‘50 किलो जूलरी पहनकर उड़ना आसान नहीं’, सोनाक्षी ने साझा किए ‘जटाधरा’ से जुड़े किस्से; करना चाहती हैं बायोपिक
Sonakshi Sinha Interview: सोनाक्षी सिन्हा ‘जटाधरा’ से बड़े पर्दे पर वापसी कर रही हैं। अभिनेत्री ने अमर उजाला से फिल्म और अपने किरदार को लेकर की बात।
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सोनाक्षी सिन्हा अपनी नई फिल्म ‘जटाधरा’ में एक रहस्यमयी किरदार धन पिशाचिनी के रूप में नजर आने वाली हैं। फिल्म की रिलीज से पहले अमर उजाला से खास बातचीत में सोनाक्षी ने फिल्म से जुड़े अपने अनुभवों और किरदार की तैयारी के बारे में बात की। पहली बार तेलुगु सिनेमा में काम करते हुए उन्होंने इस फिल्म को एक नया और चुनौतीपूर्ण अनुभव बताया। बातचीत में सोनाक्षी ने अपने किरदार, शूटिंग के दिलचस्प पलों और पर्सनल लाइफ के बैलेंस पर खुलकर बात की।
धन पिशाचिनी का किरदार देखते ही लगा कि आप इस बार कुछ बहुत नया कर रही हैं। जब ये रोल आपके पास आया तो आपकी पहला रिएक्शन क्या था?
जब मैंने पहली बार कहानी सुनी, तो मुझे लगा कि ये सिर्फ एक नया किरदार नहीं, बल्कि कुछ ऐसा है जिसे मैंने अब तक कभी किया ही नहीं था। उसमें एक अजीब सी ताकत थी, रहस्य था और एक गहराई भी जो मुझे बहुत आकर्षक लगी। एक एक्टर के लिए सबसे मजेदार बात यही होती है, जब उसे अपनी इमेज से बिल्कुल अलग कोई रोल मिले। धन पिशाचिनी वैसी ही भूमिका थी, डराने वाली नहीं, बल्कि स्ट्रॉन्ग और इंटरेस्टिंग। डायरेक्टर ने जब कहा कि वो मुझे इस रूप में देखना चाहते हैं, तो मैंने तुरंत हां कह दी।
विजुअली स्ट्रॉन्ग किरदार करने से पहले झिझक या डर महसूस हुआ?
ईमानदारी से कहूं तो बहुत ज्यादा वक्त नहीं मिला था। फिल्म साइन करने से लेकर शूट शुरू होने तक का गैप बहुत कम था। तो तैयारी का ज्यादा टाइम नहीं मिला। हमने ज्यादा मेहनत लुक पर की। कैसे दिखना चाहिए, कैसा मेकअप, क्या जूलरी, कैसी एनर्जी। डायरेक्टर ने मुझे पूरा नरेशन दिया था, कहानी और कैरेक्टर का हर पहलू समझाया था। मैं वैसे भी कैमरा के सामने जाकर ही अपने रोल को महसूस करती हूं, उससे पहले ज्यादा रिहर्सल नहीं करती। पहले दिन जब मैंने शॉट दिया, डायरेक्टर बहुत खुश हो गए। बोले - फाइनली हमें हमारी पिशाचिनी मिल गई, तब मुझे भी तसल्ली मिली कि हां, मैं सही दिशा में जा रही हूं।
तेलुगु सिनेमा में यह आपका पहला अनुभव है। नई भाषा और नया माहौल, कैसा रहा एक्सपीरियंस?
बहुत अच्छा रहा। शुरुआत में लगा था कि थोड़ा वक्त लगेगा ढलने में लेकिन जैसे ही सेट पर पहुंची, लगा जैसे अपने ही लोगों के बीच हूं। पूरी टीम बहुत वॉर्म और हेल्पफुल थी। अगर किसी डायलॉग का मतलब समझ में नहीं आता था तो कोई न कोई खुद आकर समझा देता था। वहां का वर्क कल्चर बहुत इंप्रेसिव है, टाइमिंग्स परफेक्ट हैं, सब लोग डिसिप्लिन में रहते हैं और फिर भी माहौल बहुत पॉजिटिव होता है। उनका वर्क-लाइफ बैलेंस कमाल का है जो हमें उनसे जरूर सीखना चाहिए।
आपने पहले भी तमिल फिल्म लिंगा की थी। क्या रीजनल फिल्मों के लिए आपकी दिलचस्पी हमेशा से रही है?
हां, बिल्कुल। मैं हमेशा से रीजनल सिनेमा के लिए ओपन रही हूं। अब वक्त ऐसा आ गया है कि भाषा कोई रुकावट नहीं रही। हर जगह शानदार कहानियां बन रही हैं और बहुत टैलेंटेड लोग काम कर रहे हैं। सीमाएं अब मिट चुकी हैं। मेरे लिए हमेशा यही रहा है कि अच्छा काम जहां मिले, वहीं जाना चाहिए।
शूटिंग के दौरान कोई ऐसा पल जो हमेशा याद रहेगा?
