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Mulayam Singh Yadav: मुलायम सिंह के निधन से सपा पर क्या असर पड़ेगा? जानें अखिलेश यादव आगे क्या करेंगे
सार
यूं तो 2017 से ही अखिलेश ने पार्टी की कमान पूरी तरह से अपने हाथ ले ली थी, लेकिन मुलायम सिंह ऐसे कड़ी थे जिनके चलते कई पुराने और दिग्गज नेता पार्टी से जुड़े रहे। अब उनके निधन के बाद सवाल उठने लगा है कि इसका कितना असर सपा पर पड़ेगा? पार्टी में फूट को रोकने और दिग्गज नेताओं को एकजुट रखने में अखिलेश यादव कितना सफल होंगे? सपा अध्यक्ष की आगे की रणनीति क्या होगी? आइए समझते हैं...
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मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी। मुलायम की बदौलत ही तीन बार यूपी में सपा की सरकार बनी। दो बार खुद मुलायम और एक बार अखिलेश यादव देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री बने। अब मुलायम सिंह यादव के निधन से पार्टी को बड़ा धक्का लगा है।
यूं तो 2017 से ही अखिलेश ने पार्टी की कमान पूरी तरह से अपने हाथ ले ली थी, लेकिन मुलायम सिंह ऐसे कड़ी थे जिनके चलते कई पुराने और दिग्गज नेता पार्टी से जुड़े रहे। अब उनके निधन के बाद सवाल उठने लगा है कि इसका कितना असर सपा पर पड़ेगा? पार्टी में फूट और दिग्गज नेताओं को एकजुट रखने में अखिलेश यादव कितना सफल होंगे? सपा अध्यक्ष की आगे की रणनीति क्या होगी? आइए समझते हैं...
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यूं तो 2017 से ही अखिलेश ने पार्टी की कमान पूरी तरह से अपने हाथ ले ली थी, लेकिन मुलायम सिंह ऐसे कड़ी थे जिनके चलते कई पुराने और दिग्गज नेता पार्टी से जुड़े रहे। अब उनके निधन के बाद सवाल उठने लगा है कि इसका कितना असर सपा पर पड़ेगा? पार्टी में फूट और दिग्गज नेताओं को एकजुट रखने में अखिलेश यादव कितना सफल होंगे? सपा अध्यक्ष की आगे की रणनीति क्या होगी? आइए समझते हैं...
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मुलायम के अध्यक्ष रहते पार्टी का प्रदर्शन कैसा था?
1992 से 2017 तक मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रहे। इस दौरान यूपी में पांच विधानसभा चुनाव हुए। नई पार्टी बनने के बाद पहली बार 1993 में हुए चुनाव में सपा ने 109 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद दूसरी बार 1996 में चुनाव हुए, तब पार्टी को 110 सीटों पर जीत मिली। 2002 में मुलायम की अध्यक्षता में पार्टी ने 143 सीटें जीतीं। 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ करके चुनाव लड़ा। इसके आगे सपा काफी कमजोर साबित हुई। पार्टी को केवल 97 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि, ठीक पांच साल बाद मुलायम की अगुआई में पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में सरकार बनाई। 2012 में सपा को 224 सीटों पर जीत मिली थी।
1992 से 2017 तक मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रहे। इस दौरान यूपी में पांच विधानसभा चुनाव हुए। नई पार्टी बनने के बाद पहली बार 1993 में हुए चुनाव में सपा ने 109 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद दूसरी बार 1996 में चुनाव हुए, तब पार्टी को 110 सीटों पर जीत मिली। 2002 में मुलायम की अध्यक्षता में पार्टी ने 143 सीटें जीतीं। 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ करके चुनाव लड़ा। इसके आगे सपा काफी कमजोर साबित हुई। पार्टी को केवल 97 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि, ठीक पांच साल बाद मुलायम की अगुआई में पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में सरकार बनाई। 2012 में सपा को 224 सीटों पर जीत मिली थी।
मुलायम के दौर में लोकसभा चुनाव में कैसा रहा सपा का प्रदर्शन?
