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एयर इंडिया: 68 साल बाद टाटा के पास लौटी एयरलाइंस, जानिए नेहरू सरकार और जेआरडी टाटा से इसका कनेक्शन

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 08 Oct 2021 10:42 PM IST
सार
TATA Sons wins bid for Air India: जेआरडी टाटा देश के पहले लाइसेंसी पायलट थे। वे एक बार टाटा एयरलाइंस के विमान को कराची से उड़ाकर बॉम्बे ले आए थे। फिर आखिर किस बात पर वे जवाहरलाल नेहरू से नाराज हो गए थे? पढ़ें, पूरी कहानी...
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Air India returns to TATA Sons after 68 years as it bids highest amount in Government Auction
टाटा एयरलाइंस के सरकार के पास जाने के बावजूद जेआरडी टाटा ने लंबे समय तक बिना तनख्वाह के एयर इंडिया की कमान संभाली। - फोटो : Social Media

विस्तार
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केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एलान किया कि एयर इंडिया को खरीदने के लिए उसे जो बोलियां मिलीं, उनमें टाटा संस की बोली सबसे ऊंची रही। यानी एयर इंडिया की कमान 68 साल बाद फिर से टाटा के पास आ गई है। दरअसल, आजादी के बाद उड्डयन क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के चलते सरकार ने कंपनी के 49 फीसदी शेयर्स खरीद लिए। इस तरह 15 साल तक सफलतापूर्वक प्राइवेट एयरलाइंस के तौर पर काम कर रही टाटा एयरलाइंस सरकारी कंपनी बन गई थी। हालांकि, पिछले कुछ सालों में लगातार नुकसान उठाने के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने इसके विनिवेश का फैसला किया। टाटा ने भी यह मौका नहीं खोया और 18 हजार करोड़ रुपये की बोली लगाकर एयर इंडिया के संचालन की जिम्मेदारी फिर संभाल ली।

क्या है टाटा एयरलाइंस के एयर इंडिया बनने की कहानी?

इस कंपनी की स्थापना 1932 में जेआरडी टाटा ने की थी और वे खुद टाटा एयरलाइंस के पहले सिंगल इंजन विमान हैविललैंड पुस मॉथ को कराची से उड़ाकर बॉम्बे के जुहू एयरोड्रोम लाए थे। 1982 में टाटा एयरलाइंस की पहली फ्लाइट के 50 साल पूरे होने के मौके पर जेआरडी टाटा ने एक बार फिर वही कारनामा दोहराया और पुस मॉथ को कराची से उड़ाकर बॉम्बे ले आए। फर्क सिर्फ इतना था कि उस वक्त जेआरडी की उम्र 78 साल हो चुकी थी।

1946 में टाटा एयरलाइंस पब्लिक होल्डिंग में उतरी। अच्छे मुनाफे में भी रही। इसका नाम भी बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। आजादी के बाद नेहरू सरकार में राष्ट्रीयकरण की जो बयार आई, उससे उड्डयन क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। पहले सरकार ने 1948 में एयर इंडिया में 49 फीसदी शेयर खरीदे। बाद में 1953 में भारत सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास किया, जिससे एयर इंडिया समेत सात और प्राइवेट एयरलाइंस सरकारी क्षेत्र की कंपनियां बन गईं।

हालांकि, उड्डयन क्षेत्र में जेआरडी टाटा की विशेषज्ञता को देखते हुए सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन का पद लेने का न्योता दिया। टाटा ने भी सरकार की मनाने की कोशिशों के बीच पद ग्रहण कर लिया। इस दौरान उन्हें इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड में निदेशक के तौर पर भी शामिल किया गया।

एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण को लेकर नेहरू से नाराज थे जेआरडी टाटा

'द टाटा ग्रुप: फ्रॉम टॉर्च बियरर्स टू ट्रेलब्लेजर्स' किताब लिखने वाले शशांक शाह ने टाटा ग्रुप के इतिहास पर जो किताब लिखी है, उसमें एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण को लेकर जेआरडी टाटा और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच टकराव की बात भी सामने आती है। दरअसल, भारत सरकार की ओर से जब उड्डयन क्षेत्र की कंपनियों के राष्ट्रीयकरण पर बात हुई, तो जेआरडी ने इस पर नाराजगी जताते हुए नेहरू के सामने ही कह दिया था कि उनकी सरकार नागरिक उड्डयन क्षेत्र में निजी कंपनियों को दबाना चाहती है, खासतौर पर टाटा की हवाई सेवाओं को। हालांकि, नेहरू ने ऐसा कोई भी इरादा न रखने की बात कही और जेआरडी टाटा को निजी चिट्ठी लिखकर उन्हें समझाने की कोशिश भी की।

