Sandeep Patil: कभी भूखे पेट सोने की मजबूरी... नहीं मानी हार, पैसों के अभाव के बावजूद खड़ा किया सफल स्टार्टअप
ई-स्पिन नैनोटेक प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक डॉ. संदीप पाटिल का मुसीबतों ने हर कदम पर रास्ता रोका। लेकिन अपनी मेहनत से वह न केवल गांव के पहले ग्रेजुएट बने, बल्कि कैंसर के इलाज से जुड़ी करोड़ों रुपये की एक सफल कंपनी भी खड़ी की...


विस्तार
एक प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक जॉन ए. शेड ने एक बार कहा था कि 'बंदरगाह में कोई जहाज सुरक्षित रहता है, लेकिन जहाज इसके लिए नहीं बनाए जाते हैं'। उनका काम लहरों से जूझना होता है। यह प्रसिद्ध उद्धरण भारतीय उद्योग जगत का सार दर्शाता है, जहां प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने कंफर्ट जोन में रहते हुए किसी और के सपने को जीवंत करने के लिए मेहनत करते हैं, कुछ अलग करने की नहीं सोचते। भारत और भारतीय अपने तकनीक प्रेम के लिए जाने जाते हैं, लेकिन डॉक्टरेट की डिग्री वाले अधिकांश भारतीय वैज्ञानिक बनने या शोध करने का मार्ग अख्तियार कर विदेश का रुख कर लेते हैं। केवल मुट्ठी भर पीएचडी धारक ही स्टार्टअप जगत में कदम रखने की जहमत उठाते हैं। भारत में नैनोफाइबर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी ई-स्पिन नैनोटेक प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और निदेशक डॉ. संदीप पाटिल एक ऐसे ही आंत्रप्रेन्योर हैं, जिन्हें भारत की पहली सुपर इलेक्ट्रोस्पिनिंग मशीन डिजाइन करके नैनोटेक उद्योग में परिवर्तन की लहर चलाने के लिए जाना जाता है।
कभी भूखे पेट सोए
पाटिल का बचपन सामान्य बच्चों की तरह न होकर बेहद चुनौतियों भरा था। उनके माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, इस कारण उन्हें अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए ठेके पर मजदूरी करनी पड़ती थी। बचपन में संदीप ने ऐसे दिन भी देखें, है जब दो वक्त तक की रोटी भी नसीब नहीं होती थी। गरीबी का आलम यह था कि कई दफा तो पूरे परिवार को भूखे पेट सोना पड़ता था।
कॉलेज के दिनों से ही उद्यमी बनने की चाहत में उन्होंने अपने इस आविष्कार को स्टार्टअप का रूप देने का मन बनाया। उनकी नवोन्मेषी भावना और अडिग फोकस से प्रभावित होकर, आईआईटी, कानपुर में सिडबी इनक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर ने ई-स्पिन में निवेश किया। उस समय, स्टार्टअप इंडिया पहल की शुरुआत नहीं हुई थी और सरकार और निजी क्षेत्र से मिलने वाले फंड सीमित थे। उन्होंने अपने पास मौजूद हर पैसा स्टार्टअप में लगाया, जिसमें छात्रवृत्ति से मिली राशि भी शामिल थी। उन्होंने अपने दोस्तों और पीएचडी गुरु से कुछ पैसे उधार लिए। इस प्रकार, उन्होंने 2010 में भारत की पहली इलेक्ट्रो-स्पिनिंग मशीन निर्माण कंपनी की स्थापना की।
गांव के पहले ग्रेजुएट
चूंकि संदीप सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और घर की माली हालात अच्छी नहीं थी। बड़े बेटे होने के नाते, संदीप सुबह स्कूल में, शाम स्टेशनरी की शॉप में और रातें अक्सर किताबों के बीच बिताते थे। स्टेशनरी की शॉप में वह इसलिए बैठते थे, ताकि घरवालों की मदद कर सकें। संदीप अपने गांव के पहले ग्रेजुएट भी हैं। उन्होंने नॉर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग में बीटेक, एमएस यूनिवर्सिटी, बड़ौदा से एमटेक और आईआईटी, कानपुर से पीएचडी की
डिग्री हासिल की है।
झोपड़ी में बीता बचपन
संदीप का जन्म महाराष्ट्र के पिंपरी गांव में हुआ था। यहां पचहत्तर फीसदी आबादी आदिवासी हैै। उनका पालन-पोषण उनसे छोटे दो भाई-बहनों के साथ झोपड़ी में हुआ। महज छह वर्ष की आयु में संदीप को चाचा के घर भेज दिया गया, ताकि वह अच्छी शिक्षा पा सके। पढ़ाई करने के लिए उन्हें रोज 35 किलोमीटर से अधिक की यात्रा करनी पड़ती थी।
बनाई खुद की मशीन
वह तकनीकी उद्यमी बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने आईआईटी, कानपुर में पीएचडी में एडमिशन लिया। यहां शोध के लिए उन्हें नैनोफाइबर स्पिनिंग के लिए सुपर इलेक्ट्रोस्पिनिंग मशीन की जरूरत थी। लेकिन विदेशी सप्लायर ने इस मशीन की बहुत अधिक कीमत बताई, जिसके बाद उन्होंने खुद ही एक इलेक्ट्रो-स्पिनिंग मशीन बना डाली।
वह पहला ऑर्डर
जिस संस्थान से उन्होंने अपनी कंपनी की नींव रखी, वहीं से उन्हें कंपनी के लिए अपना पहला ऑर्डर भी मिल गया। लेकिन पीएचडी के साथ-साथ व्यवसाय का प्रबंधन करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी व अपने परिवार की स्थिति को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की।
युवाओं को सीख
- आप जितना अधिक संघर्ष करेंगे, तरक्की भी उतनी ही बड़ी मिलेगी।
- सफलता पाने के लिए पूरी शिद्दत से मेहनत करें, सफलता आपको एक न एक दिन जरूर मिलेगी।
- किसी भी चीज को पाने के लिए की गई मेहनत कभी बेकार नहीं होती है।
- वर्तमान स्थिति से घबराये नहीं, बल्कि इसे सफल बनाने का प्रयास करें।
- रचनात्नकता को तरजीह दी जाती है, इसलिए हमेशा कुछ नया करें।