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AD Padmasingh Isaac: कभी स्कूल में कैंडियां और कॉलेज में फिनायल बेचते थे; मां के नुस्खे ने बनाया ‘मसाला किंग
न्यूज डेस्क, अमर उजाला
Published by: शुभम कुमार
Updated Mon, 03 Feb 2025 06:53 AM IST
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सार
आची ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक एडी पद्मसिंह इसाक ने महज दो रुपये से मसाले बेचना शुरू किया था। जीवन में चुनौतियां तो तमाम अाईं, लेकिन उन पर विजय पाते हुए 2,000 करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी कर ड़ाली...

आची ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक एडी पद्मसिंह इसाक
- फोटो : अमर उजाला

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विस्तार
खुली आंखों से सपने देखना अच्छी बात है, मगर सपने साकार तभी होते हैं, जब उसे कड़ी मेहनत, धैर्य और लगन के पसीने से सींचा जाए। बिना चुनौतियों का सामना किए कोई भी सफलता हासिल नहीं की जा सकती है। किसी ने क्या खूब कहा है ‘अगर खैरात में मिलती कामयाबी तो हर शख्स कामयाब होता, फिर कदर न होती किसी हुनर की और न कोई शख्स लाजवाब होता’। अपनी नियति को बदलने का हौसला हर इन्सान में नहीं होता, पर जिसमें होता है दुनिया उसे सलाम करती है।
यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है आची ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक एडी पद्मसिंह इसाक पर। शून्य से शिखर तक पहुंचने में उन्होंने न जाने कितनी चुनौतियों का सामना किया, तब जाकर दो रुपये के मसाले बेचने से 2,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की कंपनी खड़ी कर पाए। उनकी सफलता की कहानी हर युवा को मुश्किल परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारने का हौसला और गिरकर उठने की प्रेरणा देती है। इसाक को वर्ष 2016 में ‘बेस्ट इम्प्लॉयर फॉर एमपावरिंग पर्सन्स विद डिसेबिलिटी’ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
बचपन में पिता को खोया
इसाक का जन्म तमिलनाडु के नाजरेथ गांव के किसान परिवार में हुआ था। बारह साल की उम्र में ही पिता का निधन हो गया। पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी मां ने संभाली। हालांकि, जैसे-जैसे इसाक बड़े होते गए, मां की परेशानियां उन्हें समझ में आने लगीं। मां की मदद करने के लिए उन्होंने पढ़ाई के साथ नौकरी भी की।
फ्री ग्लास का आइडिया आया काम
जब कोई भी दुकानदार उनके मसालों को बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो उन्होंने खुद घूम-घूम कर सड़कों पर मसाले बेचना शुरू कर दिया। उनका पहला उत्पाद, कुजाम्बू मिलगाई थूल, जो एक प्रकार का करी मसाला पाउडर था, महज दो रुपये की किफायती कीमत पर उपलब्ध था, जिससे यह ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक मजदूरों के लिए सुलभ हो गया। वह अपने हर ग्राहक को प्रत्येक मसाले की खरीदारी पर फ्री में ग्लास दिया करते थे। उनका यह आइडिया काम कर गया।
एक-एक कदम ही सही कंपनी
सफलता की सीढ़ी
चढ़ती गई।
छोटी उम्र में बड़ी चुनौतियां
उन्होंने गोदरेज कंपनी में घूम-घूम कर हेयर कलर पाउडर बेचने की नौकरी कर ली। स्कूल में पढ़ने वाले पद्मसिंह ने दूसरे बच्चों की तरह अपनी गर्मी की छुट्टियां कभी बर्बाद नहीं कीं। इसके बजाय उन्होंने पड़ोस में ही छोटी-छोटी चीजें और कैंडी बेचने वाली एक दुकान खोल ली। यह उनका पहला 'बिजनेस वेंचर' था। इससे उन्होंने कुछ नहीं तो कम से कम किसी उत्पाद को खरीदने और बेचने का कौशल तो सीखा ही। इसके अलावा, कॉलेज के दिनों में वह अस्पतालों में फिनाइल बेचते थे। उनकी यही आदत उन्हें मसाला साम्राज्य खड़ा करने में मदद करती रही।
मां से मिली प्रेरणा
धीरे-धीरे इसाक अपने परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाने लगे। हालांकि, वह इससे संतुष्ट नहीं थे। 10 साल तक नौकरी करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। अब वह अपना बिजनेस करना चाहते थे। उनकी मां बहुत लजीज खाना बनाती थीं। उन्हें अच्छे से पता था कि खाने का जायका बढ़ाने के लिए किसी मसाले का उपयोग कब, कहां और कैसे करना है। पद्मसिंह चाहते थे कि वह अपनी मां के हाथों के बने मसालों की रेसिपी सभी लोगों तक पहुंचाए। मां के खाने से प्रेरित होकर उन्होंने 1995 में आची मसाला की स्थापना की।
बिना पैसों के मार्केटिंग
