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Judiciary: 'रोहिंग्या मामले पर CJI की टिप्पणी के खिलाफ चल रहा प्रेरित अभियान', 44 पूर्व जजों ने जारी किया बयान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Wed, 10 Dec 2025 01:47 PM IST
सार
Judiciary: सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 44 पूर्व जजों ने कहा कि रोहिंग्या प्रवासी मामले पर सीजेआई की टिप्पणियों की तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है और उनके खिलाफ प्रेरित अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
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जस्टिस सूर्यकांत
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 44 पूर्व जजों ने एक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि रोहिंग्या प्रवासियों के मामले में चीफ जस्टिस (सीजेआई) सूर्यकांत की ओर से की गई टिप्पणियों के खिलाफ 'प्रेरित अभियान' चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सीजेआई ने तो केवल एक साधारण कानूनी सवाल पूछा था, लेकिन कुछ लोगों ने उसे गलत तरीके से पेश करके ऐसा दिखाया जैसे उन्होंने पक्षपात या भेदभाव वाली बात कही हो।
'न्यायपालिका की गरिमा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश'
पूर्व जजों ने कहा कि नियमित न्यायिक सवालों को गलत तरीके से 'पक्षपाती टिप्पणी' बताना न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचाने और सांविधानिक संस्थाओं में जनता के भरोसे को कमजोर करने की कोशिश है।
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बयान में आगे कहा गया कि कोर्ट के फैसले और कोर्ट में हुई बहस की निष्पक्ष आलोचना की जा सकती है, लेकिन मौजूदा विवाद उस सीमा को पार कर चुका है। इसमें कहा गया, न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष, तर्कपूर्ण आलोचना हो सकती है और होनी भी चाहिए। लेकिन जो हम देख रहे हैं, वह कोई सिद्धांत आधारित असहमति नहीं बल्कि न्यायपालिका को बदनाम करने का प्रयास है। चीफ जस्टिस पर इस बुनियादी सवाल को लेकर हमला किया जा रहा है कि कानून के तहत वह दर्जा किसने दिया है जिसकी मांग कोर्ट में की जा रही है? अधिकारों पर कोई भी फैसला तब तक नहीं हो सकता जब तक इस बुनियादी सवाल का जवाब न मिल जाए।
'आलोचकों ने कोर्ट के स्पष्ट संदेश को नजरअंदाज किया'
उन्होंने आगे कहा कि आलोचकों ने अदालत के उस स्पष्ट संदेश को नजरअंदाज किया, जिसमें कहा गया था कि भारत की जमीन पर कोई भी व्यक्ति न तो यातना का शिकार हो सकता है, न गायब किया जा सकता है और न ही उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा सकता है, चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी। बयान में कहा गया, इस संदेश को छिपाकर टिप्पणी को तोड़-मरोड़कर कोर्ट पर 'अमानवीयता' का आरोप लगाया जा रहा है।'
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'रोहिंग्याओं ने कानूनी शरणार्थी तंत्र से नहीं किया प्रवेश'
भारत में रोहिंग्या समुदाय को किसी भी आधिकारिक (कानूनी) शरणार्थी सुरक्षा व्यवस्था के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है, क्योंकि भारत न तो 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का सदस्य है और न ही 1967 के उसके प्रोटोकॉल का। बयान में कहा गया, रोहिंग्या भारतीय कानून के तहत शरणार्थी नहीं हैं। वे किसी वैधानिक शरणार्थी तंत्र के माध्यम से नहीं आए। अधिकांश मामलों में उनका प्रवेश अवैध है और वे केवल दावा करके खुद को कानूनी तौर पर 'शरणार्थी' घोषित नहीं कर सकते।
पूर्व जजों ने कहा कि अवैध रूप से आने वाले लोग खुद को किसी औपचारिक शरणार्थी दर्जे में नहीं बदल सकते। बयान में कहा गया, भारत की जिम्मेदारियां उसके संविधान, विदेशी कानून, आप्रवासन नियमों और सामान्य मानवाधिकार सिद्धांतों से पैदा होती हैं।
'रोहिंग्या ने कैसे हासिल किए आधार कार्ड और राशन कार्ड'
