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Heat Wave: दुनिया ने 2025 में झेला अब तक का दूसरा सबसे गर्म अप्रैल, पिछले साल के मुकाबले इस बार मामूली राहत

एजेंसी, नई दिल्ली Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Fri, 09 May 2025 06:45 AM IST
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सार

यूरोपीय जलवायु एजेंसी कोपरनिकस के मुताबिक, इस साल अप्रैल का वैश्विक औसत सतही वायु तापमान 14.96 डिग्री दर्ज किया गया। यह 1991–2020 के औसत तापमान से 0.60 डिग्री अधिक था। एजेंसी के मुताबिक, अप्रैल 2025 22 महीनों में 21वां महीना रहा जब वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री से अधिक रहा।

According to European climate agency Copernicus April 2025 was world second hottest month ever on Earth
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : Adobe Stock
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अप्रैल 2025 दुनिया का अब-तक का दूसरा सबसे गर्म अप्रैल रहा। इसके साथ ही बीते 12 महीनों का औसत तापमान औद्योगिक क्रांति (1850–1900) के शुरुआती तापमान के मुकाबले 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। यह जानकारी यूरोपीय जलवायु एजेंसी कोपरनिकस ने दी है।

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एजेंसी के मुताबिक, इस साल अप्रैल का वैश्विक औसत सतही वायु तापमान 14.96 डिग्री दर्ज किया गया। यह 1991–2020 के औसत तापमान से 0.60 डिग्री अधिक था। वहीं, अप्रैल 2024 के मुकाबले अप्रैल 2025 0.07 डिग्री ठंडा और 2016 में दर्ज तीसरे सबसे गर्म अप्रैल के मुकाबले 0.07 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था। कोपरनिकस के मुताबिक, अप्रैल 2025 22 में 21वां महीना रहा जब वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री से अधिक रहा।
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बढ़ रहा समुद्री तापमान, कम हो रही बर्फ
अप्रैल 2025 में औसत समुद्री सतह तापमान (एसएसटी) 20.89 डिग्री सेल्सियस था। यह इस महीने के लिए अब तक का दूसरा सबसे अधिक तापमान रहा। दुनिया के कई समुद्री क्षेत्रों में एसएसटी असामान्य रूप से अधिक रहा, खासतौर पर उत्तर-पूर्वी उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में। अप्रैल में भूमध्य सागर का तापमान सामान्य से ज़्यादा था, लेकिन मार्च जितना रिकॉर्ड तोड़ गर्म नहीं था। अप्रैल में उत्तर ध्रुव के पास आर्कटिक में समुद्री बर्फ सामान्य से 3 फीसदी कम थी।

  • यह पिछले 47 सालों में अप्रैल महीने के लिए छठा सबसे कम बर्फ वाला महीना रहा और इससे पहले दिसंबर से मार्च तक लगातार रिकॉर्ड बर्फ कम रही थी। दक्षिण ध्रुव के पास अंटार्कटिकामें समुद्री बर्फ सामान्य से 10 फीसदी कम थी, जो अप्रैल महीने के लिए अब तक की 10वीं सबसे कम मात्रा थी।

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चरम मौसमी घटनाओं का बढ़ रहा खतरा
कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की उप निदेशक सामंथा बर्गेस ने कहा कि जलवायु प्रणाली में हो रहे तेज बदलावों को समझने और जवाब देने के लिए लगातार निगरानी बेहद जरूरी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों ने धरती के तापमान को बढ़ाया है।

  • दुनिया के देशों ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए 2015 के पेरिस समझौते में तय किया गया था कि वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर के 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाएगा, लेकिन 2024 पहला कैलेंडर वर्ष बन गया जब औसत तापमान इस सीमा तक पहुंच गया।
  • हालांकि, इस सीमा को स्थायी रूप से पार करना तब माना जाएगा जब तापमान 20–30 वर्षों तक लगातार इतना ही अधिक बना रहे। हालांकि, दुनिया अब इसके काफी करीब पहुंच चुकी है।

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