इसाक ने आची मसाला कंपनी की शुरुआत तो कर दी, पर कम संसाधनों के साथ प्रतिस्पर्धी बाजार में बने रहना सबसे बड़ी चुनौती थी। एक ओर बड़ी-बड़ी कंपनियां बाजार में अपना पैर जमा चुकी थीं और उनके उत्पाद लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुके थे। दूसरी ओर, एक नई कंपनी बाजार में अभी-अभी आई थी और उसके पास मार्केटिंग पर खर्च करने के लिए भी पैसे नहीं थे। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने अपने मसालों को ‘द मदर ऑफ गुड टेस्ट’ टैगलाइन दिया था, ताकि लोग इससे खुद को कनेक्ट कर पाएं।
युवाओं को सीख
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यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है आची ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक एडी पद्मसिंह इसाक पर। शून्य से शिखर तक पहुंचने में उन्होंने न जाने कितनी चुनौतियों का सामना किया, तब जाकर दो रुपये के मसाले बेचने से 2,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की कंपनी खड़ी कर पाए। उनकी सफलता की कहानी हर युवा को मुश्किल परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारने का हौसला और गिरकर उठने की प्रेरणा देती है। इसाक को वर्ष 2016 में ‘बेस्ट इम्प्लॉयर फॉर एमपावरिंग पर्सन्स विद डिसेबिलिटी’ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
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बचपन में पिता को खोया
इसाक का जन्म तमिलनाडु के नाजरेथ गांव के किसान परिवार में हुआ था। बारह साल की उम्र में ही पिता का निधन हो गया। पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी मां ने संभाली। हालांकि, जैसे-जैसे इसाक बड़े होते गए, मां की परेशानियां उन्हें समझ में आने लगीं। मां की मदद करने के लिए उन्होंने पढ़ाई के साथ नौकरी भी की।
फ्री ग्लास का आइडिया आया काम
जब कोई भी दुकानदार उनके मसालों को बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो उन्होंने खुद घूम-घूम कर सड़कों पर मसाले बेचना शुरू कर दिया। उनका पहला उत्पाद, कुजाम्बू मिलगाई थूल, जो एक प्रकार का करी मसाला पाउडर था, महज दो रुपये की किफायती कीमत पर उपलब्ध था, जिससे यह ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक मजदूरों के लिए सुलभ हो गया। वह अपने हर ग्राहक को प्रत्येक मसाले की खरीदारी पर फ्री में ग्लास दिया करते थे। उनका यह आइडिया काम कर गया।
एक-एक कदम ही सही कंपनी
सफलता की सीढ़ी
चढ़ती गई।
छोटी उम्र में बड़ी चुनौतियां
उन्होंने गोदरेज कंपनी में घूम-घूम कर हेयर कलर पाउडर बेचने की नौकरी कर ली। स्कूल में पढ़ने वाले पद्मसिंह ने दूसरे बच्चों की तरह अपनी गर्मी की छुट्टियां कभी बर्बाद नहीं कीं। इसके बजाय उन्होंने पड़ोस में ही छोटी-छोटी चीजें और कैंडी बेचने वाली एक दुकान खोल ली। यह उनका पहला 'बिजनेस वेंचर' था। इससे उन्होंने कुछ नहीं तो कम से कम किसी उत्पाद को खरीदने और बेचने का कौशल तो सीखा ही। इसके अलावा, कॉलेज के दिनों में वह अस्पतालों में फिनाइल बेचते थे। उनकी यही आदत उन्हें मसाला साम्राज्य खड़ा करने में मदद करती रही।
मां से मिली प्रेरणा
धीरे-धीरे इसाक अपने परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाने लगे। हालांकि, वह इससे संतुष्ट नहीं थे। 10 साल तक नौकरी करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। अब वह अपना बिजनेस करना चाहते थे। उनकी मां बहुत लजीज खाना बनाती थीं। उन्हें अच्छे से पता था कि खाने का जायका बढ़ाने के लिए किसी मसाले का उपयोग कब, कहां और कैसे करना है। पद्मसिंह चाहते थे कि वह अपनी मां के हाथों के बने मसालों की रेसिपी सभी लोगों तक पहुंचाए। मां के खाने से प्रेरित होकर उन्होंने 1995 में आची मसाला की स्थापना की।
बिना पैसों के मार्केटिंग
इसाक ने आची मसाला कंपनी की शुरुआत तो कर दी, पर कम संसाधनों के साथ प्रतिस्पर्धी बाजार में बने रहना सबसे बड़ी चुनौती थी। एक ओर बड़ी-बड़ी कंपनियां बाजार में अपना पैर जमा चुकी थीं और उनके उत्पाद लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुके थे। दूसरी ओर, एक नई कंपनी बाजार में अभी-अभी आई थी और उसके पास मार्केटिंग पर खर्च करने के लिए भी पैसे नहीं थे। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने अपने मसालों को ‘द मदर ऑफ गुड टेस्ट’ टैगलाइन दिया था, ताकि लोग इससे खुद को कनेक्ट कर पाएं।
युवाओं को सीख
- कड़ी मेहनत के बिना जिंदगी में सफलता शब्द का कोई अर्थ नहीं है।
- आपकी आज की मेहनत आपके कल के सपनों की चाबी है।
- जो इन्सान मेहनत से नहीं डरता, वह अपने सपनों को पा ही लेता है।
- आपका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप आज क्या कर रहे हैं।
- पहले खुद वो बदलाव बनिए, जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं।