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Congress: 2004 में विपक्ष को एकजुट कर UPA को सत्ता में लाने वालीं सोनिया गांधी का क्या 2024 में चलेगा जादू?

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Tue, 11 Apr 2023 06:49 PM IST
सार
Congress: भारत की न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कमजोर करने का व्यवस्थित प्रयास, आज संकट तक पहुंच चुका है। भाजपा के केंद्रीय मंत्री, सेवानिवृत जजों को 'एंटी नेशनल' बता रहे हैं। इतना ही नहीं, वे लोग उन्हें यह चेतावनी भी दे रहे हैं कि उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी...
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Congress: Will Sonia Gandhi able to unite opposition in 2024 like 2004
सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार
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भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के लिए कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कदम बढ़ाया है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि जिस तरह से 2004 में सोनिया गांधी ने बिखरे विपक्ष को एकजुट कर 'यूपीए' को सत्ता दिलाई थी, कुछ वैसा ही चमत्कार 2024 में भी हो सकता है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की बात करें, तो इस बार 'कॉमन मिनिमम प्रोग्राम' के तौर पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को रोकना ही है। विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने विपक्षी दलों के खिलाफ जांच एजेंसियों का भरपूर इस्तेमाल कर उन्हें प्रताड़ित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। सोनिया गांधी ने अपने लेख में कहा है कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार लोकतंत्र के सभी तीन स्तंभों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को व्यवस्थित रूप से ध्वस्त कर रही है। देश में 95 फीसदी राजनीतिक मामले सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ दायर किए गए हैं। कांग्रेस पार्टी समान विचारों वाले दलों के साथ हाथ मिलाकर भारत के संविधान की रक्षा करने की हर संभव कोशिश करेगी।

रिटायर्ड जजों को कीमत चुकाने की बात कही जा रही है

मंगलवार को छपे लेख में सोनिया गांधी ने कहा है कि भारत के लोगों ने यह बात सीख ली है कि जब आज की स्थिति को समझने की बात आती है, तो प्रधानमंत्री मोदी की हरकतें उनके शब्दों से कहीं अधिक जोर से बोलती हैं। भारत की न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कमजोर करने का व्यवस्थित प्रयास, आज संकट तक पहुंच चुका है। भाजपा के केंद्रीय मंत्री, सेवानिवृत जजों को 'एंटी नेशनल' बता रहे हैं। इतना ही नहीं, वे लोग उन्हें यह चेतावनी भी दे रहे हैं कि उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह भाषा लोगों को जानबूझकर गुमराह करने, उनके जुनून को भड़काने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। इसका मकसद, जजों को धमकाना ही है।

भाजपा नेताओं के मुकदमे 'चमत्कारी रूप से' गायब

संसद के बजट सत्र को लेकर सोनिया ने लिखा, भाजपा सरकार ने विपक्ष को जनता की आवाज उठाने से रोक दिया। भाजपा ने मीडिया को डरा-धमका कर उसकी स्वतंत्रता छीन ली है। केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर सोनिया गांधी ने लिखा है, भाजपा में जाने वालों के खिलाफ मुकदमे 'चमत्कारी रूप से' गायब हो जाते हैं। अदाणी के मसले पर भी सोनिया गांधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में महंगाई और बेरोजगारी पर बात नहीं की गई। भाजपा और आरएसएस नेताओं के नफरती बयानों पर प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहते हैं। कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने लेख में चीन के साथ जारी सीमा विवाद का भी जिक्र किया है।

अब तो पॉलिटिक्स में नए प्लेयर आ गए हैं

कांग्रेस पार्टी की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, सोनिया गांधी ने पहले भी विपक्ष को एक साथ लेकर चलने की कोशिश की है। उनका प्रयास है कि समान विचारधारा वाले सभी दल एक साथ आ जाएं। साल 2004 में विपक्ष बिखरा हुआ था। सोनिया ने ही तब विपक्ष को एकत्रित किया था। उसके बाद लगातार दस साल केंद्र में यूपीए की सरकार रही। साल 2014 में राजनीतिक स्थिति बदल गई। पॉलिटिक्स में नए खिलाड़ी आ गए हैं। मौजूदा हालात में सोनिया गांधी की 2004 वाली राजनीतिक हैसियत भी नहीं है। वे प्रयासों में लगी हैं, लेकिन राह बहुत मुश्किल है। कई बार ऐसा होता है कि बहुत से लोगों की किसी एक ही जगह पर आस्था होती है, मगर उनकी पूजा पद्धति अलग-अलग रहती है। ये बात सही है कि आज राजनीति में, खासतौर पर विपक्षी खेमे में ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग को लेकर ही ज्यादा चिंता जताई जा रही है। इस बाबत विपक्ष का लगभग एक जैसा नजरिया है।

