Bihar Politics: विपक्ष के लिए आसान नहीं है 'बिहार मॉडल' पर 2024 की राह, जब हर दल का बड़ा चेहरा है पीएम फेस!
Bihar Politics: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के राजनीतिक उठापटक से विपक्षियों में निश्चित तौर पर एक पॉजिटिव एनर्जी दिख रही है, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि बिहार मॉडल साल 2024 में होने वाले चुनावों के लिए संजीवनी ही साबित होगा...

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बिहार में जिस तरीके के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद वहां पर सरकार बदली उससे चर्चाएं तेज़ हो गईं कि 2024 के लिए नया रोडमैप अब बिहार से तैयार किया जाने लगा है। इशारों-इशारों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बात का जिक्र भी किया कि 2014 में जो थे वह 2024 में नहीं रहेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के राजनीतिक उठापटक से विपक्षियों में निश्चित तौर पर एक पॉजिटिव एनर्जी दिख रही है, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि बिहार मॉडल साल 2024 में होने वाले चुनावों के लिए संजीवनी ही साबित होगा। क्योंकि विपक्षी दलों के हर बड़े चेहरे को हर पार्टी का कार्यकर्ता प्रधानमंत्री का चेहरा ही मानकर चल रहा है। फिलहाल बिहार में जेडीयू और राजद की सरकार बनने के साथ प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की बैठकों का दौर शुरू हो गया है। जबकि इसी राजनैतिक उठापटक के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी भविष्य की राजनीति राह को तलाशना शुरू कर दिया है।

गठबंधन पूरे देश के लिए एक बड़ा रोल मॉडल
बिहार में राजद के साथ सरकार बनाने वाली पार्टी जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं कि यह गठबंधन सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा रोल मॉडल बनेगा। उनके मुताबिक इसी आधार पर साल 2024 का पूरा रोड मैप तैयार किया जाएगा। वह कहते हैं कि फिलहाल अभी यह कहना तो जल्दी होगा कि कौन से राजनीतिक दलों के साथ कब-कब बैठकें होंगी, लेकिन यह तय है कि जल्द ही प्रमुख विपक्षी दलों की बैठक में आगे होने वाले चुनावों की पूरी रणनीति तैयार की जाएगी। भाजपा से अलग होने के बाद जेडीयू जिस तरह से आक्रामक होकर न सिर्फ केंद्र सरकार पर हमलावर है, बल्कि कांग्रेस जैसे तमाम बड़े राजनैतिक विपक्षी दलों को एकजुट कर आगे बढ़ने के लिए भी योजनाएं बनाने में जुट गया है।
बिहार के हालिया राजनीतिक उठापटक को लेकर राजनीतिक विश्लेषक जगदीश चंद्र ठाकुर कहते हैं कि बीते कुछ दिनों में जिस तरीके से भाजपा के दांवपेंच से सियासी हलचलें मच रही थीं, उस दौर में बिहार का राजनीतिक घटनाक्रम विपक्षियों को निश्चित तौर पर राहत देने वाला है। जेसी ठाकुर कहते हैं कि जेडीयू ने कहा कि भाजपा आरसीपी सिंह के बहाने उनकी पार्टी को तोड़ना चाह रही थी, लेकिन ऐन वक्त पर न वह सिर्फ सजग हुए बल्कि उन्होंने गठबंधन भी तोड़ दिया। वह कहते हैं इससे विपक्ष को एक बूस्टर डोज मिली है। विपक्ष को लगने लगा है कि कोई तो क्षेत्रीय दल है जो भाजपा के साथ रहने के बाद उस पर आक्रामक भी जो सकता है। ऐसी दशा में जेडीयू के बड़े नेता नीतीश कुमार एक बार फिर से बड़े चेहरे के तौर पर सामने तो उभरे हैं। लेकिन यह कहना अभी जल्दी होगा कि सब कुछ उसी तरीके से चलेगा जैसा कि बिहार में हुए बड़े राजनैतिक उलटफेर के बाद सोचा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दरअसल विपक्ष में बड़ा दांव तो हाल के दौर में जेडीयू ने ही खेला है, लेकिन विपक्ष में बड़ी पार्टी के तौर पर वहां पर खुद को कांग्रेस के अलावा ममता बनर्जी की टीएमसी भी देख रही है।
विपक्षी दल क्यों बनाएंगे किसी और को चेहरा
राजनीतिक जानकार और सेंटर पॉलिटिकल स्टडीज के पूर्व निदेशक अमरेंद्र कुमार कहते हैं कि महागठबंधन की जो राजनैतिक तस्वीर है उसमें हर दल खुद को दूसरे से बड़ा बताने की कोशिश करता रहा है। वह कहते हैं कि नीतीश कुमार के दल में भी कई नेता ऐसे हैं, जो कि बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद उन्हें प्रधानमंत्री का चेहरा बताने में जुटे हैं। हालांकि यह बात अलग है कि खुद नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री के चेहरे वाली मंशा से इनकार किया है। इसके अलावा प्रमुख विपक्षी दलों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार दूसरे राज्यों के प्रमुख विपक्षी दलों से संपर्क में भी रहती हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना से लेकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अलावा कई अलग-अलग दलों के नेताओं से तृणमूल कांग्रेस की बैठकों का दौर चलता रहता है। ऐसे में जो पार्टी इतनी सक्रिय है वह अपने नेता को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर क्यों नहीं प्रोजेक्ट करेगी। क्योंकि देश भर में प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस खुद को सबसे आगे पाती है। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की मंशा अपने दल के किसी नेता को प्रधानमंत्री बनाने की है। महाअघाड़ी में शामिल एनसीपी के नेता शरद पवार को पीएम फेस मान कर चलते हैं। वह कहते हैं कि इसी महत्वाकांक्षाओं के चलते बिहार का फॉर्मूला कितना कारगर होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि बात जब गठबंधन के साथ भाजपा की नीतियों पर उसे घेरने की होगी तो रास्ता भी निकल आएगा। उक्त नेता का कहना है कि प्रधानमंत्री का चेहरा होना और न होना यह सिर्फ कयासबाजी के एक दौर तक चलता है। जब सभी विपक्षी दल आपस में मिलकर बैठते हैं और समाधान की ओर बढ़ते हैं तो फिर प्रधानमंत्री के चेहरे पर कोई विवाद नहीं होता है। उनका कहना है कि यह बात बिल्कुल सही है कि हर पार्टी अपने एक बड़े नेता को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करती है। लेकिन जब बात सामूहिक तौर पर किसी एक नेता को स्वीकार करने की होती है, तो घटक दलों की राय सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसे में उन्हें पूरा भरोसा है कि बिहार में हुए घटनाक्रम के बाद सभी विपक्षी दल न सिर्फ एक होकर 2024 में भारतीय जनता पार्टी की नीतियों की वजह से इस पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए जुटे होंगे, बल्कि एक नई मजबूत सरकार भी बनाने की ओर अग्रसर होंगे।