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AFT: ट्रिब्यूनल ने क्यों किया डिफेंस सेक्रटरी और आर्मी चीफ को समन? क्या अब 'मुकदमे बाजी के आतंक' पर लगेगी रोक?

डिजिटल ब्यूरो, नई दिल्ली Published by: राहुल कुमार Updated Thu, 10 Oct 2024 08:48 PM IST
सार

Indian Army: आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (एएफटी) की प्रिंसिपल बेंच ने 7 अक्तूबर को जारी आदेश में रक्षा सचिव और सेना प्रमुख दोनों को डिफेंस सिक्योरिटी कोर के एक सेना जवान से जुड़े मामले में पेश होने को कहा है।

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AFT Why did tribunal summon the Defense Secretary and Army Chief
भारतीय सेना - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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डिजिटल ब्यूरो, नई दिल्ली। नई दिल्ली स्थित आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (एएफटी) की प्रिंसिपल बेंच ने अवमानना के एक मामले में रक्षा सचिव और आर्मी चीफ को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है। ट्रिब्यूनल ने यह आदेश एक जवान को विकलांगता पेंशन का भुगतान नहीं करने को लेकर दिया है। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि जब एएफटी ने किसी वरिष्ठ अधिकारी को समन किया हो। पिछले 10 सालों में एएफटी पहले भी कई बार अवमानना के मामलों में रक्षा सचिव और अन्य अधिकारियों को समन कर चुका है। 
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आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (एएफटी) की प्रिंसिपल बेंच ने 7 अक्तूबर को जारी आदेश में रक्षा सचिव और सेना प्रमुख दोनों को डिफेंस सिक्योरिटी कोर के एक सेना जवान से जुड़े मामले में पेश होने को कहा है। एएफटी की बेंच ने आदेश दिया है कि रक्षा सचिव और सेना प्रमुख 21 अक्तूबर को पेश हो कर ट्रिब्यूनल के आदेशों पर कोई कार्रवाई न किए जाने के बारे में अपना जवाब दें। ट्रिब्यूनल का कहना है कि बार-बार आदेशों के बावजूद ट्रिब्यूनल के फैसले को लागू नहीं किया गया है। 
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सरकार की लिटिगेशन पॉलिसी को किया दरकिनार
इस मामले से जुड़े वकील ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ट्रिब्यूनल की पिछली कार्रवाइयों को सेना औऱ रक्षा मंत्रालय ने अनसुना किया है। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने न केवल 6,000 से ज़्यादा एएफटी फैसलों को लागू नहीं किया है, बल्कि मंत्रालय ने देश भर के उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में अपने ही बुर्जुर्ग पेंशनभोगियों, विकलांग सैनिकों और विधवाओं के खिलाफ मुकदमों की सुनामी शुरू कर दी है, जो उसकी अपनी मुकदमेबाजी नीति के खिलाफ है। ऐसा तब है जब रक्षा मंत्रालय को अपने असहानुभूतिपूर्ण रवैये के चलते देश भर की अदालतों से कई बार फटकार का सामना करना पड़ रहा है।

सेना मुख्यालय के सूत्रों का कहना है कि सेना की एडजुटेंट जनरल ब्रांच ने वेटरंस के खिलाफ मुकदमेबाजी का कड़ा विरोध किया था। यहां तक कि मंत्रालय में भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग ने भी असहमति जताई थी। फिर भी, सेना के जज एडवोकेट जनरल विभाग और डिफेंस अकाउंट डिपार्टमेंट के अफसरों ने सरकार की लिटिगेशन पॉलिसी को दरकिनार करते हुए और अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ाने का काम किया है। 

निर्देशों का जानबूझ कर पालन नहीं 
इससे पहले ट्रिब्यूनल की एक बड़ी बेंच ने आदेश दिया था कि अगर उसके निर्देशों का जानबूझ कर पालन नहीं किया जाता है, तो एएफटी के पास अपने आदेशों को लागू करवाने के लिए अवमानना की शक्तियां हैं। कर्नल मुकुल देव बनाम भारत सरकार के मामले में दिए गए फैसले ने एएफटी को अपने आदेशों को लागू करवाने के लिए बहुत जरूरी शक्तियां प्रदान कीं, जिन्हें कई मामलों में रक्षा मंत्रालय की तरफ से अनदेखा किया जा रहा था। 31 जुलाई को दिए अपने आदेश में न्यायाधिकरण ने माना था कि न्यायाधिकरणों के निर्देशों का लगातार पालन न करना सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 की धारा-19 के दायरे में आता है और अधीनस्थ पीठों को हलफनामे के साथ संबंधित अवमानना आवेदनों की योग्यता निर्धारित करने का निर्देश दिया था। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने फैसला सुनाया था कि जानबूझकर आदेशों का पालन न करने की स्थिति में एएफटी अपने आदेशों को लागू करवाने के लिए वह अफसरों के खिलाफ अवमानना का मामला चला सकता है। एएफटी में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उसके फैसलों की रक्षा मंत्रालय की तरफ से नियमित रूप से अनदेखी की जाती रही है।    

5,000 से अधिक आदेशों पर कोई एक्शन नहीं
एएफटी की बड़ी बेंच ने 500 पेजों के फैसले में, एएफटी एक्ट अधिनियम की धारा 29 और एएफटी एक्ट के नियम 25 की व्याख्या करते हुए कहा था कि कानून निर्माताओं का एएफटी को शक्तिहीन बनाए रखने का कोई इरादा नहीं था। बेंच ने पाया कि एएफटी के 5,000 से अधिक आदेशों पर अफसरों की तरफ से कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है, जबकि उन पर किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कोई भी स्टे ऑर्डर नहीं दिया गया है। इससे पहले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट भी रक्षा मंत्रालय को एएफटी के आदेशों का पालन न करने को लेकर कड़ी फटकार भी लगा चुका है। वहीं सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाई कोर्ट भी कई मामलों में विकलांग कर्मियों और अन्य पेंशनभोगियों के खिलाफ बेबुनियाद अपील दायर करने को लेकर रक्षा मंत्रालय के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां कर चुकी हैं। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय की इस सोच की आलोचना सरकार के उसके अपने पैनल और समितियां भी कर चुकी हैं।  

