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चिंताजनक: मोबाइल और स्क्रीन टाइम के बढ़ते चलन ने बच्चों को मैदान से किया दूर, चुनौतियों से जल्द मानते हैं हार

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Sat, 27 Sep 2025 05:21 AM IST
सार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के अध्ययन में पाया गया कि खेलकूद से वंचित बच्चे भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में जल्दी हार मान लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खेल केवल शारीरिक गतिविधि नहीं, बल्कि जीवन का पाठ हैं जो बच्चों को असफलता स्वीकारने, टीमवर्क, लगातार सीखने और मानसिक संतुलन बनाए रखने की ताकत देते हैं। 

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increasing use of mobile phones and screen time taken children away from field
खेलते बच्चे। (फाइल) - फोटो : संवाद
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विस्तार
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मोबाइल और स्क्रीन टाइम के बढ़ते चलन ने बच्चों को मैदान से दूर कर दिया है, लेकिन ताजा अंतरराष्ट्रीय शोधों ने चेतावनी दी है कि यह दूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास पर गंभीर असर डाल रही है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के अध्ययन में पाया गया कि खेलकूद से वंचित बच्चे भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में जल्दी हार मान लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खेल केवल शारीरिक गतिविधि नहीं, बल्कि जीवन का पाठ हैं जो बच्चों को असफलता स्वीकारने, टीमवर्क, लगातार सीखने और मानसिक संतुलन बनाए रखने की ताकत देते हैं। अध्ययन में 16 देशों के 6 से 17 वर्ष के 89 हजार बच्चे शामिल किए गए। रोजाना 3 घंटे से ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करने वाले और खेलकूद से वंचित बच्चों में डिप्रेशन और एंग्जायटी का खतरा दोगुना पाया गया। 12 से 17 वर्ष के किशोरों में सामाजिक अलगाव की समस्या 41% अधिक मिली। नियमित खेलों में शामिल बच्चों की तुलना में निष्क्रिय बच्चों का बीएमआई औसतन 2.1 अंक अधिक रहा। खेलों में भाग लेने वाले बच्चों की सामाजिक अनुकूलन क्षमता (सोशल एडेप्टेबिलिटी स्कोर) 37% बेहतर रही। शोध की प्रमुख लेखिका डॉ. अमांडा थॉमसन कहती हैं, खेल बच्चों को असफलता से निपटना सिखाते हैं। जो बच्चे मैदान से दूर रहते हैं, वे मानसिक रूप से नाजुक हो जाते हैं। असली जिंदगी की जंग में जल्दी हार मान लेते हैं।
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स्कूली शिक्षा से नजरअंदाज किया जा रहा खेलकूद
अध्ययन के अनुसार भारत सहित अधिकांश विकासशील देशों में लाखों स्कूल ऐसे हैं, जहां खेलकूद को शिक्षा का हिस्सा मानने की बजाय पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है। स्थिति यह है कि न तो वहां खेल का पीरियड तय होता है और न ही बच्चों के पास खेलने के लिए कोई न्यूनतम साधन मौजूद हैं।

  • मैदान होना तो बहुत दूर की बात है, कई स्कूलों में तो बच्चों के पास बुनियादी सुविधाएं जैसे बॉल, नेट या छोटे खेल उपकरण तक उपलब्ध नहीं होते। परिणामस्वरूप अधिकांश बच्चों के जीवन से खेलकूद संबंधी गतिविधियां लगभग गायब हो जाती हैं।

स्कूलों में खेलकूद गतिविधियां औसतन 40 प्रतिशत तक घटीं
यूनेस्को के अनुसार पिछले दो दशकों के दौरान विकासशील और गरीब देशों के स्कूलों में खेलकूद संबंधी गतिविधियां औसतन 40 प्रतिशत तक घट गई हैं।

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भारत में स्थिति और शिक्षा नीति
भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खेलकूद और कला को शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा बनाने पर जोर दिया गया है। नीति का स्पष्ट कहना है कि हर स्कूल को बच्चों के लिए खेल का पीरियड और पर्याप्त मैदान उपलब्ध कराना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रावधान कागज पर न रहकर जमीनी स्तर पर लागू होना चाहिए।

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