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HC: व्यस्त समय में ट्रेन में दरवाजे के पास खड़ा होना लापरवाही नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुआवजा रखा बरकरार
अमर उजाला ब्यूरो
Published by: लव गौर
Updated Wed, 10 Dec 2025 05:16 AM IST
सार
Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि व्यस्त समय में ट्रेन में दरवाजे के पास खड़ा होना लापरवाही नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने रेल दुर्घटना में मृतक व्यक्ति के परिवार के लिए मुआवजे को बरकरार रखा।
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कोर्ट का आदेश।
- फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि व्यस्त समय के दौरान मुंबई की उपनगरीय ट्रेनों में काम के लिए यात्रा करने वाले व्यक्ति के पास ट्रेन के दरवाजे के पास खड़े होने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। वह अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा करता है। इसे लापरवाही नहीं कहा जा सकता। यह टिप्पणी करते हुए अदालत ने एक रेल दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को दिए गए मुआवजे को बरकरार रखा।
जस्टिस जितेंद्र जैन की एकल पीठ ने दुर्घटना को लेकर रेलवे प्राधिकरण की दलील को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। रेलवे ने कहा था कि दुर्घटना लापरवाह व्यवहार के कारण हुई, क्योंकि व्यक्ति ट्रेन के दरवाजे के पास फुटबोर्ड पर खड़ा था। केंद्र सरकार ने रेलवे दावा न्यायाधिकरण के 2009 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया गया था।
यह है मामला
28 अक्तूूबर 2005 को हादसे का शिकार व्यक्ति भायंदर से मरीन लाइंस की ओर लोकल ट्रेन में सफर कर रहा था। रास्ते में वह ट्रेन से गिर गया और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई।
टिकट न होने की दलील भी खारिज
रेलवे ने तर्क दिया कि दुर्घटना के समय मृतक के पास कोई टिकट या पास नहीं मिला। अदालत ने कहा, मृतक की पत्नी ने न्यायाधिकरण के समक्ष उसका ट्रेन पास पेश किया था, जिससे यह साबित होता है कि वह वास्तविक यात्री था। अदालत ने कहा, दुर्घटना के दिन पास घर पर भूल जाने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इससे आश्रितों को मुआवजा राशि से वंचित नहीं किया जा सकता।
ये भी पढ़ें: Supreme Court: SIR पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, EC से पूछा- क्या संदिग्ध नागरिकता की शुरुआती जांच भी नहीं कर सकते?
कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं
ट्रेन में व्यस्त समय में भीड़ होती है। यात्री के लिए डिब्बे में प्रवेश भी मुश्किल होता है। कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति भारी भीड़ के कारण दरवाजे के पास खड़ा है और वह गिर जाता है, तो ऐसी घटना अप्रिय घटना की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगी-बॉम्बे हाईकोर्ट
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जस्टिस जितेंद्र जैन की एकल पीठ ने दुर्घटना को लेकर रेलवे प्राधिकरण की दलील को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। रेलवे ने कहा था कि दुर्घटना लापरवाह व्यवहार के कारण हुई, क्योंकि व्यक्ति ट्रेन के दरवाजे के पास फुटबोर्ड पर खड़ा था। केंद्र सरकार ने रेलवे दावा न्यायाधिकरण के 2009 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया गया था।
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यह है मामला
28 अक्तूूबर 2005 को हादसे का शिकार व्यक्ति भायंदर से मरीन लाइंस की ओर लोकल ट्रेन में सफर कर रहा था। रास्ते में वह ट्रेन से गिर गया और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई।
टिकट न होने की दलील भी खारिज
रेलवे ने तर्क दिया कि दुर्घटना के समय मृतक के पास कोई टिकट या पास नहीं मिला। अदालत ने कहा, मृतक की पत्नी ने न्यायाधिकरण के समक्ष उसका ट्रेन पास पेश किया था, जिससे यह साबित होता है कि वह वास्तविक यात्री था। अदालत ने कहा, दुर्घटना के दिन पास घर पर भूल जाने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इससे आश्रितों को मुआवजा राशि से वंचित नहीं किया जा सकता।
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कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं
ट्रेन में व्यस्त समय में भीड़ होती है। यात्री के लिए डिब्बे में प्रवेश भी मुश्किल होता है। कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति भारी भीड़ के कारण दरवाजे के पास खड़ा है और वह गिर जाता है, तो ऐसी घटना अप्रिय घटना की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगी-बॉम्बे हाईकोर्ट