Naxal: खात्मे की डेड लाइन करीब, अब 'सीजफायर' और 'साजिश' के खेल में नक्सलियों ने 'आईईडी' को बनाया अंतिम हथियार
छत्तीसगढ़, झारखंड व तेलंगाना और ओडिशा सहित दूसरे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ एवं दूसरे सुरक्षा बलों की पकड़ मजबूत होती जा रही है। नक्सलियों के शीर्ष कमांडरों के ठिकानों को ध्वस्त किया जा रहा है। टॉप नक्सली, सुरक्षा बलों की गोली का निशाना बन रहे हैं।

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देश में नक्सलियों के खात्मे की डेड लाइन करीब आ रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक देश के सभी हिस्सों से नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने की घोषणा की है। इसके बाद ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचेगा, जहां तक सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। छत्तीसगढ़, झारखंड व तेलंगाना और ओडिशा सहित दूसरे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ एवं दूसरे सुरक्षा बलों की पकड़ मजबूत होती जा रही है। नक्सलियों के शीर्ष कमांडरों के ठिकानों को ध्वस्त किया जा रहा है। टॉप नक्सली, सुरक्षा बलों की गोली का निशाना बन रहे हैं। सरेंडर करने वाले नक्सलियों की संख्या बढ़ती जा रही है। नतीजा, अब नक्सली संगठनों द्वारा हथियारबंद संघर्ष को अस्थायी रूप से विराम घोषित करने का निर्णय लिया गया। सीआरपीएफ, आईबी और डीआरजी के विश्वस्त सूत्रों ने बताया, खात्मे की डेड लाइन करीब देख अब नक्सली भागने के रास्ते तलाश रहे हैं। 'सीजफायर' और 'साजिश' के खेल में नक्सलियों ने 'आईईडी' को अपना अंतिम हथियार बनाया है। वे कदम-कदम पर 'इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस' (आईईडी) लगाकर सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।


बता दें कि 15 अगस्त को भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने केंद्रीय गृह मंत्री एवं नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के नाम एक अपील जारी की थी। इसमें शांति वार्ता की बात कही गई। हथियारबंद संघर्ष को अस्थायी रूप से विराम घोषित करने का निर्णय लिया गया। हालांकि इस अपील के बाद सुरक्षा बलों ने अपने ऑपरेशन को और तेज कर दिया। सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अब पांच-पांच किलोमीटर की दूरी पर 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' (एफओबी) स्थापित किए जा रहे हैं। इसके चलते नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ एवं दूसरे सुरक्षा बलों की पकड़ मजबूत होती जा रही है। नक्सलियों के शीर्ष कमांडरों के ठिकानों को ध्वस्त किया जा रहा है। उनकी कोर टीम को एक जगह से दूसरी जगह भागना पड़ रहा है।

अब नक्सली, सुरक्षा बलों के सामने आने से कतरा रहे हैं। वे सीधी मुठभेड़ से बच रहे हैं। जितने भी नक्सली बचे हैं, उन्होंने जंगलों में अपने ठिकानों के आसपास और ऐसे मार्ग, जहां से सुरक्षा बलों की आवाजाही होती है, वहां कदम-कदम पर बारूद बिछा दिया है। वे प्रेशर 'इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस' (आईईडी) के जरिए सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बीजापुर और तेलंगाना बॉर्डर पर स्थित 'करेगुट्टा' पहाड़ी क्षेत्र में 'आईईडी' का भरमार है। अंतिम दौर की लड़ाई में नक्सलियों ने अपने ठिकानों के आसपास 'आईईडी' लगा दी हैं। इसे कहीं भी बैठकर संचालित किया जा सकता है। अगर सटीक टाइमिंग है तो इससे सुरक्षा बलों को बड़ा नुकसान भी पहुंच सकता है। ऐसे में सीआरपीएफ सहित दूसरे बलों ने तकनीकी उपकरणों एवं स्निफर डॉग की मदद से आईईडी का तोड़ निकाला है। इसके बावजूद, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के लिए आईईडी विस्फोट एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

