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India-China: जाड़ों में ऊंचे इलाकों में तैनात जवानों को न हो रसद की कमी; प्लान बी पर काम कर रहीं सेना-वायुसेना

Harendra Chaudhary हरेंद्र चौधरी
Updated Fri, 18 Oct 2024 07:48 PM IST
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सार

India China: भारतीय सेना ने भारतीय वायुसेना ने अपने हेलीकॉप्टर बड़े को रिजर्व में रखने की योजना बनाई है और वह रसद सप्लाई के लिए सिविल हेलीकॉप्टर के इस्तेमाल की योजना बना रही है। तो, वहीं भारतीय वायुसेना भी इस चुनौती का सामना करने के लिए बड़ी तैयारियों में जुटी है।

India China Army are working on Plan B for supplies during winters in high altitudes
भारतीय सेना - फोटो : अमर उजाला
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वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी भारत-चीन गतिरोध के बीच सर्दियों ने दस्तक दे दी है। ऐसे में अग्रिम मोर्चों पर तैनात जवानों तक अगले छह महीने तक के लिए रसद का इंतजाम करना आसान काम नहीं होता है। जहां भारतीय सेना को हाई एल्टीट्यूड इलाकों में तैनात जवानों की रसद के लिए 15 नवंबर तक अगले छह महीने के लिए विंटर स्टॉकिंग करनी है। इसके लिए भारतीय सेना ने भारतीय वायुसेना ने अपने हेलीकॉप्टर बड़े को रिजर्व में रखने की योजना बनाई है और वह रसद सप्लाई के लिए सिविल हेलीकॉप्टर के इस्तेमाल की योजना बना रही है। तो, वहीं भारतीय वायुसेना भी इस चुनौती का सामना करने के लिए बड़ी तैयारियों में जुटी है। वायुसेना उत्तराखंड में तीन हवाई पट्टियां भी अपने कंट्रोल में लेने की तैयारी में है और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के लिए प्लान-बी पर काम कर रही है। 

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भारत-चीन के बीच 'भरोसे की कमी'
मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि चीन से गतिरोध के चलते भारतीय जवान लगातार पांचवे साल भी हाई एल्टीट्यूड इलाकों वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात हैं। 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की तरफ से अपनी सेनाओं को पीछे हटाने की कोई योजना नहीं है। दोनों देशों के बीच चल रही बातचीत के बावजूद, दोनों के बीच 'भरोसे की कमी' के चलते सर्दियों में भी अग्रिम मोर्चों पर जवानों की तैनाती जरूरी हो गई है। 2020 में गलवां घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से भारतीय सेना को अग्रिम मोर्चों पर जवानों की तैनाती करनी पड़ी थी। अकेले लद्दाख सेक्टर में ही 50 हजार से ज्यादा जवान एलएसी पर तैनात हैं। इनमें से कुछ डिविजन को पाकिस्तान सीमा से हटा कर चीन सीमा पर तैनात करना पड़ा है। 
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उत्तराखंड में वायुसेना को चाहिए तीन हवाई पट्टियां
सूत्रों ने बताया कि रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायु सेना उत्तराखंड में तीन हवाई पट्टियों- पिथौरागढ़, गौचर और धरासू को अधिग्रहण करने की योजना बना रही है। चूंकि ये लैंडिंग स्ट्रिप्स राज्य सरकार के अधीन हैं, इसके लिए राज्य सरकार के साथ बातचीत अंतिम दौर में है। सेंट्रल रीजन में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के इलाके आते हैं, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा के नजदीक हैं। वहीं इनका अपना रणनीतिक महत्व भी है। सूत्रों का कहना है कि पूर्वी उत्तराखंड में पिथौरागढ़ में पहले से ही एक सिविलयन हवाई पट्टी है, जबकि गौचर केदारनाथ के करीब है, और धरासू गंगोत्री ग्लेशियर के रास्ते में पड़ता है। वायुसेना पहले भी इन हवाई पट्टियों पर सी-130 जे जैसे मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की सफलतापूर्वक लैंडिग कर चुकी है। 