विपक्ष में बिखराव की आहट सुनाई पड़ रही

बतौर किदवई, राजनीति के मौजूदा परिद्रश्य में विपक्ष के पास एक ठोस रणनीति का अभाव है। मजबूत प्रचार की कमी नजर आती है। विपक्षी खेमे में भी तेजी से घटनाक्रम बदल रहे हैं। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली तो उस वक्त कुछ अलग घटनाक्रम थे। इसके बाद जब राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म हुई, तो वे विपक्षी दल भी साथ आ गए, जो अभी तक दूरी बनाकर चल रहे थे। संसद सत्र में भी विपक्षी एकता देखने को मिली। अब अचानक शरद पवार का बदला हुआ रूप सामने आया है। अदाणी मामले और पीएम की डिग्री पर विपक्ष में बिखराव की आहट सुनाई पड़ी। ऐसे में 2024 तक विपक्ष को एक मंच पर लेकर चलना आसान काम नहीं है। ये एक बड़ी चुनौती है। अब तो सोनिया गांधी, यूपीए की चेयरपर्सन भी नहीं हैं। वे कांग्रेस अध्यक्ष भी नहीं हैं। सोनिया गांधी और राहुल का व्यक्तित्व अलग है।

यह भी पढ़ें: Rajasthan Politics: सचिन पायलट का अनशन और मौनव्रत, बिना बोले दिए पांच बड़े संदेश; चिंता में कांग्रेस आलाकमान

मुकाबले में 'वाजपेयी' टीम नहीं है

इतना ही नहीं, सामने जिस पार्टी से मुकाबला है, वहां भी 'वाजपेयी' टीम नहीं है। विपक्ष को कैसे तोड़ा जाता है, मौजूदा टीम यह बात अच्छे से जानती है। अदाणी मामले को लेकर ही विपक्ष में दरार डाल दी जाती है। जब लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे की बात आएगी, तब विपक्ष की एकता और सोनिया गांधी के जादू की असली परीक्षा होगी। वर्तमान राजनीतिक परिद्रश्य में नई पार्टियां निर्णायक स्थिति में सामने आ रही हैं। आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला है। भले ही इस पार्टी का लोकसभा में कोई भी सांसद नहीं है, लेकिन पार्टी ने कई राज्यों में तेजी से अपना विस्तार किया है। कई बार इसका व्याहारिक असर नहीं दिखता। वैसे तो केजरीवाल पहले ही कह चुके हैं कि आप, कांग्रेस का विकल्प है। जब भी विपक्षी एकता की बात आएगी तो उस वक्त केजरीवाल को साइड लाइन नहीं कर सकते।

भाजपा के पास नैरेटिव सैट करने की कला

लोकसभा में कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी टीएमसी है। इसके 23 सदस्य हैं, लेकिन उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन गया है। एनसीपी के भी सांसद हैं, मगर वह भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं रही। ऐसे ही कई दूसरे दल भी हैं। यहां पर एक बात भाजपा को लेकर यह है कि वह नेरेटिव सैट करने की मास्टर है। भाजपा के पास भ्रम फैलाने की एक कला है। पार्टी नेताओं को अपने फायदे के अनुसार किसी भी फैसले को भुनाना आता है। जब बोफोर्स कांड में दिल्ली हाई कोर्ट ने राजीव गांधी को दोषमुक्त बताया था, तो उस वक्त कहा गया कि कोर्ट से इसका कोई लेना देना नहीं है। ये तो राजनीतिक मामला है। नैरेटिव सैट करने की इस कला के चलते, जब सुप्रीम अदालत ने राफेल मामले में कहा था कि हमें राजनीति में न लाएं। तब मर्यादा की बात सामने लाकर रख दी गई। इसी तरह से वंशवाद है, उस पर कानूनी तरीके से रोक नहीं है, लेकिन मर्यादा की नजर से घेराबंदी संभव है। पिछले दिनों 14 पार्टियां, ईडी को लेकर कोर्ट में गई थी। जब वहां से राहत नहीं मिली तो भाजपा ने उसे खूब भुनाया। ऐसे में सोनिया गांधी को बहुत सावधानी से कदम बढ़ाना होगा। साथ ही कांग्रेसी कुनबे में जो खटपट चलती रहती है, उसे भी खत्म करना पड़ेगा।

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