बयान में यह भी चिंता जताई गई कि अवैध रूप से आए लोगों ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य कल्याण से जुड़े दस्तावेज कैसे हासिल किए। पूर्व जजों ने कहा, यह एक गंभीर और वैध चिंता है कि अवैध रूप से आए लोगों ने आधार, राशन कार्ड और अन्य दस्तावेज कैसे हासिल किए, जो केवल विधि सम्मत नागरिकों या निवासियों के लिए हैं। इनका दुरुपयोग हमारी पहचान और कल्याण प्रणाली की विश्वसनीयता को कमजोर करता है और मिलीभगत, दस्तावेजी धोखाधड़ी और संगठित नेटवर्क पर गंभीर सवाल उठाता है।
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'न्यायपालिका की गरिमा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश'
पूर्व जजों ने कहा कि नियमित न्यायिक सवालों को गलत तरीके से 'पक्षपाती टिप्पणी' बताना न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचाने और सांविधानिक संस्थाओं में जनता के भरोसे को कमजोर करने की कोशिश है।
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बयान में आगे कहा गया कि कोर्ट के फैसले और कोर्ट में हुई बहस की निष्पक्ष आलोचना की जा सकती है, लेकिन मौजूदा विवाद उस सीमा को पार कर चुका है। इसमें कहा गया, न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष, तर्कपूर्ण आलोचना हो सकती है और होनी भी चाहिए। लेकिन जो हम देख रहे हैं, वह कोई सिद्धांत आधारित असहमति नहीं बल्कि न्यायपालिका को बदनाम करने का प्रयास है। चीफ जस्टिस पर इस बुनियादी सवाल को लेकर हमला किया जा रहा है कि कानून के तहत वह दर्जा किसने दिया है जिसकी मांग कोर्ट में की जा रही है? अधिकारों पर कोई भी फैसला तब तक नहीं हो सकता जब तक इस बुनियादी सवाल का जवाब न मिल जाए।
'आलोचकों ने कोर्ट के स्पष्ट संदेश को नजरअंदाज किया'
उन्होंने आगे कहा कि आलोचकों ने अदालत के उस स्पष्ट संदेश को नजरअंदाज किया, जिसमें कहा गया था कि भारत की जमीन पर कोई भी व्यक्ति न तो यातना का शिकार हो सकता है, न गायब किया जा सकता है और न ही उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा सकता है, चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी। बयान में कहा गया, इस संदेश को छिपाकर टिप्पणी को तोड़-मरोड़कर कोर्ट पर 'अमानवीयता' का आरोप लगाया जा रहा है।'
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'रोहिंग्याओं ने कानूनी शरणार्थी तंत्र से नहीं किया प्रवेश'
भारत में रोहिंग्या समुदाय को किसी भी आधिकारिक (कानूनी) शरणार्थी सुरक्षा व्यवस्था के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है, क्योंकि भारत न तो 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का सदस्य है और न ही 1967 के उसके प्रोटोकॉल का। बयान में कहा गया, रोहिंग्या भारतीय कानून के तहत शरणार्थी नहीं हैं। वे किसी वैधानिक शरणार्थी तंत्र के माध्यम से नहीं आए। अधिकांश मामलों में उनका प्रवेश अवैध है और वे केवल दावा करके खुद को कानूनी तौर पर 'शरणार्थी' घोषित नहीं कर सकते।
पूर्व जजों ने कहा कि अवैध रूप से आने वाले लोग खुद को किसी औपचारिक शरणार्थी दर्जे में नहीं बदल सकते। बयान में कहा गया, भारत की जिम्मेदारियां उसके संविधान, विदेशी कानून, आप्रवासन नियमों और सामान्य मानवाधिकार सिद्धांतों से पैदा होती हैं।
'रोहिंग्या ने कैसे हासिल किए आधार कार्ड और राशन कार्ड'
बयान में यह भी चिंता जताई गई कि अवैध रूप से आए लोगों ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य कल्याण से जुड़े दस्तावेज कैसे हासिल किए। पूर्व जजों ने कहा, यह एक गंभीर और वैध चिंता है कि अवैध रूप से आए लोगों ने आधार, राशन कार्ड और अन्य दस्तावेज कैसे हासिल किए, जो केवल विधि सम्मत नागरिकों या निवासियों के लिए हैं। इनका दुरुपयोग हमारी पहचान और कल्याण प्रणाली की विश्वसनीयता को कमजोर करता है और मिलीभगत, दस्तावेजी धोखाधड़ी और संगठित नेटवर्क पर गंभीर सवाल उठाता है।