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कोई आए या ना आए यह मर्जी उसी की, मेरी आदत सी है कमतर उस ओर देखने की: कवि विजेंद्र
संवाद न्यूज एजेंसी, भिवानी
Updated Sat, 13 Sep 2025 11:18 PM IST
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वैश्य महाविद्यालय में आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों को सम्मानित करते प्राचार्य डॉ. संजय गोयल।
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भिवानी। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में वैश्य महाविद्यालय के हिंदी विभाग एवं साहित्य सुरभि प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कवि सम्मेलन में कवि विजेंद्र ने कहा “कोई आए या ना आए यह मर्जी उसी की, मेरी आदत सी है कमतर उस ओर देखने की।” सम्मेलन में सुप्रसिद्ध कवियों ने अपने काव्य पाठ के माध्यम से जीवन, परिवार, समाज और रिश्तों की मार्मिक झांकियां पेश कीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. संजय गोयल, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल तंवर और आयोजक सचिव डॉ. कामना कौशिक ने की।
कवि सम्मेलन में विजेंद्र गाफिल, प्रो. रश्मि बजाज, प्रो. श्याम वशिष्ठ, विकास यशकीर्ति और डॉ. हरिकेश पंघाल ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समा बांध दिया। प्राचार्य डॉ. संजय गोयल ने कहा कि विद्यार्थियों को जीवन की शिक्षाप्रद बारीकियों से रूबरू होने का अवसर कवियों के माध्यम से मिलता है। वैश्य महाविद्यालय ट्रस्ट प्रधान एडवोकेट शिवरतन गुप्ता ने कहा कि आधुनिकता के युग में कला को जीवित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है।
कवि विजेंद्र गाफिल ने हिंदी एवं उर्दू काव्य पाठ के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए शायराना अंदाज में प्रस्तुत किया: “मंजिल मुश्किल है फिर भी नामुमकिन तो नहीं, हमने कागज के फूलों पर तितलियों को खुशबू लेते हुए देखा है।” कवयित्री डॉ. रश्मि बजाज ने हिंदी भाषा की जीवन यात्रा और भारतीय समाज की कुरीतियों पर कटाक्ष करते हुए भ्रूण हत्या, लिंगानुपात और स्त्रियों पर अत्याचार पर आधारित कविता “वो कब औरों की राह देखे हैं, जिसे गंगा जमी पर लानी है…” सुनाकर उपस्थित लोगों में जोश भर दिया।
कवि विकास यशकीर्ति ने पारिवारिक रिश्तों, माता-पिता और युवाओं पर आधारित कविता “मां की स्नेहशील दास्तां सुनकर ये छाले फूट जाते हैं…” प्रस्तुत की। प्रो. श्याम वशिष्ठ ने जिंदगी के अहम रिश्तों पर आधारित गजल “मोहब्बत की निशानी को यहां कौन देखेगा, बुजुर्गों की कहानी को यहां कौन देखेगा…” सुनाई। डॉ. हरिकेश पंघाल ने अपनी रचना “पहला सुख निरोगी काया” के माध्यम से मानव जीवन और भ्रष्टाचार पर आधारित हरियाणवी कविता “चिचड़” प्रस्तुत की। सभी कवियों को वैश्य महाविद्यालय प्रबंधक समिति के कोषाध्यक्ष बृजलाल सर्राफ ने 5100-5100 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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कवि सम्मेलन में विजेंद्र गाफिल, प्रो. रश्मि बजाज, प्रो. श्याम वशिष्ठ, विकास यशकीर्ति और डॉ. हरिकेश पंघाल ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समा बांध दिया। प्राचार्य डॉ. संजय गोयल ने कहा कि विद्यार्थियों को जीवन की शिक्षाप्रद बारीकियों से रूबरू होने का अवसर कवियों के माध्यम से मिलता है। वैश्य महाविद्यालय ट्रस्ट प्रधान एडवोकेट शिवरतन गुप्ता ने कहा कि आधुनिकता के युग में कला को जीवित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है।
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कवि विजेंद्र गाफिल ने हिंदी एवं उर्दू काव्य पाठ के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए शायराना अंदाज में प्रस्तुत किया: “मंजिल मुश्किल है फिर भी नामुमकिन तो नहीं, हमने कागज के फूलों पर तितलियों को खुशबू लेते हुए देखा है।” कवयित्री डॉ. रश्मि बजाज ने हिंदी भाषा की जीवन यात्रा और भारतीय समाज की कुरीतियों पर कटाक्ष करते हुए भ्रूण हत्या, लिंगानुपात और स्त्रियों पर अत्याचार पर आधारित कविता “वो कब औरों की राह देखे हैं, जिसे गंगा जमी पर लानी है…” सुनाकर उपस्थित लोगों में जोश भर दिया।
कवि विकास यशकीर्ति ने पारिवारिक रिश्तों, माता-पिता और युवाओं पर आधारित कविता “मां की स्नेहशील दास्तां सुनकर ये छाले फूट जाते हैं…” प्रस्तुत की। प्रो. श्याम वशिष्ठ ने जिंदगी के अहम रिश्तों पर आधारित गजल “मोहब्बत की निशानी को यहां कौन देखेगा, बुजुर्गों की कहानी को यहां कौन देखेगा…” सुनाई। डॉ. हरिकेश पंघाल ने अपनी रचना “पहला सुख निरोगी काया” के माध्यम से मानव जीवन और भ्रष्टाचार पर आधारित हरियाणवी कविता “चिचड़” प्रस्तुत की। सभी कवियों को वैश्य महाविद्यालय प्रबंधक समिति के कोषाध्यक्ष बृजलाल सर्राफ ने 5100-5100 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।