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बिक्रमजीत सिंह: कभी बेचते थे पॉलिसी, खेती के शौक को बनाया पेशा, खड़ी कर दी 100 करोड़ रुपये की कंपनी
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Mon, 28 Apr 2025 08:17 AM IST
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सार
बिक्रमजीत सिंह एक ऐसे उद्यमी हैं, जो युवाओं के लिए मिसाल हैं। वे कभी बीमा पॉलिसी बेचते थे, लेकिन उन्हें खेती का भी भरपूर शौक था। उन्होंने इसे पेशा बनाया और अपनी मेहनत से 100 करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी कर दी। पढ़ें पहले से चली आ रही विचारधारा को तोड़कर, नया कीर्तिमान रचने वाली सक्सेस स्टोरी

पंजाब के बिक्रमजीत सिंह ने खड़ी कर दी सौ करोड़ रुपये की कंपनी
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट

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विस्तार
आज जब युवा खेती-किसानी से दूर हो रहे हैं, तब बिक्रमजीत ने अपनी सूझबूझ के दम पर कृषि को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया है और पिछले दो साल में सैकड़ों युवाओं को विदेश जाने से रोक कर स्वरोजगार को भी बढ़ावा दिया है...
आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा है- 'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहि चले कपूत। लीक छोड़ तीनों चलें, शायर सिंह, सपूत। कहना का आशय है कि, यदि वैसा ही सब कुछ होता रहे, तो समाज और भेड़ों के झुंड में कोई अंतर नहीं रहेगा। हालांकि, कुछ जो उत्कृष्ट प्रतिभाएं होती हैं वो चली आ रहीं परंपराओं को तोड़कर अपना नया प्रतिमान गढ़ती हैं। समाज के लिए ऐसी ही उत्कृष्ट प्रतिभा के उदाहरण हैं हेल्दी अर्थ के मालिक बिक्रमजीत सिंह। इन्होंने कृषि तकनीक और नए तरीकों का इस्तेमाल करके न केवल स्थानीय किसानों को सशक्त बनाने का काम किया, बल्कि अपनी मेहनत के बल पर सौ करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी कर दी। अमूमन आज के समय में जहां युवा खेती-किसानी को कम मुनाफे का सौदा मानकर इससे दूरी बनाते हैं, वहीं बिक्रमजीत का यह प्रयास ऐसे युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करने वाला कदम है।
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आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा है- 'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहि चले कपूत। लीक छोड़ तीनों चलें, शायर सिंह, सपूत। कहना का आशय है कि, यदि वैसा ही सब कुछ होता रहे, तो समाज और भेड़ों के झुंड में कोई अंतर नहीं रहेगा। हालांकि, कुछ जो उत्कृष्ट प्रतिभाएं होती हैं वो चली आ रहीं परंपराओं को तोड़कर अपना नया प्रतिमान गढ़ती हैं। समाज के लिए ऐसी ही उत्कृष्ट प्रतिभा के उदाहरण हैं हेल्दी अर्थ के मालिक बिक्रमजीत सिंह। इन्होंने कृषि तकनीक और नए तरीकों का इस्तेमाल करके न केवल स्थानीय किसानों को सशक्त बनाने का काम किया, बल्कि अपनी मेहनत के बल पर सौ करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी कर दी। अमूमन आज के समय में जहां युवा खेती-किसानी को कम मुनाफे का सौदा मानकर इससे दूरी बनाते हैं, वहीं बिक्रमजीत का यह प्रयास ऐसे युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करने वाला कदम है।
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सुबह से शाम तक बेचा करते थे पॉलिसी
बिक्रमजीत पंजाब के लुधियाना के गहलेवाल गांव से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने वर्ष 2005 में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद एक बीमा कंपनी में एजेंट के काम में लग गए। वह लोगों को रोज सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक बीमा पॉलिसी बेचा करते थे। अपनी रोजाना की इस दिनचर्या से वह परेशान हो गए थे। तभी उनके मन में कुछ नया करने का ख्याल आया। चूंकि उन्हें बचपन से खेती करने का शौक था और अपने इस शौक को पूरा करते हुए उन्होंने नौकरी के साथ अनार की खेती भी शुरू कर दी, लेकिन उन्हें इस खेती में नुकसान होने लगा, जिस वजह से उन्हें अनार की खेती बंद करनी पड़ी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और नींबू की खेती शुरू की। तब तक उन्होंने वर्ष 2010 में एमबीए की डिग्री प्राप्त कर ली थी। उसके बाद बैंकिंग क्षेत्र में काम करना शुरू किया, लेकिन उनका दिल यहां भी नहीं लगा। उन्हें हमेशा यह लगता था कि कब तक नौ से पांच की नौकरी में बंधे रहेंगे, हालांकि उन्हें खेती से फायदा होने लगा था। 2014 में जब देश में सत्ता बदली, उसी के साथ बिक्रमजीत ने भी अपनी जिंदगी बदल ली। उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और पूरी तरह से खेती में जुट गए।