आईईडी का खतरा, उन क्षेत्रों में ज्यादा है, जहां पर कच्चे रास्ते हैं। वहां नक्सली आईईडी लगा सकते हैं। एफओबी के आसपास कुछ ऐसी जगह भी हैं, जहां लाइट तक नहीं है। हालांकि सीआरपीएफ, कोबरा व डीआरजी के जवान, ऐसे रास्तों पर सतर्कता बरतते हैं। सुरक्षा बलों के एक अधिकारी के मुताबिक, हमारे जवान किसी वाहन में सवार होने की बजाए, बाइक पर चलते हैं। ऐसे में आईईडी से होने वाले नुकसान की संभावना कम हो जाती है। स्निफर डॉग और तकनीकी उपकरणों की मदद ली जा रही है। जिस रास्ते पर सुरक्षा बलों की टोली जाती है, उसे पहले सेनिटाइज किया जाता है। रोड ओपनिंग पार्टी भी रहती है। नक्सलियों के नए तौर तरीकों पर ध्यान रखा जाता है। रिसर्च पर काम चलता रहता है। डॉग और तकनीकी उपकरणों के ग्रीन सिग्नल के बाद ही आगे कदम बढ़ाया जाता है।
आईईडी को रिमोट कंट्रोल, इंफ्रारेड, मैग्नेटिक ट्रिगर्स, प्रेशर-सेंसिटिव बार्स या ट्रिप वायर की मदद से संचालित किया जाता है। कम आयु के नक्सलियों को रिमोट कंट्रोल से ही आईईडी विस्फोट करने की ट्रेनिंग दी जाती है। प्रेशर कूकर बम कैसे तैयार होता है, ये भी उन्हें सिखाया गया है। आतंकी/नक्सली, यही तरीका प्रयोग में ला रहे हैं। टिफिन बम भी बड़े स्तर पर इस्तेमाल हुए हैं। रिमोट या टाइमर के द्वारा आसानी से यह ब्लास्ट हो जाता है। ऐसे ब्लास्ट तैयार करने के लिए नक्सलियों के पास कंटेनर, केमिकल, डेटोनेटर, इनिशिएटर और वायर सब कुछ होता है। डेटोनेटर को पावर देने के लिए माओवादी, ड्राई बैटरी सेल का इस्तेमाल कर रहे हैं। स्पेशल डेटोनेटर भी आने लगे हैं।
एक्सपर्ट के अनुसार, नक्सलियों द्वारा स्पेशल डेटोनेटर में घड़ी का सेल लगाया जा रहा है। अगर ज्यादा वोल्टेज की जरूरत है तो वहां तीन चार सेल जोड़ देते हैं। नक्सली इस स्विच को आसानी से हासिल कर लेते हैं। ब्लास्ट की घटना में टाइमिंग एक बड़ा फैक्टर होता है। अगर ये ठीक नहीं रहा तो विस्फोट करने वाला खुद भी मारा जाता है। नक्सली, 1.95 डेस्क टाइमर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन सबके लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। एबीसीडी स्विच की जगह पर दूसरी टर्म आ गई है। अगर एक्सपर्ट नहीं है तो टाइम आगे पीछे हो जाता है। नतीजा, समय पर ब्लास्ट नहीं होता। फिलहाल, छत्तीसगढ़ सहित दूसरे राज्यों में सुरक्षा बलों के नए कैंप और 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' (एफओबी) स्थापित किए जा रहे हैं। अभी तक 200 से अधिक नए कैंप स्थापित हो चुके हैं। नक्सलियों के ठिकाने बर्बाद किए जा रहे हैं। नक्सलियों के सामने नई भर्ती का भी संकट खड़ा हो गया है। उनके सामने आर्थिक संकट भी गहराता जा रहा है। अनेक जगहों पर नक्सलियों की सप्लाई चेन को भी खत्म कर दिया गया है।