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Bihar: बिहार में फिर निकला जंगलराज का जिन्न! कैसे इस शब्द की शुरुआत हुई और किस तरह लालू ने इससे कब्जाई सत्ता?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नितिन गौतम Updated Mon, 27 Oct 2025 09:43 AM IST
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सार

लालू यादव की पहचान एक बेहद ही सुलझे हुए और जमीनी नेता के तौर पर है। जब विपक्षी पार्टियों ने कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए उनकी सरकार के लिए जंगलराज शब्द का इस्तेमाल किया तो लालू यादव ने बड़ी ही चतुराई से इस आलोचना को ही अपना हथियार बना लिया।

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'जंगलराज' शब्द से पीछा छुड़ाना राजद के लिए चुनौती - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार जारी है। बिहार के चुनाव के समय एक शब्द बहुत बार सुनने को मिलता है और वो है 'जंगलराज', जिसे आम तौर पर राजद सरकार के 15 साल के शासन की आलोचना के लिए इस्तेमाल किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में चुनाव प्रचार के जोर पकड़ते ही फिर से इस जंगलराज शब्द का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। 


पीएम मोदी ने समस्तीपुर की पहली जनसभा में ही जंगलराज की याद दिलाई
बिहार के समस्तीपुर से पीएम मोदी ने विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रचार की शुरुआत की और अपनी पहली ही जनसभा में जंगलराज की याद दिला दी। उन्होंने कहा कि 'फिर एक बार एनडीए सरकार, सुशासन सरकार; जंगलराज वालों को दूर रखेगा बिहार।' ऐसा कहा जाता है कि राजद सरकार के 15 वर्षों के कार्यकाल के दौरान बिहार में अपराध की दर बहुत ज्यादा थी और कानून व्यवस्था कमजोर थी। ऐसे में विपक्षी पार्टियां लालू सरकार के कार्यकाल की जंगलराज कहकर आलोचना करती है और अब इतने वर्षों बाद भी राजद के लिए इस शब्द से पीछा छुड़ाना संभव नहीं हो सका है। तो आइए जानते हैं कि कैसे जंगलराज शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ और किसने सबसे पहले इस शब्द का जिक्र किया।
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कैसे हुई जंगलराज शब्द की शुरुआत
विपक्षी पार्टियों द्वारा राजद सरकार के लिए जंगलराज शब्द का इस्तेमाल करने से बहुत पहले पटना हाईकोर्ट ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था। दरअसल एक नागरिक मामले की सुनवाई के दौरान अगस्त 1997 में जस्टिस वीपी सिंह और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की खंडपीठ ने राजद सरकार की आलोचना करते हुए जंगलराज शब्द का इस्तेमाल किया था। दरअसल एक सामाजिक कार्यकर्ता ने पटना में बारिश के मौसम में जलभराव की समस्या, नालों की सफाई न होने को लेकर अदालत में याचिका दायर की थी। उस समय अपनी टिप्पणी में नाराजगी जताते हुए अदालत ने कहा कि 'हालात जंगलराज से भी खराब हैं और कोर्ट के निर्देशों और जनहित की भी कोई परवाह नहीं की जा रही है।'

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सुशील कुमार ने बनाया चर्चित
अदालत की टिप्पणी के बाद राजद के राजनीतिक विरोधियों ने भी खराब कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए जंगलराज टर्म का इस्तेमाल शुरू कर दिया। भाजपा के दिवंगत नेता सुशील कुमार ने लालू यादव सरकार को निशाने पर लेते हुए सबसे ज्यादा इस शब्द का इस्तेमाल किया और एक तरह से इसे चर्चित किया। जब 2000 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे तो राजद सरकार भारी दबाव में थी।



लालू यादव ने आलोचना को ही बनाया हथियार
लालू यादव की पहचान एक बेहद ही सुलझे हुए और जमीनी नेता के तौर पर है। जब विपक्षी पार्टियों ने कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए उनकी सरकार के लिए जंगलराज शब्द का इस्तेमाल किया तो लालू यादव ने बड़ी ही चतुराई से इस आलोचना को ही अपना हथियार बनाया। संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब 'बंधु बिहारी- कहानी लालू यादव व नीतीश कुमार की' में इसका जिक्र किया है। किताब के अनुसार, विपक्षी आलोचनाओं के बीच लालू प्रसाद यादव ने कहना शुरू कर दिया कि विपक्षी बिहार में जंगलराज होने का दावा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बिहार में निचली और पिछड़ी जातियां सत्ता में हैं। लालू यादव खुद पिछड़ी जाति से आते हैं। उन्होंने कहा कि वे गरीब और शोषित वर्ग से आते हैं और पहली बार गरीब वर्ग, उच्च वर्ग के सामने सिर ऊंचा करके जी रहा है और उच्च वर्ग का प्रभुत्व कम हो रहा है। लालू यादव जनता को ये समझाने में सफल रहे कि विपक्षी जंगलराज खत्म करने की बात करके असल में गरीबों और पिछड़ों के राज को खत्म करना चाहते हैं। लालू यादव को इस राजनीति कौशल का फायदा मिला और साल 2000 में बिहार में फिर से राजद की सरकार बनी और राबड़ी देवी सीएम बनीं। 

अभी भी राजद के गले की फांस है 'जंगलराज'
बिहार में राजद को सत्ता से बाहर हुए दो दशक का समय बीत चुका है, लेकिन अभी भी राजद जंगलराज शब्द से पीछा नहीं छुड़ा पाई है। तेजस्वी यादव की आज सबसे बड़ी चुनौती राजद की जंगलराज वाली छवि से छुटकारा है। तेजस्वी यादव कहते हैं कि राजद सरकार में जंगलराज की बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बावजूद राजद अभी तक जंगलराज शब्द से पीछा नहीं छुड़ा पाई है और यही वजह है कि चुनाव में विपक्षी पार्टियां अक्सर इसे मुद्दा बनाती हैं और शायद कहीं न कहीं ये आज भी प्रभावी है। 


 
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