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विकास के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में गुणवत्ता का हो रहा विघटन : मेघा
संवाद न्यूज एजेंसी, हमीरपुर (हि. प्र.)
Updated Fri, 12 Sep 2025 01:19 AM IST
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सुजानपुर महाविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के शुभारंभ पर मुख्यातिथि के साथ प्राध्यापक। स्रो
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सुजानपुर(हमीरपुर)। राजकीय महाविद्यालय सुजानपुर में पर्यावरण सतत विकास और आपदा प्रबंधन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। सम्मेलन के शुभारंभ पर महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. विभा ठाकुर बतौर मुख्यातिथि उपस्थित हुईं, जबकि उपप्राचार्य डॉ. जितेंद्र कुमार भनवाल विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित हुए।
सम्मेलन के संयोजक भूगोल विभाग के आचार्य प्रो. राजीव ठाकुर ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मेघा पाटेकर ने कहा कि वास्तव में पहाड़ी क्षेत्रों में जिसे विकास कहा जा रहा है, उसी विकास के कारण पहाड़ी क्षेत्र की गुणवत्ता का विघटन हो रहा है। बादलों का फटना, ग्लेशियरों का पिघलना और भूस्खलन होना वास्तव में प्रतिक्रियाएं हैं, परंतु जिनके कारण यह सब हो रहा है, वे विषय सभी के लिए चिंतनीय हैं।
वहीं, मसाई मारा विश्वविद्यालय केनिया के डॉ. सैमसन ने कहा कि वृक्षों के अत्यधिक कटाव और अंधाधुंध जमीनी खोदाई के कारण जल प्रवाह में अत्यधिक वेग उत्पन्न हो रहा है। इससे हमें भूस्खलन जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ता है। इसके उपरांत डॉ. कोमल राज अर्याल, एस्टन विश्वविद्यालय बर्मिंघम ने कहा कि देश में जितना हो सके कम से कम बांधों का निर्माण होना चाहिए, क्योंकि उनके निर्माण में अत्यधिक जमीनी एवं प्राकृतिक कटाव किया जाता है, जिससे भूसंपदा का क्षरण अत्यधिक मात्रा में होने लगता है।
इसके बाद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. श्याम कौशल ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का हमें जितनी आवश्यकता हो उतना ही प्रयोग करना चाहिए और भविष्य में आगे आने वाली पीढ़ियों का ध्यान रखते हुए पृथ्वी, जल, खनिज इत्यादि संसाधनों का ध्यानपूर्वक प्रयोग करना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के संयोजक प्रो. राजीव ठाकुर ने शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक वर्ग का आभार व्यक्त किया।

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सम्मेलन के संयोजक भूगोल विभाग के आचार्य प्रो. राजीव ठाकुर ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मेघा पाटेकर ने कहा कि वास्तव में पहाड़ी क्षेत्रों में जिसे विकास कहा जा रहा है, उसी विकास के कारण पहाड़ी क्षेत्र की गुणवत्ता का विघटन हो रहा है। बादलों का फटना, ग्लेशियरों का पिघलना और भूस्खलन होना वास्तव में प्रतिक्रियाएं हैं, परंतु जिनके कारण यह सब हो रहा है, वे विषय सभी के लिए चिंतनीय हैं।
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वहीं, मसाई मारा विश्वविद्यालय केनिया के डॉ. सैमसन ने कहा कि वृक्षों के अत्यधिक कटाव और अंधाधुंध जमीनी खोदाई के कारण जल प्रवाह में अत्यधिक वेग उत्पन्न हो रहा है। इससे हमें भूस्खलन जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ता है। इसके उपरांत डॉ. कोमल राज अर्याल, एस्टन विश्वविद्यालय बर्मिंघम ने कहा कि देश में जितना हो सके कम से कम बांधों का निर्माण होना चाहिए, क्योंकि उनके निर्माण में अत्यधिक जमीनी एवं प्राकृतिक कटाव किया जाता है, जिससे भूसंपदा का क्षरण अत्यधिक मात्रा में होने लगता है।
इसके बाद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. श्याम कौशल ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का हमें जितनी आवश्यकता हो उतना ही प्रयोग करना चाहिए और भविष्य में आगे आने वाली पीढ़ियों का ध्यान रखते हुए पृथ्वी, जल, खनिज इत्यादि संसाधनों का ध्यानपूर्वक प्रयोग करना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के संयोजक प्रो. राजीव ठाकुर ने शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक वर्ग का आभार व्यक्त किया।