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Women: किशोरियों के मासिक धर्म पर वैश्विक रिपोर्ट ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव...शर्म नहीं, समझ की जरूरत

अमर उजाला नेटवर्क Published by: लव गौर Updated Sat, 08 Nov 2025 06:19 AM IST
सार

वैश्विक रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि किशोरियों को पीरियड्स को लेकर शर्म की नहीं, बल्कि समझ की जरूरत है। उन खास दिनों में आराम नहीं, सही भोजन और योग बेहतर है। 
 

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global report clearly stated that teenage girls need understanding not shame on period
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : AI
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विस्तार
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पीरियड्स यानी मासिक धर्म किसी कमजोरी का नहीं बल्कि एक स्वस्थ जैविक प्रक्रिया का प्रतीक है। वैश्विक रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि किशोरियों को इसके लिए शर्म नहीं समझ की जरूरत है। यदि सही पोषण और जीवनशैली अपनाई जाए तो दर्द, थकान और भावनात्मक उतार-चढ़ाव को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
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हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के संयुक्त शोध में निष्कर्ष निकला कि मासिक धर्म को सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा नीति का अभिन्न अंग बनाना वक्त की जरूरत है। माताओं और स्कूल की शिक्षिकाओं को पूरी तरह जागरूक होना पड़ेगा। मासिक धर्म के दौरान शरीर से औसतन 30–40 मिलीलीटर रक्त की हानि होती है। इस अवधि में बच्चियों के शरीर को आयरन, कैल्शियम, विटामिन डी और ओमेगा-3 फैटी एसिड की विशेष आवश्यकता होती है।
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ईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि भारत की लगभग 43 फीसदी किशोरियां आयरन की कमी से पीड़ित हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, दालें, गुड़, दूध, बादाम, तिल जैसे खाद्य तत्व न सिर्फ रक्त की पूर्ति करते हैं बल्कि मांसपेशियों दर्द भी कम करते हैं।

प्राणायाम दर्द के खिलाफ प्राकृतिक ढाल
नई दिल्ली एम्स की स्त्री-रोग विशेषज्ञ डॉ. शिल्पा नायर कहती हैं, योग और प्रणायाम किशोरियों को पीरियड्स से डरना नहीं, उन्हें समझना सिखाते हैं। यह जैविक लय के साथ सामंजस्य का अभ्यास है। स्वीडन के करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के अध्ययन में पाया गया कि जो किशोरियां सप्ताह में कम से कम तीन दिन सेतुबंधासन, बालासन और अनुलोम-विलोम का अभ्यास करती हैं, उन्हें दर्दनिवारक दवाओं की आवश्यकता 41 फीसदी तक कम हो गई। योग से एंडोर्फिन हार्मोन का स्तर बढ़ता है जो शरीर का प्राकृतिक पेन-रिलीवर है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि मासिक धर्म के पहले दो दिन उल्टे आसनों से बचना चाहिए।

वैश्विक शोध के पांच निष्कर्ष
  1. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और क्योटो यूनिवर्सिटी के संयुक्त अध्ययन के अनुसार यह परिवर्तन बेहतर पोषण और शहरी जीवनशैली के प्रभाव से हुआ है। मासिक धर्म शिक्षा अब स्कूलों में कक्षा पांच या छह से ही शुरू होनी चाहिए।
  2. हार्मोनल असंतुलन से ज्यादा असर पोषण की कमी का है। आईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि जिन किशोरियों को स्कूल में नियमित रूप से आयरन कैल्शियम सप्लीमेंट दिए गए, उनमें दर्द और कमजोरी के मामलों में स्पष्ट कमी देखी गई।
  3. करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोध से यह प्रमाणित हुआ कि योगिक अभ्यास दवाओं जितने प्रभावी हैं और हार्मोनल संतुलन बनाए रखते हैं।
  4. यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो की रिपोर्ट के अनुसार मूड स्विंग और मानसिक थकान को अब संज्ञानात्मक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए।
  5. डब्ल्यूएचओ, यूएनएफपीए और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से जारी ग्लोबल मेनस्ट्रुअल हेल्थ फ्रेमवर्क 2023–2030 में मासिक धर्म को मानव अधिकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकेतक के रूप में मान्यता दी गई है। इस फ्रेमवर्क को अब तक 53 देशों ने अपनाया है।
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