जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण डाल रहा है भारत के बचपन पर बेहद बुरा असर : रिपोर्ट
- लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को कम करने पर करना होगा काम
- देश में अभी भी पांच साल से कम उम्र में होने वाली तो तिहाई मौतों की वजह कुपोषण है
- जलवायु परिवर्तन के चलते 1980 के दशक से हर साल तीन फीसद की दर से बढ़ रहा कालरा
विस्तार
जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और बढ़ते तापमान का सबसे अधिक असर भारत में बच्चों पर पड़ रहा है। खासतौर पर नवजात कुपोषण और सांस से होने वाली बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। द लैंसेट पत्रिका की रिपोर्ट ने यह खुलासा किया है।
लैंसेट ने स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर 41 बिंदुओं पर इस रिपोर्ट में अध्ययन किया है। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक सहित 35 संस्थानों के 120 विशेषज्ञों ने सहयोग किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तमाम कवायदों के बाद भी देश में अभी भी पांच साल से कम उम्र में होने वाली तो तिहाई मौतों की वजह कुपोषण ही है।
रिपोर्ट के मुताबिक कुछ देशों पर जलवायु परिवर्तन के सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहे हैं। उसमें भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में एक है। रिपोर्ट में सभी आयु वर्ग के लोगों के जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका सबसे अधिक असर बचपन पर देखा गया। इसलिए वह कोशिश कर रहे हैं कि देश के भविष्य को बचाए बच्चों पर ध्यान केंद्रित करें। क्योंकि अगर इस मुद्दे पर तत्काल प्रभाव से प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो बच्चों पर इसका विपरीत और घातक परिणाम पड़ना तय है।
अगर इस समस्या के समाधान के लिए समय रहते नहीं चेते तो, जो बच्चे अभी पैदा हो रहे हैं, वह तीस से चालीस साल के होते-होते ऐसी दुनिया में रह रहे होंगे जहां संक्रमण, सांस रोगों और अन्य तरह की बीमारियों का बोलबाला होगा।
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप 1980 के दशक से हर साल तीन फीसदी की दर से कालरा में बढ़ोत्तरी हो रही है। बढ़ते तापमान के चलते रोजमर्रा के जीवन में तनाव और गर्मी बढ़ेगी। वेक्टर जनित बीमारियों और डेंगू के चलते मृत्यु दर बढ़ेगी।
दुनिया के 35 ग्लोबल संगठनों के शोध के मुताबिक जलवायु परिवर्तन कई तरीकों से हमारे जीवन पर असर डाल रहा है। इसके असर से समुद्र की सतह का तापमान बढ़ेगा। मौसम में लगातार उतार-चढ़ाव आएगा। समुद्र का पानी अधिक खारा होता जाएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। इसके 14 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित 20 शहरों की सूची में अव्वल हैं। यहां पीएम 2.5 के उच्च स्तर के कारण 2016 में 529,500 से अधिक मौतें हुईं।
इस रिपोर्ट के विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम के मिजाज के चलते 1960 के बाद से देश में मक्का और चावल के उत्पादन में औसत दो फीसदी की गिरावट दर्ज कराई गई है। वहीं गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलों के उत्पादन में भी एक फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।