कई पल ऐसे थे, लेकिन सबसे मुश्किल और यादगार वही थे जब तैयार होने में तीन घंटे लगते थे। भारी साड़ी, 50 किलो की जूलरी, हार्नेस और फिर एक्शन सीन। कई बार जूलरी शरीर पर सिलनी पड़ती थी ताकि शूट स्मूथ हो सके। उस हालत में हिलना-डुलना भी मुश्किल होता था। लेकिन जैसे ही कैमरा ऑन होता था, सारी थकान गायब हो जाती थी। वो पल सच में जादुई होते थे। शायद यही एक्टिंग की असली खूबसूरती है जब मेहनत थकान से बड़ी लगने लगती है।
रोल करने के बाद क्या आपको लगा कि आपमें कुछ बदला है?
हां, काफी कुछ बदला। इस किरदार ने मुझे धैर्य सिखाया। जब आप तीन घंटे तक तैयार होकर बैठे रहते हैं, तो अपने अंदर शांति रखनी पड़ती है। इस रोल में हर नजर और हर हरकत का मतलब था। इससे मुझे ये समझ आया कि एक्टिंग सिर्फ डायलॉग बोलना नहीं है बल्कि महसूस करना है। और शायद इसी वजह से अब मुझे किसी भी रोल से डर नहीं लगता।
आपने कई तरह के रोल किए हैं, कॉमेडी, एक्शन, ड्रामा। लेकिन ये फैंटेसी और मिथक की दुनिया आपके लिए कितनी नई थी?
बहुत नई और बहुत खूबसूरत। मुझे हमेशा कहा गया कि मेरा चेहरा इंडियन रोल्स के लिए बना है, लेकिन इस तरह का रोल कभी नहीं मिला था। ये एक अलग ही दुनिया है, जहां हर रंग, हर लाइट और हर डायलॉग का मतलब होता है। यहां रियलिटी की जगह इमैजिनेशन काम करता है। जटाधरा ने वो मौका दिया और मैं इसे अपने करियर का एक नया चैप्टर मानती हूं।
पर्सनली, इतनी सुर्खियों में रहने के बाद भी आप हमेशा कूल और खुशमिजाज लगती हैं। क्या सीक्रेट है इस नो-टेंशन वाली एनर्जी का?
मैंने बहुत पहले समझ लिया था कि हर बात पर रिएक्ट करना जरूरी नहीं होता। हर दिन कोई कुछ कहता है, कुछ लिखता है, अगर मैं सब पर ध्यान दूं तो शायद मैं अपना काम ही ठीक से न कर पाऊं। इसलिए मैंने तय किया कि अपनी एनर्जी सिर्फ वहीं लगाऊंगी, जहां जरूरत है।
बाकी सबको मैं स्माइल के साथ जाने देती हूं। मुझे हंसना पसंद है, मजाक करना पसंद है। जिंदगी में ड्रामा तो हमेशा रहेगा, लेकिन अगर आप खुद को हल्का रखेंगे, तो चीजें खुद ही आसान लगने लगती हैं। मेरा बस यही मंत्र है, खुश रहो, सच्चे रहो और अपनी शांति किसी को मत लेने दो।
आपके करियर को 15 साल हो गए हैं। इस पूरे सफर को आप कैसे देखती हैं?
मुझे लगता है कि मैंने हमेशा वही किया जो मेरा दिल कहता था। मैंने कभी किसी ट्रेंड को फॉलो नहीं किया। मेरे लिए अपने काम की सच्चाई और ईमानदारी ही सबसे बड़ी बात रही है। कौन सी फिल्म चलेगी या नहीं चलेगी, ये मेरे हाथ में नहीं है, लेकिन मेहनत करना मेरे हाथ में है और वही मैं हमेशा करती रहूंगी।
आगे कौन से रोल या कहानियां करना चाहेंगी?
मैं किसी बायोपिक में काम करना चाहती हूं। ऐसी कहानियां बहुत इंस्पायरिंग होती हैं, जहां आप किसी असली इंसान की जिंदगी जीते हैं। अगर किसी स्पोर्ट्स पर्सन की कहानी करने का मौका मिला, तो मैं तुरंत हां कहूंगी। स्पोर्ट्स में जो जुनून और अनुशासन होता है, वो मुझे बहुत मोटिवेट करता है।
आप और जहीर दोनों ही पब्लिक फिगर हैं, तो रियल लाइफ में उस बैलेंस को बनाए रखना कितना मुश्किल होता है?
मैं काम और पर्सनल लाइफ के बीच एक साफ लाइन रखती हूं। सेट पर जो कुछ करना होता है, वहीं करती हूं। घर पहुंचते ही सब कुछ पीछे छोड़ देती हूं। घर मेरे लिए सुकून की जगह है। जहीर इस बात को बहुत अच्छे से समझते हैं, इसलिए वो कभी दखल नहीं देते बल्कि मुझे बैलेंस बनाने में मदद करते हैं। जब मेरा ट्रेलर आया था, तो उसने मजाक में ट्वीट किया था कि अब उसे सच में एक छोटी सी डेविल मिल गई है। मुझे वो बहुत प्यारा लगा। वो मेरे काम को समझता है, उस पर गर्व करता है और हमेशा कहता है कि जो भी करो, पूरे दिल से करो। वो सिर्फ मेरा पार्टनर नहीं, मेरी सबसे बड़ी चीयरलीडर है जो हमेशा मेरे साथ खड़ा रहता है, चुपचाप लेकिन पूरे दिल से।