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Bombay HC: प्राकृतिक जलस्रोतों में इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन पर प्रतिबंध, कोर्ट ने इसलिए लगाई रोक
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: पवन पांडेय
Updated Thu, 04 Sep 2025 07:02 PM IST
सार
Bombay HighCourt On Ganpati Idol Immersion: बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्राकृतिक जलस्रोतों में इको-फ्रेंडली गणपति प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगा दी है। मामले को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ कहा कि किसी व्यक्ति के अधिकार, समाज और समुदाय के अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकते।
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : ANI
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विस्तार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में यह साफ कर दिया कि पर्यावरण मित्र (इको-फ्रेंडली) गणपति प्रतिमाओं को भी प्राकृतिक जलस्रोतों जैसे झीलों, तालाबों और नदियों में विसर्जित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति के अधिकार, समाज और समुदाय के अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकते। यह फैसला मुंबई के बांगंगा तालाब सहित प्राकृतिक जलस्रोतों में प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर चल रहे विवाद पर आया है।
यह भी पढ़ें - बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: दाभोलकर के बेटे-पत्रकारों के खिलाफ मानहानि का केस कोल्हापुर ट्रांसफर, जानें वजह
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मुंबई के निवासी संजय शिर्के ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग की थी कि इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक बांगंगा तालाब, जो दक्षिण मुंबई में मौजूद है, में पहले भी ऐसे विसर्जन होते आए हैं। संजय शिर्के ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) की उन गाइडलाइंस को चुनौती दी थी, जिनके तहत छह फीट से छोटी प्रतिमाओं का विसर्जन केवल आर्टिफिशियल तालाबों में करने का आदेश है। इसके साथ ही, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) की अधिसूचना को भी चुनौती दी, जिसमें बांगंगा तालाब में प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाई गई थी।
क्या है सरकार और बीएमसी का पक्ष?
महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल बीरेन्द्र सर्राफ ने अदालत में तर्क दिया कि बांगंगा तालाब संरक्षित धरोहर है और इसके संरक्षण के लिए खास कानून लागू हैं। यह तालाब प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत संरक्षित है। किसी को भी यहां प्रतिमाओं के विसर्जन का मौलिक अधिकार नहीं है। विसर्जन से तालाब की संरचना और जल गुणवत्ता को नुकसान पहुंच सकता है।
सुनवाई के दौरान अदालत की अहम टिप्पणी
मामले की सुनवाई के दौरान कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति आरती साठे की खंडपीठ ने कहा, 'स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी का अधिकार अब हर नागरिक का मौलिक अधिकार बन चुका है। ऐसे मामलों में जब किसी व्यक्ति के अधिकार और पूरे समुदाय के अधिकार के बीच टकराव हो, तो समाज के अधिकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कुछ लोगों की असुविधा बड़े मुद्दों के आगे महत्वहीन है।'
बॉम्बे उच्च न्यायालय का फैसला
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने संजय शिर्के की याचिका खारिज कर दी और बीएमसी की एसओपी और एमपीसीबी के आदेश को सही ठहराया। अदालत ने स्पष्ट किया कि छह फीट से छोटी प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम टैंकों में ही होगा, जबकि इससे ऊंची प्रतिमाओं का विसर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें - Bombay High Court: 2022 के हिट-एंड-रन मामले को लेकर अदालत सख्त, ढुलमुल जांच के लिए मुंबई पुलिस को लगाई फटकार
क्यों जरूरी है यह कदम?
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की गाइडलाइंस के मुताबिक, प्लॉस्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की बनी प्रतिमाओं का विसर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में पूरी तरह से प्रतिबंधित है, क्योंकि यह जल प्रदूषण बढ़ाती हैं। महाराष्ट्र सरकार ने इन गाइडलाइंस को अपनाते हुए छोटे आकार की प्रतिमाओं को कृत्रिम टैंकों में विसर्जित करने का आदेश दिया। यह कदम जल संरक्षण और प्रदूषण रोकने के लिए उठाया गया है।
बांगंगा तालाब का महत्व
बांगंगा तालाब दक्षिण मुंबई का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। इसे प्राचीन धरोहर का दर्जा प्राप्त है। यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रतिमा विसर्जन से तालाब की संरचना और जल गुणवत्ता को गंभीर खतरा हो सकता है। हाईकोर्ट का यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और समाज के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। अब मुंबई में छोटे गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम तालाबों में ही किया जाएगा।
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क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मुंबई के निवासी संजय शिर्के ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग की थी कि इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक बांगंगा तालाब, जो दक्षिण मुंबई में मौजूद है, में पहले भी ऐसे विसर्जन होते आए हैं। संजय शिर्के ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) की उन गाइडलाइंस को चुनौती दी थी, जिनके तहत छह फीट से छोटी प्रतिमाओं का विसर्जन केवल आर्टिफिशियल तालाबों में करने का आदेश है। इसके साथ ही, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) की अधिसूचना को भी चुनौती दी, जिसमें बांगंगा तालाब में प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाई गई थी।
क्या है सरकार और बीएमसी का पक्ष?
महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल बीरेन्द्र सर्राफ ने अदालत में तर्क दिया कि बांगंगा तालाब संरक्षित धरोहर है और इसके संरक्षण के लिए खास कानून लागू हैं। यह तालाब प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत संरक्षित है। किसी को भी यहां प्रतिमाओं के विसर्जन का मौलिक अधिकार नहीं है। विसर्जन से तालाब की संरचना और जल गुणवत्ता को नुकसान पहुंच सकता है।
सुनवाई के दौरान अदालत की अहम टिप्पणी
मामले की सुनवाई के दौरान कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति आरती साठे की खंडपीठ ने कहा, 'स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी का अधिकार अब हर नागरिक का मौलिक अधिकार बन चुका है। ऐसे मामलों में जब किसी व्यक्ति के अधिकार और पूरे समुदाय के अधिकार के बीच टकराव हो, तो समाज के अधिकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कुछ लोगों की असुविधा बड़े मुद्दों के आगे महत्वहीन है।'
बॉम्बे उच्च न्यायालय का फैसला
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने संजय शिर्के की याचिका खारिज कर दी और बीएमसी की एसओपी और एमपीसीबी के आदेश को सही ठहराया। अदालत ने स्पष्ट किया कि छह फीट से छोटी प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम टैंकों में ही होगा, जबकि इससे ऊंची प्रतिमाओं का विसर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में किया जा सकता है।
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क्यों जरूरी है यह कदम?
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की गाइडलाइंस के मुताबिक, प्लॉस्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की बनी प्रतिमाओं का विसर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में पूरी तरह से प्रतिबंधित है, क्योंकि यह जल प्रदूषण बढ़ाती हैं। महाराष्ट्र सरकार ने इन गाइडलाइंस को अपनाते हुए छोटे आकार की प्रतिमाओं को कृत्रिम टैंकों में विसर्जित करने का आदेश दिया। यह कदम जल संरक्षण और प्रदूषण रोकने के लिए उठाया गया है।
बांगंगा तालाब का महत्व
बांगंगा तालाब दक्षिण मुंबई का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। इसे प्राचीन धरोहर का दर्जा प्राप्त है। यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रतिमा विसर्जन से तालाब की संरचना और जल गुणवत्ता को गंभीर खतरा हो सकता है। हाईकोर्ट का यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और समाज के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। अब मुंबई में छोटे गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम तालाबों में ही किया जाएगा।