स्पीति में हवाई पट्टी बनाने की तैयारी
सूत्रों के मुताबिक एलएसी के पास इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की रणनीति के तहत भारतीय वायुसेना हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में भी एक नई हवाई पट्टी बनाने की योजना बना रही है। रक्षा मंत्रालय की एक टीम ने स्पीति के रंगरिक में एक नई हवाई पट्टी के लिए जमीन तलाशी है। जिस पर भी राज्य सरकार के साथ बातचीत चल रही है। सूत्रों ने बताया कि रंगरिक में प्रस्तावित हवाई पट्टी भारतीय सेना के लिए रणनीतिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है। इसकी वजह बताते हुए सूत्र कहते हैं, क्योंकि यह तिब्बत के चीन में चेप्जी के पास है, जहां चीनी सैनिक भारत में चुमार और डेमचोक के निकट अक्सर गश्त करती है। वहीं, जब सर्दियों में स्पीति घाटी पूरी तरह से बर्फ से ढक जाती है, तो यह पट्टी सिविलियन एयरक्राफ्ट के लिए भी इस्तेमाल में लाई जा सकती है। सूत्रों ने बताया कि भारतीय वायुसेना के पास हिमाचल प्रदेश में सिविलयन रनवे इस्तेमाल करने का विकल्प है। जरूरत पड़ी तो वायुसेना ऑपरेशनल जरूरतों के लिए शिमला में जुब्बड़हट्टी, कांगड़ा और भुंतर में मौजूद सिविलियन रनवे का इस्तेमाल कर सकती है। खास बात यह है कि वायुसेना इन तीनों ही हवाई पट्टियों पर सी-130 जे सैन्य परिवहन विमान को सफलतापूर्वक उतार चुकी है। 

वायुसेना का प्लान बी है तैयार
भारतीय वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि चीन पर नजर रखने के लिए भारतीय वायुसेना पूर्वी मोर्चे पर मौजूद 20 हवाई अड्डों पर इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से डेवलप करने में जुटी है, ताकि जरूरत पड़ने पर तेजी से बड़े हथियार, टैंक और जवानों को अग्रिम मोर्चों पर तैनात किया जा सके। इसके अलावा युद्ध के दौरान अगर किसी हवाई पट्टी पर दुश्मन बमबारी करता है, तो प्लान बी के तहत वायुसेना इसके लिए अतिरिक्त रनवे भी बना रही है। लद्दाख में रणनीतिक तौर पर बेहद अहम टैक्टिकल लेह एयरबेस पर दूसरा रनवे बनाया जा रहा है। यहां से पूर्वी लद्दाख में स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा और दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में सैनिकों को रसद, हथियार और गोला-बारूद की सप्लाई की जाती है।    

सिविलियन हेलीकॉप्टरों के इस्तेमाल की तैयारी
सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना रसद सप्लाई के लिए सिविल हेलीकॉप्टर के इस्तेमाल की भी योजना बना रही है। अब भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टरों की बजाय सिविलियन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल करेगी। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी पवन हंस और निजी कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन करेगी। इन कॉन्ट्रैक्ट के तहत सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी से उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं के सड़क रास्ते बंद हो जाते हैं, तो निजी कंपनियों के हेलीकॉप्टरों के जरिए पर सेना की चौकियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया जाएगा। इस अनुबंध के तहत जम्मू क्षेत्र में स्थित 16 दूरदराज चौकियों और कश्मीर और लद्दाख में 28 चौकियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया जाएगा। यह कॉन्ट्रैक्ट एक साल के लिए होगा, जिसे हर साल रिन्यू किया जाएगा। भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक इस फैसले को रणनीतिक कदम बताते हुए कहा कि इससे न केवल लागत कम होगी, बल्कि युद्ध या आपातकालीन परिस्थितियों में दूसरी भूमिकाओं के लिए सैन्य हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इससे सेना के हेलीकॉप्टरों की सर्विस लाइफ भी बढ़ेगी। 

44 चौकियों को कवर करेंगी निजी कंपनियां
इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत निजी कंपनियों के ये हेलीकॉप्टर लद्दाख में सात, कश्मीर में दो और जम्मू क्षेत्र में एक माउंटिंग बेस से ऑपरेट करेंगे, जो 44 चौकियों को कवर करेंगे। इस कदम के बाद भारतीय सेना सर्दियों में सुपर हाई एल्टीट्यूड एरिया यानी 17 हजार फीट की ऊंचाई पर भी तैनात अपने जवानों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देती रहेगी, जहां सर्दियों में सड़क मार्ग बंद होने से वहां पहुंचना मुश्किल हो जाता है। सूत्रों ने बताया कि इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत निजी हेलीकॉप्टर कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि सर्दियों के दौरान भी वे हाई एल्टीट्यूड एरिया में बनीं चौकियों तक रसद, फ्यूल, मेडिकल सपोर्ट निर्बाध तरीके से उपलब्ध कराएंगे। वहीं, इस मॉडल को हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के अन्य रणनीतिक और संवेदनशील इलाकों में भी लागू करने की योजना है। सूत्र कहते हैं कि इससे यह भी पता चलेगा कि क्या युद्ध के दौरान सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर मिलिट्री इस्तेमाल के लिए तैयार है। 