अपनी जवाबी चिट्ठी में जेआरडी ने सरकार के फैसले पर फिर नाराजगी जताई और कहा कि बिना चर्चा किए ही किसी कंपनी का निजीकरण किए जाने का यह फैसला निराशाजनक है। बताया जाता है कि जेआरडी टाटा का तर्क यह था कि नई सरकार को एयरलाइंस कंपनी चलाने का कोई अनुभव नहीं था और राष्ट्रीयकरण से उड़ान सेवाओं में सिर्फ नौकरशाही और सुस्ती दिखाई देगी। इससे कर्मचारियों का मनोबल और यात्रियों को दी जाने वाली सेवाएं, दोनों का ही स्तर गिरेगा।

जेआरडी टाटा के विरोध के बावजूद सरकार टाटा एयरलाइंस के अधिग्रहण के कदम के साथ आगे बढ़ी, लेकिन नेहरू ने टाटा की इस क्षेत्र में विशेषज्ञता को देखते हुए उन्हें एयर इंडिया का चेयरमैन बनाया। जेआरडी टाटा ने भी उस दौरान खुद की स्थापित की गई कंपनी को आगे ले जाने का फैसला किया। दरअसल, टाटा एयर इंडिया के मानकों में गिरावट को लेकर चिंतित थे। उनका मानना था कि भारतीय उड्डयन सेवाओं पर राष्ट्रीयकरण की वजह से कई बुरा असर नहीं दिखना चाहिए। अगले 25 सालों तक टाटा ने सफलतापूर्वक एयर इंडिया को आगे बढ़ाया। यात्री सेवा में इस कंपनी के उच्च मानकों के चलते ही सिंगापुर ने जब अपनी एयरलाइंस शुरू की, तब एयर इंडिया को अपना पार्टनर चुना।

सरकार के हाथ में जाने के बावजूद एयर इंडिया से जुड़े रहे जेआरडी टाटा

एयर इंडिया के सरकारी हाथों में जाने के बावजूद जेआरडी टाटा लंबे समय तक इस एयरलाइंस के प्रबंधन का काम देखते रहे। शशांक शाह की किताब के मुताबिक, कई बार जेआरडी टाटा को अपनी फ्लाइट्स में सफर करते देखा जाता था। वे इन फ्लाइट्स में खुद नोट्स लिखते थे और तय करते थे कि क्या ठीक किया जाना बाकी है, यात्रियों को किस तरह की वाइन दी जा रही है। एयर होस्टेस का बर्ताव कैसा है, उन्होंने कौन सी साड़ी पहनी है, यहां तक कि उनके बालों का स्टाइल कौन सा है।  

गंदगी देख खुद सफाई में जुट जाते थे जेआरडी

एयर इंडिया के मानकों को सबसे ऊपर रखने के लिए जेआरडी फ्लाइट में ही यात्रियों के अनुभव भी जानने की कोशिश करते थे। एयर इंडिया में उनके सफर का एक किस्सा ऐसा है कि जब उन्होंने फ्लाइट में टॉयलेट में गंदगी देखी तो खुद ही शर्ट की बाहें समेट कर उसकी सफाई में जुट गए। कभी फ्लाइट्स के काउंटर में भी गंदगी होती थी तो वे डस्टर मंगाकर खुद ही उस जगह की सफाई में जुट जाते थे। एयरलाइंस के प्रति अपनी इसी प्रतिबद्धता की वजह से जेआरडी के कार्यकाल में एयर इंडिया की गिनती सबसे बेहतरीन एयरलाइंस सेवाओं में होती थी।

1953 में नेहरू सरकार ने एयर इंडिया का अधिग्रहण किया था। सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास किया, जिससे एयर इंडिया समेत सात और प्राइवेट एयरलाइंस सरकारी क्षेत्र की कंपनियां बन गईं। तब के अखबार संडे स्टेट्समैन में आप देख सकते हैं कि इस खबर को शीर्ष में स्थान दिया गया था। आज वही एयर इंडिया वापस सरकार ने टाटा ग्रुप को सौंप दिया है। 

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