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Jhajjar-Bahadurgarh News: बेटियां होने पर समाज ने ताने दिए, उनको पढ़ाया, दो नर्सिंग ऑफिसर और एक प्रोफेसर
संवाद न्यूज एजेंसी, झज्जर/बहादुरगढ़
Updated Fri, 09 May 2025 02:07 AM IST
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08jjrp28- नर्सिंग ऑफिसर कविता गुलिया अपनी बहनों व मां के साथ। स्रोत-स्वयं
- फोटो : पंचकूला स्थित हरियाणा राज्य फार्मेसी काैंसिल के कार्यालय में परेशान आवेदक। अमर उजाला

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झज्जर। रेवाड़ी साबनपुर निवासी 71 वर्षीय इमरती देवी की पांच बेटियां हुई तो समाज और परिवार ने ताने दिए, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। उन्होंने कभी अपनी बेटियों में फर्क नहीं समझा और उनको खूब पढ़ाया। वह खुद अनपढ़ थी, लेकिन अपनी बेटियों को पढ़ाई के लिए कभी नहीं रोका। इसकी बदौलत इमरती देवी की पांच में से तीन बेटियां आज स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में नाम कमा रही हैं। उनकी एक बेटी प्रोफेसर है और दो बेटियां नर्सिंग ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा दो बेटियां गृहिणी हैं।
इमरती देवी के पति हवा सिंह किसान थे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। इमरती देवी ने अपने जीवन में काफी संघर्ष देखा। परिवार से लेकर समाज के ताने सहे, लेकिन अपनी पांचों बेटियों के भविष्य और उनकी बेहतर जिंदगी के लिए उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। झज्जर के सरकारी अस्पताल में नर्सिंग अधिकारी एवं राज्य पुरस्कार और राज्यपाल अवॉर्ड से सम्मानित कविता गुलिया ने बताया कि उन्होंने अपनी मां इमरती का संघर्ष बचपन से देखा है। आज भी उन्हें अपनी मां पर गर्व होता है।
उन्होंने बताया कि उनकी बड़ी बहन विनोद दसवीं क्लास तक पढ़ी। बबीता 12वीं क्लास तक पढ़ी। वह दोनों गृहिणी हैं। उसने नर्सिंग ऑफिसर बनने का सपना देखा, जो उसकी मां ने पूरा किया। उनकी छोटी बहन सपना भी रेवाड़ी में नर्सिंग ऑफिसर है। इसी प्रकार रविता साइकोलॉजी की प्रोफेसर है। कविता ने बताया कि कई बार ऐसे मौके आए जब बहनों की शादी पर परिवार में भाई के न होने की सूचना मिली तो कई लोगों ने रिश्ता तक ठुकरा दिया। इस मानसिक स्थिति को भी मां ने सहन किया, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी।
कविता ने बताया कि दादी नहीं चाहती थी कि बेटियां हों और जब एक के बाद एक पांच बेटियां हुई, तब उनके परिवार में मां की क्या हालत होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। हालांकि उस समय मां को पिता हवा सिंह का साथ था।
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इमरती देवी के पति हवा सिंह किसान थे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। इमरती देवी ने अपने जीवन में काफी संघर्ष देखा। परिवार से लेकर समाज के ताने सहे, लेकिन अपनी पांचों बेटियों के भविष्य और उनकी बेहतर जिंदगी के लिए उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। झज्जर के सरकारी अस्पताल में नर्सिंग अधिकारी एवं राज्य पुरस्कार और राज्यपाल अवॉर्ड से सम्मानित कविता गुलिया ने बताया कि उन्होंने अपनी मां इमरती का संघर्ष बचपन से देखा है। आज भी उन्हें अपनी मां पर गर्व होता है।
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उन्होंने बताया कि उनकी बड़ी बहन विनोद दसवीं क्लास तक पढ़ी। बबीता 12वीं क्लास तक पढ़ी। वह दोनों गृहिणी हैं। उसने नर्सिंग ऑफिसर बनने का सपना देखा, जो उसकी मां ने पूरा किया। उनकी छोटी बहन सपना भी रेवाड़ी में नर्सिंग ऑफिसर है। इसी प्रकार रविता साइकोलॉजी की प्रोफेसर है। कविता ने बताया कि कई बार ऐसे मौके आए जब बहनों की शादी पर परिवार में भाई के न होने की सूचना मिली तो कई लोगों ने रिश्ता तक ठुकरा दिया। इस मानसिक स्थिति को भी मां ने सहन किया, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी।
कविता ने बताया कि दादी नहीं चाहती थी कि बेटियां हों और जब एक के बाद एक पांच बेटियां हुई, तब उनके परिवार में मां की क्या हालत होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। हालांकि उस समय मां को पिता हवा सिंह का साथ था।