1996 में पहली बार सपा ने लोकसभा चुनाव लड़ा था। तब 111 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और इनमें से 16 को जीत मिली थी। 1998 में 166 में से 19, 1999 में 151 में से 26, 2004 में 237 में से 36, 2009 में 193 में से 23 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। 2014 में मोदी लहर में पार्टी का ग्राफ कमजोर हुआ। 197 में से केवल पांच प्रत्याशी ही सांसद चुने गए। इनमें भी सारे मुलायम परिवार के सदस्य थे। मुलायम सिंह यादव की अध्यक्षता में ये आखिरी लोकसभा चुनाव सपा ने लड़ा था।
1996 में पहली बार सपा ने लोकसभा चुनाव लड़ा था। तब 111 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और इनमें से 16 को जीत मिली थी। 1998 में 166 में से 19, 1999 में 151 में से 26, 2004 में 237 में से 36, 2009 में 193 में से 23 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। 2014 में मोदी लहर में पार्टी का ग्राफ कमजोर हुआ। 197 में से केवल पांच प्रत्याशी ही सांसद चुने गए। इनमें भी सारे मुलायम परिवार के सदस्य थे। मुलायम सिंह यादव की अध्यक्षता में ये आखिरी लोकसभा चुनाव सपा ने लड़ा था।
फिर अखिलेश ने संभाला कमान और...
2012 में पूर्ण बहुमत लाने के बाद मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया। इसके बाद से उनके परिवार में विवाद शुरू हो गए। पांच साल होते-होते विवाद इतने बढ़े कि अखिलेश यादव ने अपने पिता यानी मुलायम सिंह को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया और खुद काबिज हो गए। तब मुलायम को पार्टी का संरक्षक बना दिया। अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले अखिलेश ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया। बाद में शिवपाल ने सपा छोड़कर नई पार्टी का गठन कर लिया। अखिलेश यादव की राजनीति में एंट्री साल 2000 में हुई थी। तब वह पहली बार कन्नौज से सांसद चुने गए थे। इसके बाद 2004, 2009 में भी सांसद निर्वाचित हुए।
2012 में पूर्ण बहुमत लाने के बाद मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया। इसके बाद से उनके परिवार में विवाद शुरू हो गए। पांच साल होते-होते विवाद इतने बढ़े कि अखिलेश यादव ने अपने पिता यानी मुलायम सिंह को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया और खुद काबिज हो गए। तब मुलायम को पार्टी का संरक्षक बना दिया। अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले अखिलेश ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया। बाद में शिवपाल ने सपा छोड़कर नई पार्टी का गठन कर लिया। अखिलेश यादव की राजनीति में एंट्री साल 2000 में हुई थी। तब वह पहली बार कन्नौज से सांसद चुने गए थे। इसके बाद 2004, 2009 में भी सांसद निर्वाचित हुए।
अखिलेश की अध्यक्षता में पार्टी का क्या रहा प्रदर्शन?
एक जनवरी 2017 को पिता मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश यादव पार्टी के अध्यक्ष बने थे। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। उस चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन भी किया था। 311 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली सपा को केवल 47 पर जीत मिली।
अखिलेश की दूसरी अग्नि परीक्षा 2019 लोकसभा चुनाव में हुई। तब भाजपा को हराने के लिए अखिलेश ने पुरानी दुश्मनी भुलाकर मायावती से हाथ मिलाया। सपा ने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल पांच पर जीत मिली। इसके बाद 2022 विधानसभा चुनाव हुए। 2017 के मुकाबले समाजवादी पार्टी की स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन अखिलेश सरकार नहीं बना पाए। सपा ने कई छोटी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। सपा के बैनर तले 347 उम्मीदवार उतारे गए और इनमें से 111 को जीत मिली।
एक जनवरी 2017 को पिता मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश यादव पार्टी के अध्यक्ष बने थे। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। उस चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन भी किया था। 311 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली सपा को केवल 47 पर जीत मिली।
अखिलेश की दूसरी अग्नि परीक्षा 2019 लोकसभा चुनाव में हुई। तब भाजपा को हराने के लिए अखिलेश ने पुरानी दुश्मनी भुलाकर मायावती से हाथ मिलाया। सपा ने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल पांच पर जीत मिली। इसके बाद 2022 विधानसभा चुनाव हुए। 2017 के मुकाबले समाजवादी पार्टी की स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन अखिलेश सरकार नहीं बना पाए। सपा ने कई छोटी पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। सपा के बैनर तले 347 उम्मीदवार उतारे गए और इनमें से 111 को जीत मिली।
मुलायम के निधन से पार्टी पर क्या असर पड़ेगा?
ये समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, 'समाजवादी पार्टी के लिए मुलायम सिंह यादव एक मजबूत स्तंभ थे। वह पार्टी के अध्यक्ष रहें या नहीं उनकी वजह से बड़ी संख्या में सीनियर लीडर पार्टी से जुड़े रहे। तब भी जब उन्हें अखिलेश यादव ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। ऐसे में अगर अखिलेश अपने वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर नहीं चले तो आने वाले दिनों में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।'
प्रो. अजय के अनुसार, 'तमाम मतभेद के बावजूद परिवार को भी एकजुट करने में मुलायम सिंह यादव की भूमिका ही अहम रही। अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच मुलायम एकमात्र पुलिया के रूप में काम करते थे। अब उनके न रहने पर अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरियां भी बढ़ सकती हैं।'
ये समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, 'समाजवादी पार्टी के लिए मुलायम सिंह यादव एक मजबूत स्तंभ थे। वह पार्टी के अध्यक्ष रहें या नहीं उनकी वजह से बड़ी संख्या में सीनियर लीडर पार्टी से जुड़े रहे। तब भी जब उन्हें अखिलेश यादव ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। ऐसे में अगर अखिलेश अपने वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर नहीं चले तो आने वाले दिनों में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।'
प्रो. अजय के अनुसार, 'तमाम मतभेद के बावजूद परिवार को भी एकजुट करने में मुलायम सिंह यादव की भूमिका ही अहम रही। अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच मुलायम एकमात्र पुलिया के रूप में काम करते थे। अब उनके न रहने पर अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरियां भी बढ़ सकती हैं।'
अखिलेश आगे क्या करेंगे?
प्रो. अजय कहते हैं, 'अभी तक पार्टी के सीनियर लीडर्स के साथ-साथ परिवार को जोड़े रखने में भी मुलायम सिंह यादव की भूमिका ही सबसे अहम थी। अब ये जिम्मेदारी पूरी तरह से अखिलेश यादव के कंधों पर आ गई है। ऐसे में अखिलेश को सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करनी होगी।'
प्रो. सिंह के अनुसार, अखिलेश को अब पार्टी के युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच तालमेल बैठाना पड़ेगा। उनके बीच पुलिया का काम करना होगा, जो अब तक मुलायम सिंह यादव खुद करते थे। इसके अलावा उन्हें परिवार को भी एकजुट रखने की कोशिश करनी होगी।
प्रो. अजय कहते हैं, 'अभी तक पार्टी के सीनियर लीडर्स के साथ-साथ परिवार को जोड़े रखने में भी मुलायम सिंह यादव की भूमिका ही सबसे अहम थी। अब ये जिम्मेदारी पूरी तरह से अखिलेश यादव के कंधों पर आ गई है। ऐसे में अखिलेश को सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करनी होगी।'
प्रो. सिंह के अनुसार, अखिलेश को अब पार्टी के युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच तालमेल बैठाना पड़ेगा। उनके बीच पुलिया का काम करना होगा, जो अब तक मुलायम सिंह यादव खुद करते थे। इसके अलावा उन्हें परिवार को भी एकजुट रखने की कोशिश करनी होगी।