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150 Years of Vande Mataram: वंदे मातरम का सफरनामा, जानें 1875 का एक गीत कैसे बना भारत का राष्ट्रगीत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली। Published by: निर्मल कांत Updated Mon, 08 Dec 2025 10:45 AM IST
सार

150 Years of Vande Mataram: देश के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर आज संसद में विशेष चर्चा होगी। इसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था और रवींद्रनाथ टैगोर ने संगीतबद्ध किया। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक नारा बन गया और 1950 में इसे राष्ट्रीय गीत घोषित किया गया। इस वर्ष पूरे देश में इसके 150 साल पूरे होने पर समारोह और विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके बारे में विस्तार से जानिए-

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150 Years journey of Vande Mataram, know how a song from 1875 became India's national song
'वंदे मातरम' के 150 वर्ष का सफरनामा - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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विस्तार
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देश के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे चुके हैं। इस पर आज संसद के दोनों सदनों में चर्चा होगी। इस पर चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के साथ शुरू होगी। सात नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखी गई यह रचना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बन गई थी। यह गीत केवल एक कविता नहीं, बल्कि भारत की एकता, त्याग और मातृभूमि के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। इसी गीत ने आजादी के संघर्ष में लाखों देशवासियों को नई ऊर्जा दी थी। आइए आज इस राष्ट्रीय गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर इसके सफर पर एक नजर डालते हैं।
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‘वंदे मातरम’ को पहली बार 1875 में बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। सन् 1882 में इसे बंकिम चंद्र की प्रसिद्ध कृति आनंदमठ में शामिल किया गया। वहीं, इस गीत को संगीत में ढालने का काम रवींद्रनाथ टैगोर ने किया। 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में यह गीत पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया। सात अगस्त 1905 को इसे पहली बार राजनीतिक नारे के रूप में इस्तेमाल किया गया, जब बंगाल विभाजन के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे थे।
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क्या है उपन्यास 'आनंदमठ'
उपन्यास आनंदमठ में संन्यासियों का एक समूह ‘मां भारती’ की सेवा को अपना धर्म मानता है। उनके लिए ‘वंदे मातरम’ केवल गीत नहीं, बल्कि पूजा का प्रतीक है। उपन्यास में मां की तीन मूर्तियां भारत के तीन स्वरूपों को दर्शाती हैं। अतीत की गौरवशाली माता, वर्तमान की पीड़ित माता और भविष्य की पुनर्जीवित माता। इस पर अरविंदो ने लिखा है कि यह मां भीख का कटोरा नहीं, बल्कि सत्तर करोड़ हाथों में तलवार लिए भारत माता है।

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जानें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के बारे में
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (1838-1894) बंगाल के महान साहित्यकार और विचारक थे। उन्होंने दुर्गेशनंदिनी, कपालकुंडला, देवी चौधरानी जैसी रचनाओं के माध्यम से समाज में स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का भाव जगाया। वंदे मातरम के जरिए उन्होंने भारतीय जनमानस को यह सिखाया कि मातृभूमि ही सर्वोच्च देवी है। उनका यह गीत आधुनिक भारत के राष्ट्रवाद की वैचारिक नींव बन गया।

प्रतिरोध का गीत बना ‘वंदे मातरम’
1905 के स्वदेशी आंदोलन में यह गीत आजादी का नारा बन गया। कोलकाता से लेकर लाहौर तक लोग सड़कों पर ‘वंदे मातरम’ के जयघोष से ब्रिटिश शासन को चुनौती देने लगे। बंगाल में बंदे मातरम एक समाज बना। इसमें रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेता भी शामिल हुए। ब्रिटिश सरकार ने जब स्कूलों और कॉलेजों में इस गीत पर रोक लगाई, तो विद्यार्थियों ने गिरफ्तारी और दंड की परवाह किए बिना इसे गाना जारी रखा। यही वह दौर था जब वंदे मातरम हर भारतीय के दिल की आवाज बन गया।

क्रांतिकारियों पर इस गीत का अलग ही प्रभाव पड़ा
साल 1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ट में भीकाजी कामा ने जब पहली बार भारत का तिरंगा फहराया, तो उस पर वंदे मातरम लिखा था। इंग्लैंड में फांसी से पहले मदनलाल धींगरा के अंतिम शब्द थे 'वंदे मातरम'। दक्षिण अफ्रीका में गोपालकृष्ण गोखले का स्वागत भी इसी गीत से किया गया। विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने भी इसे स्वतंत्रता का संदेश मानकर अपनाया। इन दिनों ये गीत हर उस भारतवासी के दिल में बस गया था, जो भारत को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराना चाहते थें।

ऐसे बना राष्ट्रगीत
1950 में संविधान सभा ने सर्वसम्मति से वंदे मातरम को भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया। तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था वंदे मातरम ने स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, इसे ‘जन गण मन’ के समान सम्मान दिया जाएगा। इसके बाद से यह गीत देश के गौरव, एकता और राष्ट्रभावना का प्रतीक बन गया।

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150 साल पूरे होने पर देशभर में समारोह
इस वर्ष केंद्र सरकार पूरे भारत में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रही है। दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में राष्ट्रीय स्तर का उद्घाटन समारोह होगा। देशभर में सात नवंबर को जिला और तहसील स्तर तक विशेष आयोजन होंगे। इस अवसर पर डाक टिकट, स्मारक सिक्का और वंदे मातरम पर आधारित प्रदर्शनी भी जारी की जाएगी। साथ ही ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर इससे जुड़े विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित किए जाएंगे।

विश्व स्तर पर भी ‘वंदे मातरम’ का होगा सम्मान
भारत के सभी दूतावासों और मिशनों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत उत्सव और वृक्षारोपण अभियान आयोजित होंगे। ‘वंदे मातरम: सैल्यूट टू मदर अर्थ’ थीम पर देशभर में वृक्षारोपण और भित्ति चित्र अभियान चलाया जाएगा। भित्ति चित्र का मतलब दीवार या छत जैसी स्थायी सतहों पर सीधे बनाए गए चित्र होते हैं। इस अभियान का उद्देश्य नई पीढ़ी को यह संदेश देना है कि मातृभूमि की सेवा ही सच्ची देशभक्ति है।

वहीं, 150 साल बाद भी आज वंदे मातरम हर भारतीय के हृदय में गूंजता है। यह गीत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की ताकत उसकी एकता और संस्कृति में है।..

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