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ED: अवैध कमाई के लिए सियासतदानों/नौकरशाहों के गिरोह ने बेची शराब, चार साल में 2883 करोड़ रुपये की काली कमाई

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला Published by: संध्या Updated Tue, 30 Dec 2025 05:02 PM IST
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सार

छत्तीसगढ़ के इस केस में नौ व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें अनिल तुतेजा (पूर्व आईएएस); अरविंद सिंह; त्रिलोक सिंह ढिल्लों; अनवर ढेबर; अरुण पति त्रिपाठी (आईटीएस); कवासी लखमा (विधायक और छत्तीसगढ़ के तत्कालीन आबकारी मंत्री); चैतन्य बघेल (पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र), सौम्या चौरसिया (मुख्यमंत्री कार्यालय में उप सचिव) और निरंजन दास (आईएएस) शामिल हैं। इनमें से कुछ को फिलहाल जमानत मिल चुकी है, जबकि अन्य न्यायिक हिरासत में हैं।

ED gang of politicians bureaucrats sold liquor to generate illegal income, black money worth Rs 2883 crore
पकड़ी गई अवैध शराब - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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छत्तीसगढ़ में हुए शराब घोटाले में सियासतदानों और नौकरशाहों का गिरोह शामिल था। अवैध कमीशन के चक्कर में इस गिरोह बेहिसाब शराब की बिक्री कराई। चार साल में 2883 करोड़ रुपये की काली कमाई की गई। ईडी ने शराब घोटाले का पर्दाफाश कर नौकरशाहों, राजनीतिक अधिकारियों और निजी गिरोह के सदस्यों को गिरफ्तार किया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), रायपुर द्वारा 26 दिसंबर को इस मामले में एक और पूरक अभियोग शिकायत दर्ज की गई है। इसमें छत्तीसगढ़ राज्य के आबकारी विभाग में 2019 से 2023 के बीच हुए एक बड़े भ्रष्टाचार का ब्यौरा दिया गया है।  

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इस घोटाले के परिणामस्वरूप लगभग 2883 करोड़ रुपये की अपराध की आय (पीओसी) अर्जित की गई है। जांच में एक सुसंगठित आपराधिक गिरोह का खुलासा हुआ है, जिसने अवैध कमीशन और बेहिसाब शराब की बिक्री सहित एक बहुस्तरीय तंत्र के माध्यम से व्यक्तिगत लाभ के लिए राज्य की शराब नीति का दुरुपयोग किया। गिरोह ने चार अलग-अलग चैनलों के माध्यम से अवैध आय अर्जित की। 

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  • अवैध कमीशन: सरकारी बिक्री पर शराब आपूर्तिकर्ताओं से रिश्वत वसूली जाती थी, जिसे राज्य द्वारा भुगतान की जाने वाली "लैंडिंग कीमत" को कृत्रिम रूप से बढ़ाकर सुगम बनाया जाता था, जिससे रिश्वत का वित्तपोषण प्रभावी रूप से राज्य के खजाने के माध्यम से होता था।

  • अघोषित बिक्री: एक समानांतर प्रणाली के तहत सरकारी दुकानों के माध्यम से नकली होलोग्राम और नकद में खरीदी गई बोतलों का उपयोग करके "बिना हिसाब-किताब वाली" देसी शराब बेची जाती थी, जिससे सभी उत्पाद शुल्क और करों से बचा जा सके।

  • कार्टेल कमीशन: राज्य में बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने और परिचालन लाइसेंस प्राप्त करने के लिए शराब बनाने वालों द्वारा वार्षिक रिश्वत दी जाती थी।

  • एफएल 10ए लाइसेंस: विदेशी शराब निर्माताओं से कमीशन वसूलने के लिए एक नई लाइसेंस श्रेणी शुरू की गई थी, जिसमें से 60% लाभ सिंडिकेट को जाता था।

ईडी द्वारा दायर अभियोजन शिकायत ने तत्कालीन राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक पदानुक्रम में अवैध वित्तीय लाभ के लिए एक गहरी साजिश का खुलासा किया है। नवीनतम अभियोग में 59 नए लोगों को आरोपी बनाया गया है, जिससे आरोपियों की कुल संख्या अब तक 81 हो गई है। 

