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Brahmos: सरकार की मंजूरी के बाद 8 साल में तैयार होगा ब्रह्मोस का हाइपरसोनिक संस्करण, विनाश करने में सक्षम
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: वीरेंद्र शर्मा
Updated Wed, 22 Feb 2023 03:13 AM IST
सार
ब्रहमोस के अधिकारियों ने बताया, अगर हमें हाइपरसोनिक मिसाइल चाहिए तो सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसे विकसित करने में हमें सिर्फ आठ साल लगेंगे। मिसाइल पहले से ही करीब 3,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरती है।
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हाइपरसोनिक मिसाइल(सांकेतिक तस्वीर)
- फोटो : Social media
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विस्तार
सरकार की मंजूरी मिलने पर ब्रह्मोस एयरोस्पेस आठ साल में सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का हाइपरसोनिक संस्करण तैयार कर सकता है। इसके बाद सेना दुश्मन के ठिकानों पर और तीव्रता से हमला करने में सक्षम होगी। बलों ने हाइपरसोनिक मिसाइलों और बमों की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। रूस-यूक्रेन युद्ध में ऐसे हथियारों की सफलता को देखकर इसकी जरूरत और अधिक महसूस की जा रही है।
ब्रहमोस के अधिकारियों ने बताया, अगर हमें हाइपरसोनिक मिसाइल चाहिए तो सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसे विकसित करने में हमें सिर्फ आठ साल लगेंगे। मिसाइल पहले से ही करीब 3,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरती है। इसका हाइपरसोनिक संस्करण दुश्मन के शिविरों का बहुत तेज गति से विनाश करने में सक्षम होगा।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने रक्षा बलों के साथ मिसाइल को कई बार उन्नत कर उसकी रेंज में काफी वृद्धि की है। परीक्षण-फायरिंग में ब्रह्मोस की सफलता दर ने भारत-रूसी संयुक्त उद्यम फर्म को इसे फिलीपींस जैसे देशों में निर्यात करने में मदद की है। कई अन्य देशों ने इस मिसाइल को खरीदने में रुचि दिखाई है। भारत की तीनों सेनाएं इस मिसाइल प्रणाली के विभिन्न संस्करणों का संचालन करती हैं।
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ब्रहमोस के अधिकारियों ने बताया, अगर हमें हाइपरसोनिक मिसाइल चाहिए तो सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसे विकसित करने में हमें सिर्फ आठ साल लगेंगे। मिसाइल पहले से ही करीब 3,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरती है। इसका हाइपरसोनिक संस्करण दुश्मन के शिविरों का बहुत तेज गति से विनाश करने में सक्षम होगा।
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ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने रक्षा बलों के साथ मिसाइल को कई बार उन्नत कर उसकी रेंज में काफी वृद्धि की है। परीक्षण-फायरिंग में ब्रह्मोस की सफलता दर ने भारत-रूसी संयुक्त उद्यम फर्म को इसे फिलीपींस जैसे देशों में निर्यात करने में मदद की है। कई अन्य देशों ने इस मिसाइल को खरीदने में रुचि दिखाई है। भारत की तीनों सेनाएं इस मिसाइल प्रणाली के विभिन्न संस्करणों का संचालन करती हैं।