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Bombay High Court: मराठा आरक्षण पर दाखिल सभी याचिकाएं निराधार, हाईकोर्ट ने कहा- असली पीड़ित ओबीसी समुदाय
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Thu, 18 Sep 2025 01:32 PM IST
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सार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण पर दाखिल जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य नहीं माना और कहा कि याचिकाकर्ता असली पीड़ित पक्ष नहीं हैं। अदालत ने बताया कि ओबीसी वर्ग के लोग पहले ही इस फैसले को चुनौती दे चुके हैं और उनकी याचिकाओं पर 22 सितंबर को सुनवाई होगी।

बॉम्बे हाईकोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को साफ किया कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाणपत्र जारी करने के फैसले के खिलाफ दाखिल जनहित याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता असली पीड़ित पक्ष नहीं हैं, बल्कि ओबीसी वर्ग असली पीड़ से आने वाले लोगों ने इस फैसले को चुनौती दी है, जिनकी याचिकाओं पर 22 सितंबर को सुनवाई होगी।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकलाड की पीठ ने कहा कि इस चरण पर दाखिल हुई ये पीआईएल्स पूरी तरह गलत और निराधार हैं। अदालत ने कहा कि कानून में दुर्भावना का मामला केवल असली पीड़ित पक्ष ही उठा सकता है।
ओबीसी वर्ग ने किया विरोध
ओबीसी समुदाय के लोगों ने चार याचिकाएं दाखिल कर सरकार के फैसले को चुनौती दी है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देना असंवैधानिक, मनमाना और कानून के खिलाफ है। इन याचिकाओं पर सुनवाई 22 सितंबर को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की पीठ करेगी।
ये भी पढ़ें- हाईकोर्ट पहुंचे मालेगांव विस्फोट के पीड़ित परिजन, बरी सातों लोगों और एनआईए को नोटिस जारी
जरांगे के आंदोलन का दबाव
सरकार का यह फैसला मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे की भूख हड़ताल के बाद आया। जरांगे ने 29 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान में पांच दिन तक अनिश्चितकालीन उपवास किया था। उनके समर्थकों ने दक्षिण मुंबई के कई अहम इलाकों को घेर लिया, जिस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि पूरा शहर ठप हो गया है।
सरकार का जीआर और समिति का गठन
सरकार ने दो सितंबर को एक प्रस्ताव जारी कर हैदराबाद गजेटियर के आधार पर मराठा समुदाय के पात्र लोगों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की घोषणा की। साथ ही एक समिति भी बनाई गई जो यह प्रक्रिया पूरी करेगी। यह फैसला उन लोगों के लिए है जो पुराने दस्तावेजो में खुद को कुनबी सिद्ध कर पाते हैं।
ये भी पढ़ें- नाबालिग से छेड़छाड़ का आरोपी रिहा, पीड़िता की उम्र साबित नहीं कर सका अभियोजन पक्ष
ओबीसी वर्ग में नाराजगी
सरकार के इस फैसले के बाद ओबीसी समुदाय में बेचैनी बढ़ गई है। सामाजिक न्याय और विशेष सहायता विभाग द्वारा जारी इस आदेश के बाद आशंका जताई जा रही है कि मराठा समुदाय के कई लोग ओबीसी कोटे में आ जाएंगे, जिससे मौजूदा ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकलाड की पीठ ने कहा कि इस चरण पर दाखिल हुई ये पीआईएल्स पूरी तरह गलत और निराधार हैं। अदालत ने कहा कि कानून में दुर्भावना का मामला केवल असली पीड़ित पक्ष ही उठा सकता है।
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ओबीसी वर्ग ने किया विरोध
ओबीसी समुदाय के लोगों ने चार याचिकाएं दाखिल कर सरकार के फैसले को चुनौती दी है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देना असंवैधानिक, मनमाना और कानून के खिलाफ है। इन याचिकाओं पर सुनवाई 22 सितंबर को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की पीठ करेगी।
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जरांगे के आंदोलन का दबाव
सरकार का यह फैसला मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे की भूख हड़ताल के बाद आया। जरांगे ने 29 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान में पांच दिन तक अनिश्चितकालीन उपवास किया था। उनके समर्थकों ने दक्षिण मुंबई के कई अहम इलाकों को घेर लिया, जिस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि पूरा शहर ठप हो गया है।
सरकार का जीआर और समिति का गठन
सरकार ने दो सितंबर को एक प्रस्ताव जारी कर हैदराबाद गजेटियर के आधार पर मराठा समुदाय के पात्र लोगों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने की घोषणा की। साथ ही एक समिति भी बनाई गई जो यह प्रक्रिया पूरी करेगी। यह फैसला उन लोगों के लिए है जो पुराने दस्तावेजो में खुद को कुनबी सिद्ध कर पाते हैं।
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ओबीसी वर्ग में नाराजगी
सरकार के इस फैसले के बाद ओबीसी समुदाय में बेचैनी बढ़ गई है। सामाजिक न्याय और विशेष सहायता विभाग द्वारा जारी इस आदेश के बाद आशंका जताई जा रही है कि मराठा समुदाय के कई लोग ओबीसी कोटे में आ जाएंगे, जिससे मौजूदा ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा।
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