बिक्रमजीत पंजाब के लुधियाना के गहलेवाल गांव से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने वर्ष 2005 में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद एक बीमा कंपनी में एजेंट के काम में लग गए। वह लोगों को रोज सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक बीमा पॉलिसी बेचा करते थे। अपनी रोजाना की इस दिनचर्या से वह परेशान हो गए थे। तभी उनके मन में कुछ नया करने का ख्याल आया। चूंकि उन्हें बचपन से खेती करने का शौक था और अपने इस शौक को पूरा करते हुए उन्होंने नौकरी के साथ अनार की खेती भी शुरू कर दी, लेकिन उन्हें इस खेती में नुकसान होने लगा, जिस वजह से उन्हें अनार की खेती बंद करनी पड़ी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और नींबू की खेती शुरू की। तब तक उन्होंने वर्ष 2010 में एमबीए की डिग्री प्राप्त कर ली थी। उसके बाद बैंकिंग क्षेत्र में काम करना शुरू किया, लेकिन उनका दिल यहां भी नहीं लगा। उन्हें हमेशा यह लगता था कि कब तक नौ से पांच की नौकरी में बंधे रहेंगे, हालांकि उन्हें खेती से फायदा होने लगा था। 2014 में जब देश में सत्ता बदली, उसी के साथ बिक्रमजीत ने भी अपनी जिंदगी बदल ली। उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और पूरी तरह से खेती में जुट गए।
खुद के साथ, औरों का भी भला
बिक्रमजीत ने 200 एकड़ जमीन लीज पर लेकर जैविक खेती शुरू की। उन्होंने अपनी काबिलियत और सूझबूझ के दम पर पारंपरिक खेती को न अपनाते हुए जैविक खेती को अपनाया। इसके अतिरिक्त एक ही फसल की खेती करने के बजाए अनाज, सब्जी से लेकर फल तक उगाए। इस तरीके से खेती को कई हिस्सों में बांटकर उन्हें काफी लाभ भी हुआ, लेकिन वह यहीं नहीं रुके। वह खेती को एक अलग मुकाम पर पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का रुख किया, जहां उनके साथ कई किसान काम करने लगे, जिससे बिक्रमजीत की काफी अच्छी कमाई होने लगी।
बिक्रमजीत ने 200 एकड़ जमीन लीज पर लेकर जैविक खेती शुरू की। उन्होंने अपनी काबिलियत और सूझबूझ के दम पर पारंपरिक खेती को न अपनाते हुए जैविक खेती को अपनाया। इसके अतिरिक्त एक ही फसल की खेती करने के बजाए अनाज, सब्जी से लेकर फल तक उगाए। इस तरीके से खेती को कई हिस्सों में बांटकर उन्हें काफी लाभ भी हुआ, लेकिन वह यहीं नहीं रुके। वह खेती को एक अलग मुकाम पर पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का रुख किया, जहां उनके साथ कई किसान काम करने लगे, जिससे बिक्रमजीत की काफी अच्छी कमाई होने लगी।
‘हेल्दी अर्थ’ की स्थापना
ऑर्गेनिक फार्मिंग को और बढ़ावा देने के लिए बिक्रमजीत ने "हेल्दी अर्थ" (Healthy Earth) की स्थापना की। हेल्दी अर्थ की स्थापना के बाद, वह कई ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स बेचने लगे। इसके बाद उन्होंने ऑर्गेनिक फूड रेस्टोरेंट भी खोला और अपने कारोबार को आगे बढ़ाते चले गए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
ऑर्गेनिक फार्मिंग को और बढ़ावा देने के लिए बिक्रमजीत ने "हेल्दी अर्थ" (Healthy Earth) की स्थापना की। हेल्दी अर्थ की स्थापना के बाद, वह कई ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स बेचने लगे। इसके बाद उन्होंने ऑर्गेनिक फूड रेस्टोरेंट भी खोला और अपने कारोबार को आगे बढ़ाते चले गए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
स्वरोजगार पर दिया बल
बिक्रमजीत ने 'जनरेशन ऑफ फार्मिंग' नामक संगठन की स्थापना की और पिछले कुछ सालों में इस संगठन के माध्यम से सैकड़ों युवाओं को विदेश जाने से रोका। उनका उद्देश्य अपने साथ-साथ समाज का भी भला करना है। इसलिए वह कृषि और खुदरा क्षेत्र में अधिक से अधिक नौकरियां पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं। बिक्रमजीत ने स्मार्ट मैनेजमेंट कौशल, स्थानीय किसानों के सहयोग और अपनी सूझबूझ से 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का साम्राज्य खड़ा कर दिया है। उन्होंने दिखा दिया है कि कृषि सिर्फ आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह एक फलता-फूलता व्यवसाय और विकास का मंच भी हो सकता है।
युवाओं को सीख
बिक्रमजीत ने 'जनरेशन ऑफ फार्मिंग' नामक संगठन की स्थापना की और पिछले कुछ सालों में इस संगठन के माध्यम से सैकड़ों युवाओं को विदेश जाने से रोका। उनका उद्देश्य अपने साथ-साथ समाज का भी भला करना है। इसलिए वह कृषि और खुदरा क्षेत्र में अधिक से अधिक नौकरियां पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं। बिक्रमजीत ने स्मार्ट मैनेजमेंट कौशल, स्थानीय किसानों के सहयोग और अपनी सूझबूझ से 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का साम्राज्य खड़ा कर दिया है। उन्होंने दिखा दिया है कि कृषि सिर्फ आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह एक फलता-फूलता व्यवसाय और विकास का मंच भी हो सकता है।
युवाओं को सीख
- जो लोग ईमानदारी से कड़ी मेहनत करते हैं, उन्हें देर से ही सही, लेकिन सफलता जरूर मिलती है।
- संघर्ष की आग में तपकर ही सोना चमकता है, और इन्सान सफल होता है।
- सपनों को हकीकत में बदलने का हुनर, हार के बाद नई शुरुआत से आता है।
- कामयाबी के हर सफर में थोड़ा धैर्य जरूरी होता है।
- सपने भी उन्हीं के सच होते हैं, जो हारने से नहीं डरते।