डिटेंशन सेंटर क्या है, यहां किसे रखा जाता है, ऐसे ही हर सवाल का जवाब जानिए
- पीएम मोदी द्वारा जिक्र किए जाने के बाद देशभर में चर्चा का विषय बना था डिटेंशन सेंटर
- डिटेंशन सेंटर को लेकर लोगों के मन में कई सवाल, अभी भी फैलाई जा रहीं गलतफहमियां
विस्तार
करीब चार महीने पहले तक देश में नागरिकता कानून 2019 (Citizenship Act 2019 - CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC - National Register for Citizens) को लेकर काफी राजनीतिक गहमागहमी रही। संसद में नागरिकता विधेयक पारित होने के कई दिनों बाद भी इसे लेकर विरोध प्रदर्शन और सियासत चलती रही। एनआरसी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR - National Population Register) पर भी अलग-अलग दल सवाल उठाते रहे। इन सबके बीच सियासी गलियारों में 'डिटेंशन सेंटर' (Detention Centre) के मुद्दे ने भी खासी हलचल मचाई।
खासकर जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई अपनी रैली में डिटेंशन सेंटर का जिक्र किया, तब से देशभर में इसकी चर्चा जोरों पर थी। इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल भी उठे।
सबसे बड़ा सवाल कि आखिर डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) है क्या और इसमें किसे रखा जाता है? क्या भारत में भी डिटेंशन सेंटर है? दुनिया में पहली बार डिटेंशन सेंटर की अवधारणा कब और कहां आई? ये क्यों जरूरी है? ऐसे सभी सवालों के जवाब आपको आगे मिल जाएंगे।
क्या होते हैं डिटेंशन सेंटर?
डिटेंशन सेंटर उस जगह को कहते हैं जहां गैर-कानूनी तरीके (बिना जरूरी वैध दस्तावेजों के) से देश में घुसने वाले विदेशी लोगों को रखा जाता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं - भारत में रह रहे ऐसे लोग जो यहां के नागरिक नहीं हैं, लेकिन बिना वैध दस्तावेजों (जो दूसरे देश से आकर भारत में रहने के लिए जरूरी हैं) के यहां रह रहे हैं, उनकी पहचान हो जाने पर उन्हें भारत में ही बने डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा।
तब तक जब तक ये पता न चल जाए कि वे असल में किस देश के हैं। इसका पता चलने पर उन्हें डिटेंशन सेंटर से वापस उनके देश भेज दिया जाता है। दुनिया के कई बड़े देशों में इस तरह के डिटेंशन सेंटर हैं।
विदेशी कानून 1946 के सेक्शन 3 (2) (सी) के अनुसार, भारत सरकार के पास देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजने का अधिकार है। इस कानून के सेक्शन 3 (2) (ई) में प्रावधान किया गया है कि कोई राज्य चाहे, तो वह भी डिटेंशन सेंटर बना सकता है।
दुनिया में पहली बार कब और कहां बना था डिटेंशन सेंटर
- यूरोपीय इतिहासकारों के अनुसार, दुनिया का पहला डिटेंशन सेंटर आज से करीब 600 साल पहले, सन् 1417 में बनाया गया था।
- इसे फ्रांस के राजा चार्ल्स पंचम ने बनवाया था। मकसद था इसमें दूसरे देशों से आए अप्रवासियों और युद्धबंदियों को रखना। आज इस सेंटर को बेसिले सेंट एंटोनी के नाम से भी जाना जाता है।
- साल 1789 में फ्रांस की क्रांति के समय इस डिटेंशन सेंटर पर बड़ा हमला भी हुआ था। जिसके बाद यह फ्रांसीसी आंदोलन का बड़ा प्रतीक बन गया था। बाद में इसे ध्वस्त कर दिया गया। आज उसकी जगह पर पैलेस डे ला बेसिले की इमारत खड़ी है।
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किन देशों में हैं डिटेंशन सेंटर, कहां सबसे ज्यादा
- अमेरिका: दुनिया में सबसे ज्यादा डिटेंशन सेंटर्स अमेरिका में बनाए गए हैं। यहां का पहला डिटेंशन सेंटर साल 1892 में न्यू जर्सी में बनाया गया था, जिसे एलिस आइलैंड के नाम से जानते हैं।
- हाल में साल 2014 में अमेरिका में फैमिली डिटेंशन सेंटर बनाया गया। इसे ओबामा प्रशासन ने बनवाया था। रिपोर्ट्स के अनुसार, ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका से 30 लाख से ज्यादा अप्रवासियों को बाहर निकाला गया था।
- यूरोप: यहां का पहला डिटेंशन सेंटर साल 1970 में बनाया गया था।
- द. अफ्रीका: यहां पहला इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर साल 1982 में बनाया गया था।
- इस्राइल: यहां साल 2012 में डिटेंशन सेंटर बनाया गया था, जिसकी क्षमता करीब 10 हजार लोगों की है। ये दुनिया का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर है जिसका नाम है - सहारोनिम (Saharonim)। इनके अलावा भी कई देशों में डिटेंशन सेंटर्स हैं।
क्या भारत में भी है डिटेंशन सेंटर?
- बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर का निर्माण किया जा रहा है। ये निर्माण कार्य दिसंबर 2018 से असम के ग्वालपाड़ा जिले के मटिया में जारी है।
- करीब 2.5 हेक्टेयर जमीन पर इस सेंटर का निर्माण किया जा रहा है। इसमें 3 हजार लोगों के रहने का इंतजार होगा। महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए अलग-अलग सेल बनाए जा रहे हैं। करीब 70 फीसदी काम पूरा भी हो चुका है।
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क्या भारत में पहले से ही हैं डिटेंशन सेंटर
- रिपोर्ट के अनुसार, देश में पहला डिटेंशन सेंटर साल 2005 में असम में बनाया गया जब वहां कांग्रेस के तरुण गोगोई की सरकार थी। हालांकि शुरुआत में ये डिटेंशन सेंटर जेलों के अंदर ही बनाए गए। असम में फिलहाल छह डिटेंशन सेंटर्स हैं। ये ग्वालपाड़ा, तेजपुर, जोरहट, डिब्रूगढ़, सिलचर और कोकराझार जिले में हैं।
- इसके बाद 2009, 2012, 2014 और 2018 में भी समय-समय पर राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को डिटेंशन सेंटर्स बनाए जाने के निर्देश दिए जाते रहे।
- कर्नाटक में पहला डिटेंशन सेंटर बंगलुरू से करीब 40 किमी दूरी पर स्थित सोन्डेकोप्पा गांव में खोला गया था। यहां सामाजिक कल्याण विभाग के एक छात्रावास को डिटेंशन सेंटर में बदल दिया गया, जहां छह कमरों में एक साथ 24 लोग रह सकते हैं।
- बंगाल की सरकार ने भी न्यू टाउन और बॉनगांव में दो डिटेंशन सेंटर्स खोले जाने की मंजूरी दे दी है।
- यहां तक की गोवा और दिल्ली में भी एक-एक डिटेंशन सेंटर्स हैं।
- कांग्रेस सांसद शशि थरूर के एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री जीके रेड्डी ने बताया था की फिलहाल असम की छह केंद्रीय कारागारों में बने डिटेंशन सेंटर्स में 1133 घोषित विदेशी लोगों को रखा गया है (आंकड़े 25 जून 2019 तक के हैं)।
क्या डिटेंशन सेंटर जेल की तरह होते हैं?
- नियमों के अनुसार ऐसा नहीं होना चाहिए। दोनों में अंतर बनाए रखना जरूरी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अपराध करने वालों के साथ होने वाले बर्ताव और डिटेंशन सेंटर्स में किसी देश में कानूनी तौर पर रहने या न रहने के फैसले का इंतजार कर रहे लोगों के साथ होने वाले बर्ताव में अंतर जरूरी है।
- गत जनवरी में राज्यों को केंद्र द्वारा डिटेंशन सेंटर्स के संबंध में एक मैनुअल भेजा गया था। इसके अनुसार, डिटेंशन सेंटर्स में कौशल केंद्र, बच्चों के लिए पालना घर, वहां रह रहे अप्रवासियों का संबंधित दूतावास व उनके परिवारों से संपर्क कराने जैसी अन्य आधुनिक सुविधाओं का होना जरूरी है।