिंग ही करनी है। एक्टर ही बनूंगा। एक रोटी खाऊंगा दिन में, एक भी नहीं खाऊंगा। कुछ फर्क नहीं पड़ता। यूनिवर्स का विस्तार होता है। हम सभी को विस्तार करते रहना चाहिए। मुझे अब बिल्कुल संघर्ष महसूस नहीं होता, क्योंकि मुझे जो चीज करनी थी वो मिल गई। अब इसमें क्या संघर्ष है। यह तो रोजमर्रा की मुश्किलें हैं। इनसे तो आप निकल ही जाओगी। अपनी लाइफ को अप्रीशिएट करिए। एक दिन जिंदगी बदलेगी। अच्छा वक्त आएगा'। अमित सियाल ने आगे कहा, 'जिंदगी में जब भी डाउन हो तो डिस्कवरी पर जाकर शो देखना। हम सुमद्र के कंण हैं, हम उतने भी नहीं हैं। संघर्ष को भी एंजॉय करिए'।

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विनीत कुमार सिंह - फोटो : अमर उजाला

विनीत क्या आप पीछे पलटकर देखते हैं?
हां मैं देखता हूं, क्योंकि मैं जो जीवन में काम कर रहा हूं। मैंने सपना देखा था तो मुझे गाइड करने वाले बहुत कम लोग थे। गलतियां होंगी इसकी संभावना बहुत ज्यादा थीं। ऐसे में एक ही रास्ता था कि मुड़-मुड़े के देख, ताकि पता चले कि पिछले तीन महीने में क्या किया। पिछले छह महीने में ऐसा क्या हुआ कि ग्रोथ नहीं हो रही। उसका मुझे बहुत फायदा मिला। बचपन से एक कंडीशनिंग रही है परिवारों में कि अपनी कमियों को छिपाएइए। अगर मोजा फटा है तो एक बच्चा बचपन से ही उसे छिपाकर रखता है। घर की बैठक एकदम चकाचक रखने की कोशिश होती है, बेशक घर का हाल बेकार हो। मेरा कहना है कि खोल दो, परदा हटा दो।

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विनीत कुमार सिंह - फोटो : अमर उजाला

शादी में सिर्फ 14 लोगों को लेकर गए विनीत
विनीत ने आगे कहा, 'समाज की जो चीजें हम पर थोप दी जाती हैं, उसे निभाने में आधा जीवन निकल जाता है। मेरी शादी हुई तो सिर्फ 14 लोग गए, क्योंकि अपनी शादी के दवाब में पैसे का तनाव लेकर मुझे पांच और साल का संघर्ष नहीं जोड़ना था। अगर कुछ कार्ड कम छपेंगे तो आपकी मोहब्बत कम नहीं हो जाती। जो लोग उंगली उठा रहे हैं उन्हें पता ही नहीं कि आप किन परिस्थिति से गुजर रहे हैं। ऐसे रिश्ते नहीं चाहिए। ऐसा समाज बनाइए कि लोग छोटे और बड़े की नजर से देखना बंद करे। जो लोग जिम्मेदारी निभा रहे हैं वो कम से कम कुंठा के साथ तो न जिए। बहुत वक्त ऐसा आया कि पैसे नहीं होते थे। पैसे एक व्यवस्था है। मैं कम नहीं हूं। सांस पूरी ले रहा हूं। मेरे अंदर का दम कम नहीं है। ईश्वर ने मेरे शरीर में उतनी ही हड्डियां दी हैं, जिनती बड़ी से बड़ी कुर्सी पर बैठे किसी शख्स को दी। मैं सपने छोटे क्यों देखूं। मैं रुकूंगा नहीं। इसी तेवर को लेकर चलता रहा। मुंबई में 13-14 साल हो गए, मेरे पास अभी भी घर नहीं है। हां, काम कर रहा हूं कि मेरे पास एक छत हो, क्योंकि यह बेसिक जरूरत है। लेकिन, मुझे यह कहने में शर्म नहीं आती'।

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अमित सियाल - फोटो : अमर उजाला