आर्मी चीफ बोले- हालात सामान्य नहीं
हाल ही में सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा था कि चीन लंबे समय से हमारे दिमाग के साथ साजिश रच रहा है। चीन के साथ आपको प्रतिस्पर्धा, सहयोग, सहअस्तित्व, टकराव और प्रतिस्पर्धा करनी है। भारत-चीन वार्ता से डिप्लोमेटिक स्तर पर सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। लेकिन जब जमीनी हालात की बात आती है, तो दोनों तरफ के कोर कमांडर फैसला लेते हैं। हालांकि सीमा पर हालात स्थिर हैं, लेकिन सामान्य नहीं हैं। अप्रैल 2020 से पहले जो भारतीय सेना की स्थिति थी, उसे बहाल किया जाना चाहिए। जब तक पूर्ववर्ती स्थिति बहाल नहीं होती, तब तक स्थिति संवेदनशील बनी रहेगी। हम किसी भी स्थिति के लिए ऑपरेशनल रूप से तैयार हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस सबके बीच भरोसे को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।  

वायुसेना प्रमुख ने कही ये बात
वहीं, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने भी भारत-चीन गतिरोध को लेकर कहा था कि पूर्वी लददाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार है। चीन अपनी सीमा पर तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है और हमारे सामने दुश्मन की तैयारियों से बराबरी करने की चुनौती है और वह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि हम भी चीन से मुकाबले के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हम हवाई अड्डों की क्षमता बढ़ा रहे हैं और सेंट्रल रीजन में सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर और लैंडिंग ग्राउंड का इस्तेमाल करने की भी योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना इन हवाई अड्डों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए राज्य सरकारों के संपर्क में है, जिन्हें भारतीय वायुसेना इस्तेमाल करेगी। 

पैंगोंग पर चीन ने बसाया गांव
चीन जिस तरह से लगातार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लगातार अपना इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर रहा है, वह वाकई बारतीय पक्ष के लिए चिंता की बात है। 2020 के गलवां संघर्ष के बाद से चीन एलएसी पर जे-20 जैसे पांचवी पीढ़ी के फाइटर जेट तैनात कर रहा है। चीन के शिगात्से एयर बेस की हाल ही में जारी तस्वीर में चीन के 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट, चेंगदू जे-20 माइटी ड्रैगन की तैनाती देखी गई थी। इसके अलावा चीन नए एयरबेस, मिसाइल साइट्स, सड़कें, पुल, बंकर, हवाई हमलों से बचाव के लिए अंडरग्राउंड बंकर, सैनिकों के लिए आवास और गोला-बारूद डिपो बना रहा है। वहीं लद्दाख में चीन पहले ही पैंगोंग झील पर पुल बना चुका है और हालिया जारी तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि चीन ने पैंगोंग के उत्तरी किनारे में एक गांव बसा लिया है। जिसमें करीब 17 हेक्टेयर जमीन पर चीन गांव बसा रहा है। यह नया गांव येमागोऊ रोड के नजदीक है, जिसकी ऊंचाई करीब 4347 मीटर यानी तकरीबन 14262 फीट है। सैटेलाइट तस्वीरों में यह भी खुलासा हुआ है कि चीन ने वहां 100 से 150 मकान और इमारतें बनाई हैं। इसके अलावा हेलिकॉप्टर के लिए हेलीपैड स्ट्रिप भी बनाने की तैयारी है। 

भारतीय सेना के लिए मनोवैज्ञानिक जंग!
भारतीय सेना के लेह में तैनात सूत्रों ने बताया कि लद्दाख में हाई से लेकर सुपर हाई एल्टीट्यूड के इलाके शामिल होते हैं और नवंबर के बाद 40 फीट तक ऊंची बर्फबारी होती है। साथ ही, तापमान का शून्य से 30 से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे गिरना एक आम बात है। वहीं ठंडी हवाएं हालात को और बिगाड़ देती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद, भारतीय सैनिकों को विंटर वॉरफेयर का अच्छा खासा अनुभव है और वे इसके लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर भी तैयार हैं।

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