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विंग कमांडर अभिनंदन के साथ दोबारा नहीं होगी वैसी चूक, डीआरडीओ ने तैयार की ये खास तकनीक

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला Published by: Harendra Chaudhary Updated Thu, 26 Sep 2019 06:27 PM IST
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DRDO developed the anti jammer radio signal technique to strengthen indian air force
विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान - फोटो : File
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बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान का पीछा करने के दौरान विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का संपर्क ग्राउंड पर मौजूद कंट्रोल रूम से नहीं हो पाया था। पायलट कैबिन में लगे रेडियो और कंट्रोल रूम के रेडियो के बीच संदेशों का आदान-प्रदान नहीं हो सका। उस दौरान कंट्रोल रूम से अभिनंदन को जो संदेश भेजा गया, वह रेडियो जाम होने के कारण डिलीवर नहीं हो पाया।
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इस संदेश में कंट्रोल रूम की ओर से अभिनंदन को वापस लौटने का मैसेज दिया गया था। लेकिन पाकिस्तान के रेडियो सिग्नल को जाम या उन्हें कमजोर करने के चलते अभिनंदन को संदेश पहुंच नहीं पाया और वे पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर तक गए थे।

डीआरडीओ ने बनाई खास तकनीक

अब दोबारा ऐसी चूक न हो, इसके लिए डीआरडीओ ने एक खास तकनीक विकसित की है। हालांकि इसके लिए जरुरी उपकरण विदेश से लिए जाएंगे। ये उपकरण मिलने के बाद पायलट और कंट्रोल रुम का संपर्क लगातार बना रहेगा। कोई भी शत्रु राष्ट्र कंट्रोल रुम की तरफ से द्वारा भेजे गए संदेशों को खत्म नहीं कर सकेगा और न ही रेडियो पर कोई जैमर काम करेगा।

रक्षा मंत्रालय की मिली मंजूरी

केंद्र सरकार ने बालाकोट एयरस्ट्राइक की घटना से सबक लेते हुए अब यह कदम उठाया है। इस बाबत डीआरडीओ को रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मिल चुकी है। डीआरडीओ की इस खास तकनीक पर जैमर आदि का कोई प्रभाव नहीं होता। लड़ाकू विमान में बैठे पायलट और ग्राउंड पर बने कंट्रोल रूम के बीच संदेशों का आदान प्रदान-बिना किसी बाधा के होता रहता है। नई तकनीक वाले उपकरण मिलने के बाद शत्रु राष्ट्र न तो संदेशों को रोक सकेगा और न ही उन्हें पकड़ पाएगा।

पााकिस्तान ने सुन लिए थे संदेश

बालाकोट एयरस्ट्राइक में पाकिस्तानी वायुसेना ने पायलट अभिनंदन के कई संदेशों को सुन लिया था। ग्राउंड पर बने कंट्रोल सेंटर से जो भी संदेश भेजे गए, वे सभी पाकिस्तानी वायुसेना के पास पहुंच गए। अभिनंदन तक ऐसा कोई भी संदेश नहीं पहुंचा। वहीं वायुसेना के पास अगर सुरक्षित रेडियो संदेश होता तो अभिनंदन को पाक सीमा में जाने से रोका जा सकता था। डीआरडीओ की तकनीक को जमीन पर उतारने के लिए जो उपकरण चाहिए, वे मौजूदा स्थिति में विदेश से ही आएंगे।

इसके लिए डीआरडीओ और रक्षा मंत्रालय की टीम मिलकर काम कर रही है। यह टीम कई देशों में जाकर उन उपकरणों की जांच पड़ताल कर आई है और वे काफी हद तक डीआरडीओ की विकसित तकनीक में फिट बैठ रहे हैं। वायु सेना अपने सभी ग्राउंड सेंटर्स पर ये जैमररोधी उपकरण लगाएगी।

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