अमित कई बार साथ के लोग कुछ सुझाव देते हैं। आपको कभी ऐसा लगा शूट पर कि ये क्या बता रहा है मुझे?
इस पर अमित ने कहा, 'यह रोज होता है। यह किसी भी काम में होगा। हमारे भी काम में होता है। बहुत बार होता है। कभी-कभी दूसरे की बात सही निकलती है। कभी-कभी हमारी बात सही निकलती है। अपना जो काम है, उसमें बहुत सारे डिपार्टमेंट हैं। सारे लोग बहुत महत्वपूर्ण है। अगर सब साथ में मिलकर एक बुत नहीं खड़ा करेंगे तो काम कैसे होगा। मगर, एक मजेदार किस्सा है कि जब काम नहीं होता था तो मुझे ऑडिशन देने में बड़ी कोफ्त होती थी। मैं एक दिन गया ऑडिशन देने तो एक-दो लाइनें बोलीं। फिर मैंने कहा कि एक और ऑडिशन देना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि अब क्या कर लोगे तुम? मैंने कहा कि कुछ और बेहतर कर सकता हूं। मुझे लगा कि ये लोग जो ऑडिशन लेने आए हैं, वो अपना समय काटने आए हैं। आठ घंटे पूरे करने आए हैं। ऐसी बहुत चीजें हुईं। और जब जवानी ज्यादा थी तो बहुत लड़ाई-झगड़े भी हो जाते थे। बहुत गुस्सा आ जाती थी। अब तरस आने लगा है। अब सोचता हूं कि साउंड, कैमरा एक्शन के बाद तो मुझे ही काम करना है'।

'महारानी' सीरीज आप कर रहे थे तो आपके किरदार में मुझे एक किरदार दिखाई दे रहा था। क्या आपको ऐसा लगा कि आपका किरदार रिलेट हो रहा है?
मैं उन दिनों बहुत काम कर रहा था। मैंने उसे थोड़ा कम सीरियस लिया। पहले दिन मैं पहुंचा तो उन्होंने बहुत मुश्किल सीन दिया। मेरी आदत है कि लाइनों को अपनी तरफ से बनाने की। मैंने कुछ भाषणबाजी चालू करी, लेकिन सुभाष भाई बोले कि लाइनें क्यों बदल रहा है तू। फिर से सीन कर। फिर एक वक्त बाद क्या हुआ, मैं जिस रोल को फॉर ग्रांटेड ले रहा था वो बहुत महत्वपूर्ण हो गया। समझ आया कि एक-एक लाइन को पिरो-पिरोकर लिखा गया है। वैसा ही बोलूं। यह यूं ही कर देने वाला काम नहीं था। उस किरदार के लिए जैसे संवाद लिए गए थे उसका मतलब था। महारानी सीरीज के लिए मुझे अच्छी-खासी मेहनत करनी पड़ी।

विनीत कुमार आप अपने किरदार की लाइनें लिखने पर काफी मेहनत करते हैं। आपने धोनी पर गाना लिखा, कैसे?  
विनीत ने कहा, 'मैं कुछ नहीं लिखता। मैं एक माध्यम हूं। जिस फ्रिक्वेंसी पर लिख रहा होता हूं, यूनिवर्स उसी पर कुछ डाउनलोड कर देता है। हमारे आसपास इस हॉल में कई सारी फ्रिक्वेंसी हैं। अगर आप अपने ट्रांसमीटर को थोड़ा ऊपर लेकर जाएंगे तो यूनिवर्स से आप कुछ रिसीव करने लगते हैं। मैं ऐसा मानता हूं। एक पल के पहले तक मुझे नहीं पता था कि यह गाना आने वाला है और वह अगले ही पल डाउनलोड होता है। एक बार मैं कहीं जा रहा था। एफएम पर कुछ आ रहा था कि क्रिकेट को हिंदी में क्या बोलते हैं? मैं महेंद्र सिंह धोनी को काफी पसंद करता रहा हूं। बॉल कम हैं और रन ज्यादा बनाना होता था तो डर लगता था। लेकिन, धोनी टीम में हैं तो वो बहुत पहले से उसे चेज करने लगते हैं। और धीरे-धीरे पता चलता है कि उल्टा हो जाता है। कि 24 बॉल बची हैं और 10 ही रन बनाना है। यह गाना मैंने उन्हीं के व्यक्तित्व को ध्यान को रखकर लिखा था। इसके बाद उन्होंने वह गाना सुनाया- 'धोनी है, धोनी है तो जीत होनी है। मुक्काबाज के वक्त मैंने टीवी निकाल दिया। पैसे-वैसे खत्म हो गए थे। तब से टीवी नहीं लिया। अब ले लूंगा। लेकिन जब था और टीवी खोलता था तो कुछ भी बकबक चलता रहता था। तब मैंने इस शब्द पर भी कुछ लिखा। विनीत सिंह ने अपना रैप सॉन्ग 'बकबक' दर्शकों को सुनाया। विनीत कुमार सिंह ने कहा, 'मारो मगर इस तरह से मारो की अपमान न लगे। कहो इतनी मर्यादा के साथ कहो कि कुछ बेहतर हो सके। अगर आपकी नीयत सही हो तो आपकी बात किसी को बुरी नहीं लगती है'।