अवमानना के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट पहुंची सरकार
वहीं, रक्षा मंत्रालय ने सितंबर में दिल्ली हाई कोर्ट में एएफटी को अवमानना के अधिकार के खिलाफ अपील दायर की थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस पर कोई भी स्टे ऑर्डर देने से इनकार दिया और ट्रिब्यूनल की शक्ति को बरकरार रखते हुए रक्षा सचिव को निर्देश दिया कि वे एएफटी के आदेश को चुनौती देने से पहले मंत्रालय की मंजूरी प्राप्त की गई थी या नहीं, इसकी जानकारी देते एक हलफनामा पेश करें। हालांकि इस मामले में अगली सुनवाई अक्तूबर में ही होनी है, लेकिन हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह नोटिस जारी नहीं कर रहा है या एएफटी की कार्यवाही पर रोक नहीं लगा रहा है।

फैला रखा है 'मुकदमे बाजी का आतंक'
ऑल इंडिया एक्स-सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और सेना के रिटायर्ड अफसर और पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता भीम सेन सहगल ने अमर उजाला को बताया था कि रक्षा मंत्रालय (वित्त) और जज एडवोकेट जनरल विभाग के अफसर न केवल देश की सभी अदालतों में विकलांग सैनिकों, वृद्ध पेंशनभोगियों और विधवाओं पर 'मुकदमे बाजी का आतंक' फैला रहे हैं, बल्कि सरकार को भी शर्मिंदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिसके चलते देश के विभिन्न दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बुजुर्ग पेंशनधारियों और विकलांग सैनिकों और विधवाओं को वकीलों और अदालतों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 

फैसला आने के बाद भी नहीं मिल रहा पैसा
सहगल के मुताबिक आजाद भारत के इतिहास में यह पहली बार है कि रक्षा कर्मियों, पेंशनभोगियों और विधवाओं के पक्ष में आए लगभग सभी अदालती और ट्रिब्यूनल्स के आदेशों को रक्षा मंत्रालय अधिकारी देश भर की हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल (AFT) में तकरीबन 748 अवमानना याचिकाएं पेंडिंग हैं, जिनमें रक्षा मंत्रालय को तीन महीने में ब्याज सहित पैसा लौटाने के लिए कहा गया है। लेकिन पैसा नहीं दिया जा रहा है। जबकि डिसेबिलिटी पेंशन के 1800 से ज्यादा मामले रक्षा मंत्रालय के पास पेंडिंग हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी हर केस में ऊपरी अदालतों में अपील कर रहे हैं और फौजियों की अनदेखी कर रहे हैं। 2016-17 के केसों में अभी तक पेमेंट नहीं हुई है, इनमें विकलांग जवानों, बुजुर्ग पेंशनभोगियों और शहीद सैनिकों की विधवाओं के पेंशन के मामले हैं। ये ऐसे मामले हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट भी उनके हक में फैसला दे चुका है, लेकिन अभी तक पैसा नहीं दिया गया है।   

न्याय पाना हुआ असंभव
सहगल के मुताबिक आज की तारीख में, सीमाओं पर दुश्मन और आतंकवादियों से लड़ने के बजाय, हमारे अधिकारी देश की अदालतों में अपने ही पुराने पेंशनभोगियों और दिग्गजों के खिलाफ लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, अटॉर्नी जनरल को भी सर्वोच्च न्यायालय में सबसे निचले रैंक के विकलांग कर्मियों के खिलाफ नियमित रूप से पेश होने के लिए कहा जा रहा है। एक देश के रूप में हम सभी के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है? उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने सशस्त्र सेना न्यायाधिकरणों (एएफटी) के न्यायिक सदस्यों के पदों को भी नहीं भरा है, बल्कि प्रशासनिक सदस्यों के पदों पर अपने फेवरेट अफसरों को बिठा दिया है। जिससे हमारे सैनिकों, भूतपूर्व सैनिकों और विधवाओं के लिए न्याय पाना असंभव होता जा रहा है।

पूर्व मंत्रियों ने उठाए कड़े कदम
सहगल कहते हैं कि यूपीए कार्यकाल के आखिर में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने सबसे पहले इस दर्द को महसूस किया और रक्षा मंत्रालय की तरफ से इन अनैतिक मुकदमों के बारे में जानकारी मिलने पर उन्होंने कई कदम उठाए। लेकिन जब भाजपा सत्ता में आई, तो प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप पर पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कई कड़े कदम उठाए और इस मुकदमेबाजी को समाप्त किया और रक्षा मंत्रालय के अफसरों की तरफ की जाने वाली बेवजह की अपीलों पर रोक लगाई। पूर्व रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल में 2019 में भी ऐसी सभी अपीलें वापस ले ली गईं थीं और जब सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय के खिलाफ सख्त टिप्पणी की, तो उन्होंने अपने अफसरों को ऐसे मामले दायर करने के लिए फटकार लगाई। यहां तक कि रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्रालय द्वारा गठित समितियों ने भी अफसरों को सैनिकों और विधवाओं के खिलाफ फालतू की मुकदमे बाजी में शामिल होने के लिए भी फटकार लगाई थी।  



 
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