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Supreme Court: डीएनडी फ्लाईवे पर टोल न वसूले जाने पर रोक बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की NTBCL की याचिका
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: बशु जैन
Updated Fri, 09 May 2025 03:10 PM IST
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सार
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साल 2016 में डीएनडी फ्लाईवे पर टोल वसूलने पर रोक लगाई थी, जिससे डीएनडी से गुजरने वाले लाखों वाहन चालकों को बड़ी राहत मिली थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में एनटीबीसीएल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : PTI

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विस्तार
दिल्ली-नोएडा को जोड़ने वाले डीएनडी फ्लाईवे पर टोल वसूलने पर रोक बरकरार रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लाईवे को टोल फ्री रखने के फैसले की समीक्षा के लिए नोएडा टोल ब्रिज कंपनी (एनटीबीसीएल) की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से डीएनडी से गुजरने वाले लाखों वाहन चालकों को मिल रही राहत बरकरार रहेगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दिल्ली-नोएडा-डायरेक्ट (डीएनडी) फ्लाईवे का संचालन करने वाली निजी कंपनी नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (एनटीबीसीएल) की याचिका पर 20 दिसंबर 2024 के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कंपनी ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई सीएजी रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि इसमें कंपनी के बारे में कुछ सकारात्मक टिप्पणियां थीं, जिनका आदेश में जिक्र नहीं किया गया था। पीठ ने कंपनी के वकील से कहा कि कंपनी ने बहुत सारा पैसा कमाया है।
शीर्ष अदालत ने एनटीबीसीएल के वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप पुरी की एक अन्य याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि वह रिपोर्ट को दोबारा प्रकाशित करेगी। पुरी ने कैग के निष्कर्षों के आधार पर फैसले में कथित तौर पर उनके खिलाफ की गई व्यक्तिगत टिप्पणियों को हटाने का अनुरोध किया था। पुरी के वकील ने कहा कि कैग ने उनके खिलाफ कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की है।
ये भी पढ़ें: उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना से नाराज, सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी कलेक्टर को तहसीलदार बनाने का दिया आदेश
दिसंबर 2024 में भी खारिज की गई थी याचिका
दिसंबर 2024 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर निजी कंपनी की याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा था कि 'टोल वसूलना जारी रखने की कोई वजह नहीं है। हम टोल वसूलने के समझौते को अवैध मानते हैं। इसने निजी फर्म एनटीबीसीएल को टोल संग्रह सौंपने के लिए नोएडा प्राधिकरण की खिंचाई की, जिसके पास टोल वसूलने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था।'
कैग की रिपोर्ट का दिया हवाला
न्यायालय ने कैग की रिपोर्ट का हवाला दिया। जिसमें कहा गया है कि 2001-2016 के दौरान एनटीबीसीएल की वार्षिक टोल आय 892.51 करोड़ रुपये थी। अदालत ने कहा कि एनटीबीसीएल पिछले 11 वर्षों से लाभ कमा रही है। 31 मार्च, 2016 तक इसका कोई संचित घाटा नहीं था। इसने अपने शेयरधारकों को 31 मार्च, 2016 तक 243.07 करोड़ रुपये का लाभांश दिया है और अपने सभी ऋणों को ब्याज सहित चुका दिया है। इस प्रकार, एनटीबीसीएल ने 31 मार्च, 2016 तक परियोजना लागत, रखरखाव लागत तथा अपने प्रारंभिक निवेश पर उल्लेखनीय लाभ वसूल कर लिया था। उपयोगकर्ता शुल्क/टोल का संग्रह जारी रखने का कोई तुक या कारण नहीं है।
ये भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने विधि पाठ्यक्रम समीक्षा याचिका को लंबित मामले से जोड़ने का दिया आदेश, पढ़ें पूरी खबर
2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टोल वसूलने पर लगाई थी रोक
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साल 2016 में डीएनडी फ्लाईवे पर टोल वसूलने पर रोक लगाई थी, जिससे डीएनडी से गुजरने वाले लाखों वाहन चालकों को बड़ी राहत मिली थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि 9.2 किलोमीटर लंबे, आठ लेन वाले दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (डीएनडी) फ्लाईवे का उपयोग करने वालों से अब से कोई टोल नहीं लिया जाएगा।
यह आदेश उच्च न्यायालय ने फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की जनहित याचिका पर दिया था। 2012 में दायर जनहित याचिका में 'नोएडा टोल ब्रिज कंपनी द्वारा टोल वसूलने को चुनौती दी गई थी। 100 पन्नों के फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा था, 'जो शुल्क लगाया जा रहा है, वह यूपी औद्योगिक विकास अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है'।
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शीर्ष अदालत ने एनटीबीसीएल के वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप पुरी की एक अन्य याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि वह रिपोर्ट को दोबारा प्रकाशित करेगी। पुरी ने कैग के निष्कर्षों के आधार पर फैसले में कथित तौर पर उनके खिलाफ की गई व्यक्तिगत टिप्पणियों को हटाने का अनुरोध किया था। पुरी के वकील ने कहा कि कैग ने उनके खिलाफ कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की है।
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दिसंबर 2024 में भी खारिज की गई थी याचिका
दिसंबर 2024 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर निजी कंपनी की याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा था कि 'टोल वसूलना जारी रखने की कोई वजह नहीं है। हम टोल वसूलने के समझौते को अवैध मानते हैं। इसने निजी फर्म एनटीबीसीएल को टोल संग्रह सौंपने के लिए नोएडा प्राधिकरण की खिंचाई की, जिसके पास टोल वसूलने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था।'
कैग की रिपोर्ट का दिया हवाला
न्यायालय ने कैग की रिपोर्ट का हवाला दिया। जिसमें कहा गया है कि 2001-2016 के दौरान एनटीबीसीएल की वार्षिक टोल आय 892.51 करोड़ रुपये थी। अदालत ने कहा कि एनटीबीसीएल पिछले 11 वर्षों से लाभ कमा रही है। 31 मार्च, 2016 तक इसका कोई संचित घाटा नहीं था। इसने अपने शेयरधारकों को 31 मार्च, 2016 तक 243.07 करोड़ रुपये का लाभांश दिया है और अपने सभी ऋणों को ब्याज सहित चुका दिया है। इस प्रकार, एनटीबीसीएल ने 31 मार्च, 2016 तक परियोजना लागत, रखरखाव लागत तथा अपने प्रारंभिक निवेश पर उल्लेखनीय लाभ वसूल कर लिया था। उपयोगकर्ता शुल्क/टोल का संग्रह जारी रखने का कोई तुक या कारण नहीं है।
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2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टोल वसूलने पर लगाई थी रोक
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साल 2016 में डीएनडी फ्लाईवे पर टोल वसूलने पर रोक लगाई थी, जिससे डीएनडी से गुजरने वाले लाखों वाहन चालकों को बड़ी राहत मिली थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि 9.2 किलोमीटर लंबे, आठ लेन वाले दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (डीएनडी) फ्लाईवे का उपयोग करने वालों से अब से कोई टोल नहीं लिया जाएगा।
यह आदेश उच्च न्यायालय ने फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की जनहित याचिका पर दिया था। 2012 में दायर जनहित याचिका में 'नोएडा टोल ब्रिज कंपनी द्वारा टोल वसूलने को चुनौती दी गई थी। 100 पन्नों के फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा था, 'जो शुल्क लगाया जा रहा है, वह यूपी औद्योगिक विकास अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है'।
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