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अमित सियाल - फोटो : अमर उजाला

कोई ऐसा किरदार जो उस वक्त बहुत मुश्किल रहा हो। लेकिन, करना पड़ा हो। क्या कभी ऐसा हुआ?
अमित सियाल ने कहा, 'मैं एक ही बात उजागर करना चाहूंगा कि हमारे काम में एक लाइन है जो बड़ी प्रचलित रहती है हमेशा और उस पर तालियां भी मिलती हैं। क्या एक्टर है यार वनटेक एक्टर है। एक टेक में कर देता है सबकुछ। वनटेक एक्टर कुछ नहीं होता है। वनटेक एक्टर असल में एक्टर नहीं होते हैं। वे आते हैं, अपना काम करते हैं और चले जाते हैं। मुझे अपनी लाइनें तब तक बोलने का मन जब तक कि वो लाइनें आपकी सत्य न हो जाएं, जिसके लिए आपने लिखा है। कभी कभी दस टेक भी हो जाते हैं। पंद्रह भी। इतने रीटेक के बाद लगता है कभी-कभी कि पहले वाली ही ठीक थी। मैं अपने काम को ऐसी ही नहीं करता। मैं जो भी करता हूं डिटेल से करता हूं और दिल से करता हूं'।

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विनीत कुमार सिंह - फोटो : अमर उजाला

'छावा' फिल्म में आपका किरदार परदे पर बोलता है। फिल्म में आपने जो संवाद बोले, अगर वह यहां दर्शकों के सामने आप बोलें?
विनीत कुमार सिंह ने कहा, 'हमारा आज का विषय 'सिनेमा का बदलता दौर' है। मैं उसे इस तरह देखता हूं कि महिलाओं का योगदान बढ़ा है। समाज में जब महिलाओं का योगदान बढ़ता है तो उसका असर क्या पड़ता है? बहुत सारी महिलाएं आज के दौर में बड़ी-बड़ी चेयर्स पर बैठी हैं। हम पुरुष के चश्मे से देखते हैं तो बहुत सारी चीजें छूट जाती हैं जो महिलाओं के चश्मे से दिख सकती थीं। महिलाएं संवेदनशील कहानियां लेकर आती हैं। महिलाओं का योगदान बहुत जरूरी है। अगर आपके आसपास कोई महिला नहीं है तो वह जगह कुछ ऐसी है कि कुछ छूट गया है। अगर कोशिश कर सकते हैं तो, जिस डिपार्टमेंट में हैं तो उनका ख्याल रखिए। 'छावा' का ही उदारण दूं तो छत्रपति संभाजी महाराज की मां का जो योगदान था, वह उनकी रगों में दौड़ रहा था'। आगे विनीत ने कहा, 'आज महाराष्ट्र के हर घर का दरवाजा मेरे लिए खुला है। 'छावा' के बाद मुझे इतना प्यार करते हैं वहां लोग मुझे। उसके बाद उन्होंने वह कविता सुनाई, जिसे 'छावा में फिल्माया गया है।

मन के जीते जीते है, मन के हारे हार
हार गए जो बिन लड़े, उन पर है धिक्कार
उन पर है धिक्कार, जो देखे न सपना


विनीत ने आगे कहा, 'तालियों का कर्ज नहीं होता। तालियां पेट्रोल की तरह होती हैं, जो आग लगा देती हैं।  

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