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PM Modi: पीएम ने फिर लहराया गमछा, सांस्कृतिक जुड़ाव ने बढ़ाई भीड़ की ऊर्जा; जय बिहार, हर-हर महादेव के लगे नारे

कुमार निशांत Published by: शिवम गर्ग Updated Fri, 21 Nov 2025 05:13 AM IST
सार

बिहार चुनाव के नतीजे आते ही 14 नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री ने दिल्ली से देश को संबोधित करते हुए हवा में गमछा घुमाकर बिहार की जनता को धन्यवाद दिया था। उससे पहले बेगूसराय की चुनावी रैली और वहीं नए पुल के उद्घाटन के दौरान भी वे मंच से गमछा लहराते दिखे थे।

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Gamchha Politics: PM Modi’s Cultural Gesture Electrifies Crowd at Patna Swearing-In Ceremony
पीएम मोदी ने फिर लहराया गमछा - फोटो : PIB
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विस्तार
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शपथ ग्रहण समारोह ने महज राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन नहीं किया बल्कि सांस्कृतिक संकेतों की नई परिभाषा भी गढ़ी। पटना के गांधी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही आमतौर पर बिहार के सभी लोगों के गले में नजर आने वाला लाल-पीला गमछा लहराया, पूरा मैदान तालियों और नारों से गूंज उठा। इसके साथ ही मैदान में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया।
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 जय बिहार, हर-हर महादेव, नीतीश कुमार जिंदाबाद के नारों की गूंज लगातार तेज होने लगी। यह दृश्य बताता है कि सांस्कृतिक संकेत जब राजनीतिक संदेश के साथ जुड़ते हैं, तो उनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। गमछा को पीएम पिछले तीन महीनों में कई बड़े मंचों पर अपने राजनीतिक संदेश की धुरी बनाते रहे हैं और अब यह बिहार की जनभावना के साथ उनके सबसे प्रभावी जुड़ाव का प्रतीक बन गया है। 
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बिहार चुनाव के नतीजे आते ही 14 नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री ने दिल्ली से देश को संबोधित करते हुए हवा में गमछा घुमाकर बिहार की जनता को धन्यवाद दिया था। उससे पहले बेगूसराय की चुनावी रैली और वहीं नए पुल के उद्घाटन के दौरान भी वे मंच से गमछा लहराते दिखे थे। तीनों मौकों पर भीड़ की प्रतिक्रिया ने साफ कर दिया था कि मोदी की सांस्कृतिक अपील लोगों को सीधे जोड़ रही है।

गमछा पॉलिटिक्स असरदार क्यों ?
बिहार में गमछा सिर्फ परिधान नहीं सम्मान, पहचान और संस्कृति का प्रतीक है। किसान से लेकर मजदूर, युवा से लेकर बुजुर्ग हर वर्ग इसे जीवन और परंपरा का हिस्सा मानता है। राजनीतिक मंच पर जब कोई नेता इसे धारण करता है, तो संदेश साफ होता है वह नेता जनता के जीवन और संस्कृति को समझता है, और उससे जुड़ना चाहता है। मोदी ने इसी भावनात्मक संकेत को अपनी कनेक्ट पॉलिटिक्स का हिस्सा बनाया। बीते महीनों में इसकी पुनरावृत्ति ने इसे राजनीतिक हथियार बना दिया जो बिना भाषण के भी जनता से संवाद कर जाता है।
 
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