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Health: बढ़ती प्रतिस्पर्धा का दिख रहा असर, किशोरों में बढ़ीं मानसिक समस्याएं; मनोचिकित्सकों की कमी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: विशांत श्रीवास्तव Updated Thu, 11 Jul 2024 05:38 AM IST
सार

भारत में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण किशोरों में मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं। किशोरों सही समय पर चिकित्सकों से परामर्श भी नहीं लेते जो हताशा कारण बनती है।

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Impact of increasing competition is visible, mental problems have increased among teenagers
Stress, Depression, Sad - फोटो : istock
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 पढ़ाई, नौकरी और अन्य क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण युवाओं और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, इसके बावजूद भारत जैसे विकासशील देशों में इन समस्याओं से जूझते 99 फीसदी किशोर मनोवैज्ञानिक या विशेषज्ञों से किसी प्रकार की औपचारिक मदद नहीं लेते हैं। 

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फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ टुर्कु से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए अध्ययन में यह सामने आया है। इसके नतीजे जर्नल यूरोपियन चाइल्ड एंड एडोलसेंट साइकाइट्री में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में भारत के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग से जुड़े शोधकर्ता समीर कुमार प्रहराज ने भी सहयोग दिया है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में भारत, चीन, फिनलैंड, ग्रीस, इस्राइल, जापान, नॉर्वे और वियतनाम के 13 से 15 वर्ष की आयु के 13,184 युवाओं को शामिल किया। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत जैसे देशों में मनोचिकित्सकों की सीमित संख्या भी एक बड़ी समस्या है। भारत में प्रति लाख बच्चों और किशोरों पर मनोचिकित्सकों की संख्या महज 0.02 है। वहीं, चीन में यह आंकड़ा 0.09 है। दूसरी तरफ नॉर्वे में प्रति एक लाख किशोरों पर मनोचिकित्सकों की संख्या 47.74 तथा फिनलैंड में 45.4 है।

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बढ़ी एक वर्ष में चिंताग्रस्त लोगों की संख्या 
शोधकर्ताओं के अनुसार प्रारंभिक अनुमान दर्शाते हैं कि सिर्फ एक वर्ष में चिंताग्रस्त लोगों की संख्या में 26 फीसदी का और अवसाद पीड़ितों की संख्या में 28 फीसदी की वृद्धि हुई है। अनुमान है कि 2019 में, 30.1 करोड़ लोग चिंताग्रस्त थे। इनमें 5.8 करोड़ बच्चे और किशोर थे। इसी तरह 28 करोड़ लोग अवसाद से पीड़ित थे। इनमें 2.3 करोड़ बच्चे और किशोर थे।

मोबाइल, कंप्यूटर और सोशल मीडिया बढ़ा रहे परेशानी
 शोधकर्ताओं के मुताबिक, आमतौर पर किशोर और युवा इस तरह की मानसिक दिक्कतों से उबरने के लिए अपने दोस्त, शिक्षक और परिवार के सदस्यों की मदद लेते हैं। ऐसे में सही सलाह या मदद न मिलने के कारण उनकी समस्या ज्यादा बढ़ सकती है। इसलिए युवा अब एक-दूसरे से सीधे जुड़ने के बजाय मोबाइल, कंप्यूटर और सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। नतीजन वह अपनी बात भी खुलकर साझा नहीं कर पाते। यह स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य को और भी ज्यादा प्रभावित कर रही है।


दिल्ली के एक तिहाई किशोर कभी न कभी अवसाद से जूझे  
शोधकर्ताओं ने दिल्ली में एम्स के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन और मनोरोग विभाग की ओर से किए एक अन्य अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली में रहने वाले करीब एक तिहाई किशोर (15-19 वर्ष) अपने जीवनकाल में कभी न कभी अवसाद या चिंता से जूझ रहे थे।

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