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एम्स बिलासपुर: जटिल बीमारियों की गुत्थी सुलझाएगी तेज प्रोटीन तरल क्रोमैटोग्राफी मशीन, भविष्य में होगा ये बदलाव

संवाद न्यूज एजेंसी, बिलासपुर। Published by: अंकेश डोगरा Updated Tue, 30 Dec 2025 05:31 AM IST
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सार

हिमाचल प्रदेश के एम्स बिलासपुर को जल्द ही तेज प्रोटीन तरल क्रोमैटोग्राफी (एफपीएलसी) नाम की अत्याधुनिक अनुसंधान प्रणाली मिलने वाली है। पढ़ें पूरी खबर...

A high-speed protein liquid chromatography machine will soon be installed at AIIMS Bilaspur
एम्स बिलासपुर - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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एम्स बिलासपुर अपने सेंट्रल रिसर्च फैसिलिटी को और अधिक सशक्त बनाने जा रहा है। संस्थान को जल्द ही तेज प्रोटीन तरल क्रोमैटोग्राफी (एफपीएलसी) नाम की अत्याधुनिक अनुसंधान प्रणाली मिलने वाली है। इस अत्याधुनिक मशीन से जटिल जैविक मिश्रणों का विश्लेषण उच्चतम स्तर की सटीकता के साथ किया जा सकेगा।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तकनीक जटिल प्रोटीन, पेप्टाइड्स और न्यूक्लिक एसिड जैसे अणुओं को अलग करने और उनका गहन अध्ययन करने में बेहद मददगार साबित होगी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह मशीन न केवल अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ाएगी, बल्कि नई दवाओं और टीकों के विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। भविष्य में हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के मरीजों को इसका सीधा लाभ मिलेगा।
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एफपीएलसी मशीन शरीर में मौजूद सूक्ष्म अणुओं की संरचना और कार्यप्रणाली को समझने में मदद करेगी। इससे वैज्ञानिक जटिल बीमारियों के कारणों का पता लगा सकेंगे। इस प्रणाली के माध्यम से शोधकर्ता शुद्ध जैविक घटक प्राप्त कर नई दवाओं और टीकों के विकास में योगदान कर सकेंगे। यह भविष्य में जीवनरक्षक दवाओं और टीकों की शोध प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाएगा। मशीन पूरी तरह से ऑटोमेटेड है, जिससे मानवीय त्रुटि की संभावना कम होगी और शोध परिणाम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होंगे। एम्स ने इस मशीन के लिए उच्चतम गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित किया है।

मशीन यूएसएफडीए, सीई, आईएसओ, बीआईएस और सीडीएससीओ जैसे अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानकों से प्रमाणित होगी। शोध कार्य बिना किसी बाधा के जारी रहे, इसके लिए मशीन में 98 फीसदी अपटाइम सुनिश्चित किया गया है। यह मशीन अनुसंधान केंद्र में स्थापित होगी, लेकिन इसका अंतिम लाभ मरीजों को मिलेगा। सूक्ष्म स्तर पर बीमारियों का अध्ययन होने से सटीक, प्रभावी और सस्ती चिकित्सा पद्धतियां विकसित की जा सकेंगी। खासकर कैंसर, संक्रमण और जेनेटिक बीमारियों के उपचार में इसका व्यापक उपयोग होगा।

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