नौकरशाह

अनिल तुतेजा (सेवानिवृत्त आईएएस), जो उस समय संयुक्त सचिव थे, और निरंजन दास (आईएएस), जो उस समय आबकारी आयुक्त थे, जैसे वरिष्ठ अधिकारी नीति में हेरफेर करने और गिरोह के निर्बाध संचालन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। सीएसएमसीएल के प्रबंध निदेशक अरुण पति त्रिपाठी (आईटीएस) को अवैध वसूली को अधिकतम करने और भाग-बी संचालन के समन्वय का कार्य सौंपा गया था। इसके अतिरिक्त, जनार्दन कौरव और इकबाल अहमद खान सहित 30 फील्ड-स्तरीय आबकारी अधिकारियों पर "प्रति मामले निश्चित कमीशन" के बदले बेहिसाब शराब की बिक्री में सुविधा प्रदान करने का आरोप लगाया गया था।

राजनीतिक व्यक्ति

तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा और चैतन्य बघेल (तत्कालीन मुख्यमंत्री के पुत्र) सहित उच्च पदस्थ राजनीतिक हस्तियों पर नीतिगत सहमति देने और अपने व्यापार/रियल एस्टेट परियोजनाओं में पीओसी प्राप्त करने/उपयोग करने में उनकी भूमिका के लिए आरोप लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय में तत्कालीन उप सचिव सौम्या चौरासिया को अवैध नकदी के प्रबंधन और अनुपालन करने वाले अधिकारियों की नियुक्तियों के प्रबंधन के लिए एक प्रमुख समन्वयक के रूप में पहचाना गया था।

निजी व्यक्ति एवं संस्थाएं

इस गिरोह का नेतृत्व अनवर ढेबर और उनके सहयोगी अरविंद सिंह कर रहे थे। छत्तीसगढ़ डिस्टिलरीज लिमिटेड, भाटिया वाइन मर्चेंट्स और वेलकम डिस्टिलरीज सहित निजी निर्माताओं ने जानबूझकर शराब के अवैध निर्माण में भाग लिया, जो कि पार्ट-बी के अंतर्गत आता था, और पार्ट-ए और पार्ट-बी कमीशन का भुगतान भी किया। सिद्धार्थ सिंघानिया (नकदी संग्रह) और विधु गुप्ता (नकली होलोग्राम की आपूर्ति) जैसे सहायक भी इस धोखाधड़ी में प्रमुख निजी भूमिका निभा रहे थे।

गिरफ्तारियां और प्रवर्तन कार्रवाई

2002 के पीएमएलए की धारा 19 के तहत कुल नौ प्रमुख व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें अनिल तुतेजा (पूर्व आईएएस); अरविंद सिंह; त्रिलोक सिंह ढिल्लों; अनवर ढेबर; अरुण पति त्रिपाठी (आईटीएस); कवासी लखमा (विधायक और छत्तीसगढ़ के तत्कालीन आबकारी मंत्री); चैतन्य बघेल (पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र) शामिल हैं। सौम्या चौरसिया (मुख्यमंत्री कार्यालय में उप सचिव) और निरंजन दास (आईएएस) का नाम भी आरोपियों में शामिल है। इनमें से कुछ को फिलहाल जमानत मिल चुकी है, जबकि अन्य न्यायिक हिरासत में हैं। 

संपत्ति की कुल कुर्की

ईडी ने कई अस्थायी कुर्की आदेश जारी कर कुल 382.32 करोड़ रुपये की चल और अचल संपत्तियां जब्त की हैं। इन कुर्क की गई संपत्तियों में नौकरशाहों, राजनेताओं और निजी संस्थाओं से जुड़ी 1,041 संपत्तियां शामिल हैं, जैसे रायपुर का होटल वेनिंगटन कोर्ट और ढेबर और बघेल परिवारों से संबंधित सैकड़ों संपत्तियां।

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